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ये रुपया और कितना गिरेगा और कहां जाकर रुकेगा? 91 पार जाकर भी नहीं लग रहा ब्रेक

अगर अमेरिका और भारत की ट्रेड डील फाइनल हो गई और भारत की शर्तों पर हुई तो शायद जल्द ही रुपया चढ़ भी जाएगा. नहीं तो अनुमान तो यहां तक लगाया जा रहा है कि अगले साल की शुरुआत में आपको एक डॉलर के लिए 92 रुपये से भी ज्यादा की कीमत चुकानी पड़ सकती है.

एक वक्त था जब हर रोज की खबरों में पेट्रोल-डीज़ल के बढ़े हुए दाम चाहे-अनचाहे दिख ही जाते थे. तब एक मजाक प्रचलित था कि एक बाइक वाला कह रहा है कि पेट्रोल के दाम बढ़ने से मुझे क्या, मैं तो पहले भी 100 का तेल डलवाता था और अब भी 100 का ही तेल डलवाता हूं...इस बात को कहते वक्त उसे भी पता होता था कि वो जो कह रहा है वो बेवकूफी के अलावा कुछ नहीं है, लेकिन वो सबके सामने इसे मानने को तैयार नहीं होता था. अब खबरों से पेट्रोल-डीज़ल के रेट गायब हैं और उसकी जगह गिरते हुए रुपये ने ले ली है, जो नित नई निचाई का रिकॉर्ड बना रहा है. और अब फिर से वही मजाक चल रहा है कि रुपये के गिरने से मुझे क्या, मुझे तो पहले भी रुपये में ही तनख्वाह मिलती थी और खर्च भी रुपये में ही करता था, अब भी तनख्वाह रुपये में ही मिलती है और खर्च भी रुपये में ही होता है. 

लेकिन बोलने वाला भी ये बात जानता है कि वो जो कह रहा है, वो बेवकूफी के अलावा कुछ नहीं है. लिहाजा सवाल तो यही है कि आखिर कब तक ऐसी ही बेवकूफी भरी बातें की जाती रहेंगी और आखिर कब तक ये रुपया नीचे और नीचे गिरता रहेगा, आखिर इसके इतना नीचे गिरने की वजह क्या है और क्या कोई ऐसा ब्रेकर है, जहां जाकर ये रुक पाएगा, 

जमाना एआई का है, तो अपने किसी भी सवाल का जवाब आसानी से हासिल करने के लिए या तो हम चैट जीपीटी से पूछते हैं या गूगल जेमनाई से. मैंने भी सबसे पहले गूगल जेमनाई से यही सवाल पूछा कि अभी और कितना गिरेगा रुपया. गूगल जेमनाई ने लंबे-चौड़े ज्ञान और अगर-मगर करने के बाद जो निष्कर्ष दिया वो था कि-

'फिलहाल रुपया 'अनचार्टेड टेरिटरी' यानी कि अज्ञात क्षेत्र में है.'

चैटजीपीटी ने भी मोटा-माटी यही जवाब दिया कि कहना मुश्किल है. अभी इसी मुश्किल को थोड़ा आसान किया है एक मीम ने, जो सोशल मीडिया पर वायरल है. उसमें कहा जा रहा है कि अमेरिका का एसटीडी कोड 1 है, जबकि भारत का एसटीडी कोड 91 है. रुपये का भी यही हाल है, क्योंकि अमेरिका का एक डॉलर भी अब 91 रुपये के बराबर हो गया है. मीम ये बताता है कि 1947 में एक डॉलर एक रुपये के बराबर था. हालांकि ये सच नहीं है. ये असल में मजाक है, क्योंकि एक रुपया कभी भी एक डॉलर के बराबर नहीं था. 


ये रुपया और कितना गिरेगा और कहां जाकर रुकेगा? 91 पार जाकर भी नहीं लग रहा ब्रेक

कोई भी सरकारी आंकड़ा इस बात की पुष्टि भी नहीं करता है. असल में दुनिया की एक सबसे पुरानी ट्रैवल कंपनी है थॉमस कुक. पुरानी इसलिए क्योंकि 1881 में ये शुरू हुई थी. ये कंपनी फॉरेन एक्सचेंज की सर्विस भी देती है. यानी डॉलर के बदले रुपया और रुपए के बदले डॉलर. इस कंपनी की वेबसाइट पर जो डेटा मौजूद है, वो बताता है कि आजादी के वक्त 1 डॉलर की वैल्यू 3 रुपए 30 पैसे थी. आज एक डॉलर की वैल्यू 91 रुपए के आस-पास है. तो मजाक में भी कभी एक रुपया एक डॉलर के बराबर नहीं हुआ था.

