RBI दखल से रुपये पर दबाव में कमी, रिकॉर्ड लो के बाद की वापसी, जानें डॉलर के मुकाबले कितना मजबूत
Indian Currency: कोटक म्यूचुअल फंड के मुख्य निवेश अधिकारी दीपक अग्रवाल ने भी इस बात पर जोर दिया कि रुपये की रिकॉर्ड गिरावट घरेलू कमजोरी नहीं, बल्कि वैश्विक दबावों का नतीजा है.

Rupee vs Dollar: भारतीय रुपये में साल 2025 के दौरान अब तक करीब छह प्रतिशत की तेज गिरावट दर्ज की गई है, जिससे यह एशिया की सबसे कमजोर प्रदर्शन करने वाली मुद्राओं में शामिल हो गया है. हालांकि, सप्ताह के चौथे कारोबारी दिन गुरुवार को रुपये ने शुरुआती कारोबार में कुछ मजबूती दिखाई और अमेरिकी डॉलर के मुकाबले छह पैसे की बढ़त के साथ 90.32 के स्तर पर पहुंच गया. इससे पहले बुधवार को उतार–चढ़ाव भरे कारोबार के बाद रुपया अपने अब तक के सबसे निचले स्तर से उबरते हुए 55 पैसे की मजबूती के साथ 90.38 प्रति डॉलर पर बंद हुआ था. बाजार जानकारों का मानना है कि यह सुधार भारतीय रिजर्व बैंक के संभावित आक्रामक हस्तक्षेप का नतीजा है, जिसने गिरते रुपये को तत्काल सहारा दिया.
विश्लेषकों के मुताबिक, हाल के दिनों में रुपये पर जो दबाव बना है, वह मुख्य रूप से बाहरी कारकों की वजह से है, न कि घरेलू अर्थव्यवस्था की कमजोरी के कारण. अमेरिका-भारत व्यापार समझौते को लेकर अनिश्चितता, अमेरिका द्वारा भारतीय निर्यात पर लगाए गए भारी शुल्क और विदेशी संस्थागत निवेशकों (एफआईआई) की लगातार बिकवाली ने रुपये की चाल को प्रभावित किया है.
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इसके अलावा, वैश्विक स्तर पर भू-राजनीतिक तनाव और आर्थिक संकेतों में अस्थिरता ने भी विदेशी मुद्रा बाजार में उतार-चढ़ाव को बढ़ाया है. गुरुवार को अंतरबैंक विदेशी मुद्रा बाजार में रुपया 91.05 प्रति डॉलर पर खुला, लेकिन बाद में इसमें तेज रिकवरी देखने को मिली और यह दिन के उच्चतम स्तर 89.96 तक पहुंच गया, जो पिछले बंद भाव से करीब 97 पैसे की मजबूती को दर्शाता है.
बाजार विशेषज्ञों का कहना है कि हालिया गिरावट के बावजूद भारत की बुनियादी आर्थिक स्थिति मजबूत बनी हुई है. देश की जीडीपी वृद्धि दर मजबूत है, विदेशी मुद्रा भंडार संतोषजनक स्तर पर है और चालू खाता घाटा भी प्रबंधनीय बना हुआ है. एचडीएफसी सिक्योरिटीज के शोध विश्लेषक दिलीप परमार के अनुसार, पांच सत्रों की लगातार गिरावट के बाद रुपये में जो मजबूती आई है, वह केंद्रीय बैंक के हस्तक्षेप की उम्मीद से जुड़ी है. उनका मानना है कि तकनीकी रूप से रुपये को 90.60 के स्तर पर मजबूत समर्थन और 89.70 के आसपास ऊपरी प्रतिरोध मिल सकता है, हालांकि आर्थिक और भू-राजनीतिक परिस्थितियों के चलते आगे भी अस्थिरता बनी रह सकती है.
क्या कहते हैं एक्सपर्ट्स?
कोटक म्यूचुअल फंड के मुख्य निवेश अधिकारी दीपक अग्रवाल ने भी इस बात पर जोर दिया कि रुपये की रिकॉर्ड गिरावट घरेलू कमजोरी नहीं, बल्कि वैश्विक दबावों का नतीजा है. उनके अनुसार, अमेरिका द्वारा भारतीय निर्यात पर 50 प्रतिशत शुल्क लगाए जाने और विदेशी पूंजी की निरंतर निकासी जैसे कारकों के कारण रुपये में सालाना आधार पर करीब छह प्रतिशत की गिरावट आई है. इसके चलते वर्ष 2025 में रुपया एशिया की सबसे ज्यादा प्रभावित मुद्रा बन गया है. उन्होंने कहा कि जब तक अमेरिका-भारत व्यापार समझौते को लेकर स्पष्टता नहीं आती और विदेशी निवेशकों का भरोसा वापस नहीं लौटता, तब तक रुपये पर दबाव बना रह सकता है.
इस बीच, वैश्विक बाजारों में भी मिला-जुला रुख देखने को मिला. छह प्रमुख मुद्राओं के मुकाबले डॉलर की मजबूती को दर्शाने वाला डॉलर इंडेक्स 0.42 प्रतिशत बढ़कर 98.56 पर पहुंच गया. घरेलू शेयर बाजार में सेंसेक्स 120 अंक से ज्यादा टूटकर 84,559.65 पर बंद हुआ, जबकि निफ्टी 41 अंक गिरकर 25,818.55 पर आ गया. अंतरराष्ट्रीय तेल बाजार में ब्रेंट क्रूड की कीमतों में करीब दो प्रतिशत की तेजी दर्ज की गई और यह 60 डॉलर प्रति बैरल के आसपास कारोबार करता दिखा. कुल मिलाकर, विशेषज्ञों का मानना है कि निकट भविष्य में रुपये में उतार-चढ़ाव बना रह सकता है, लेकिन मजबूत आर्थिक आधार और केंद्रीय बैंक की सक्रिय भूमिका के चलते किसी बड़े संकट की आशंका फिलहाल नहीं है.
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Source: IOCL