खैर असल मुद्दे पर आते हैं. कि आखिर रुपया गिरा क्यों, इसके गिरने से आपके ऊपर असर क्या हो रहा है और आखिर ये गिरावट कहां जाकर रुकेगी. तो चलिए एक-एक सवाल का जवाब तलाशने की कोशिश करते हैं.


ये रुपया और कितना गिरेगा और कहां जाकर रुकेगा? 91 पार जाकर भी नहीं लग रहा ब्रेक

और इसको शुरू करते हैं एक ग्राफ से. साल 1947 में जब भारत आजाद हुआ था तो अमेरिका का एक डॉलर भारत के तीन रुपये 31 पैसे के बराबर था. इसमें आपको साफ-साफ दिख रहा होगा कि आजादी के वक्त एक डॉलर की कीमत 3 रुपये 31 पैसे थी. लेकिन सबसे बड़ी गिरावट हुई 1966 में, जब भारत आर्थिक संकट से जूझ रहा था. तब रुपये का अवमूल्यन किया गया और उस साल एक डॉलर की कीमत भारतीय रुपये में ₹7.50 पर पहुंच गई. 

1991 में भी बड़ा बदलाव आया जब उदारीकरण हुआ. और तब पहली बार डॉलर 20 रुपये के पार चला गया. 2000 से 2010 यानी कि करीब 10 साल तक डॉलर की कीमत में कोई बड़ा बदलाव नहीं हुआ और वो 40 से 50 रुपये के बीच ही रहा. फिर आया 2012. और उसके बाद तो रुपये की कहानी ही बदल गई. लगातार गिरावट होती रही और उसका नतीजा ये है कि जब साल 2025 खत्म होने वाला था तो एक डॉलर 91 रुपये को भी पार कर गया था, जो रुपये का हाईएस्ट लो है.

सवाल है कि क्यों. तो इसके चार-पांच प्रमुख कारण हैं. शायद आपको पता हों भी, फिर भी बताना जरूरी है. तो जान लीजिए.

विदेशी निवेशकों का पलायन :

तकनीकी शब्दों में इसको कहते हैं FPI Outflow यानी कि फॉरेन पोर्टफोलियो इन्वेस्टमेंट आउटफ्लो. विदेशी निवेशक भारतीय शेयर बाजार से अपना पैसा निकालकर अमेरिका जैसे सुरक्षित ठिकानों में लगा रहे हैं. ऐसे निवेशक जब भारत से पैसा निकालते हैं तो वो रुपये बेचकर डॉलर खरीदते हैं. इससे डॉलर की मांग बढ़ती है और रुपया स्वाभाविक तौर पर कमजोर होता है. अगर आंकड़ों की बात करें तो साल 2025 में ही करीब 18 अरब डॉलर भारतीय बाजार से निकाला गया है, जिसका सीधा असर रुपये पर पड़ रहा है.

अमेरिका-भारत व्यापार सौदे में अनिश्चितता:

अमेरिका ने भारत पर टैरिफ लगा रखा है. इसकी वजह से अमेरिका और भारत के कारोबारी रिश्तों पर असर पड़ा है. और ये तब है जब हर दिन ट्रेड डील की बात होती है. जब तक ट्रेड डील नहीं होती, कुछ भी तय नहीं है. और इस अनिश्चितता ने रुपये को बेहद कमजोर किया है. अमेरिका की नई व्यापार नीतियों और टैरिफ की वजह से दुनिया के और भी बाजार डरे हुए हैं. नतीजा ये हुआ है कि रुपया पूरे एशिया में इस साल सबसे खराब प्रदर्शन करने वाली करेंसी बन गई है.

आयात बिल में बढ़ोत्तरी:

भारत अपनी जरूरत का 80% से ज्यादा तेल और भारी मात्रा में सोना आयात करता है. अंतरराष्ट्रीय बाजार में इनकी कीमतें लगातार बढ़ रही हैं. इसकी वजह से हमें ज्यादा डॉलर चुकाने पड़ रहे हैं.

RBI की नई नीति:

आम तौर पर होता ये था कि अगर डॉलर ज्यादा मजबूत होने लगता था तो रिजर्व बैंक अपने रिजर्व के कुछ डॉलर बेच देता था, जिससे रुपये को संभलने का मौका मिल जाता था. लेकिन इस बार आरबीआई ने रुपये को बाजार के हवाले छोड़ दिया है. और डॉलर को बचाने की कोशिश कर रहा है ताकि भारतीय निर्यात को फायदा पहुंचाया जा सके.

अब ये तो हो गई ज्ञान की बातें. अब तक आपको पता चल गया कि आपका रुपया इतना गिर क्यों रहा है. लेकिन असल सवाल तो अब भी बाकी है कि इस रुपये के गिरने की वजह से हमारे-आपके जीवन पर क्या असर पड़ रहा है. तो इसका जवाब भी बेहद सीधा है.

और जवाब ये है कि जब भी रुपया गिरता है, विदेश से आने वाली हर चीज महंगी होती जाती है. इसको ऐसे समझिए कि अगर हमें अमेरिका से कोई सामान खरीदना है और उसकी वैल्यू 1 डॉलर है, तो उसके लिए हमें अमेरिका को करीब 90 रुपए देने पड़ेंगे. अगर रुपया डॉलर के मुकाबले मजबूत होगा तो वही चीज हमें 90 रुपए के मुकाबले 85- 80 में भी मिल सकती है. थोड़ा और ठीक से समझते हैं. 

आप हर दिन पेट्रोल-डीजल इस्तेमाल करते हैं. और ये बनता है कच्चे तेल से. भारत अपनी जरूरत का 80 फीसदी कच्चा तेल विदेश से खरीदता है. भारत जो भी कच्चा तेल खरीदता है, डॉलर में खरीदता है. डॉलर महंगा तो तेल महंगा, तेल महंगा तो आपके घर पहुंचने वाला दूध, सब्जी, गैस सिलिंडर और रोजमर्रा का हर सामान महंगा होगा. दूसरी बात मोबाइल फोन और गैजेट्स जो विदेश से आते हैं, वो महंगे होंगे, क्योंकि डॉलर महंगा है. और अगर कहीं आपका बच्चा विदेश में पढ़ रहा है, तो फिर उसकी फीस महंगी, क्योंकि आप फीस चुकाएंगे डॉलर में. और आपको डॉलर मिलेगा महंगा. 

आपको अपनी जेब ज्यादा ढीली करनी पड़ेगी. इसलिए ऐसे किसी भी बहकावे में मत आइए कि रुपया गिर रहा तो मुझे क्या. असर तो आप पर भी है. हां, बेअसर वो लोग हैं या कहिए कि मुनाफे में वो लोग हैं, जो या तो विदेश में नौकरी कर रहे हैं या भारत में रहते हुए विदेशी कंपनियों में नौकरी कर रहे हैं. क्योंकि उनकी तनख्वाह आती है डॉलर में. और जब वो डॉलर को रुपये में एक्सचेंज करते हैं तो उन्हें पहले के मुकाबले बढ़ी हुई तन्ख्वाह मिलती है क्योंकि डॉलर महंगा है.

अब आखिरी सवाल कि आखिर ये रुपया और कितना गिरेगा और कहां जाकर रुकेगा. तो इसका ठीक-ठीक जवाब तो कोई नहीं दे सकता. अगर अमेरिका और भारत की ट्रेड डील फाइनल हो गई और भारत की शर्तों पर हुई तो शायद जल्द ही रुपया चढ़ भी जाएगा. नहीं तो अनुमान तो यहां तक लगाया जा रहा है कि अगले साल की शुरुआत में आपको एक डॉलर के लिए 92 रुपये से भी ज्यादा की कीमत चुकानी पड़ सकती है. हालांकि स्टेट बैंक ऑफ इंडिया का अनुमान है कि साल 2026 में रुपये में तेजी आएगी और ये डॉलर के मुकाबले मजबूत होकर 87 रुपये प्रति डॉलर तक पहुंच सकता है. 

ये भी पढ़ें: चांदी की कीमत में 1 साल के दौरान 135% की उछाल, निवेश करें या बेचें? जानें एक्सपर्ट्स की राय

अविनाश राय एबीपी लाइव में प्रोड्यूसर के पद पर कार्यरत हैं. अविनाश ने पत्रकारिता में आईआईएमसी से डिप्लोमा किया है और इलाहाबाद विश्वविद्यालय से ग्रैजुएट हैं. अविनाश फिलहाल एबीपी लाइव में ओरिजिनल वीडियो प्रोड्यूसर हैं. राजनीति में अविनाश की रुचि है और इन मुद्दों पर डिजिटल प्लेटफार्म के लिए वीडियो कंटेंट लिखते और प्रोड्यूस करते रहते हैं.

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