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अखिलेश यादव से अचानक इतना खफ़ा किसलिये हो गया है यूपी का मुसलमान?
उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी को एकतरफा वोट देने वाला मुसलमान अब पार्टी सुप्रीमो अखिलेश यादव से ख़फ़ा होने लगा है और उसे लगता है कि सत्ता न मिल पाने की वजह से सपा ने अब उसे बेसहारा छोड़ दिया है. अखिलेश के प्रति अपनी नाराज़गी जताने की शुरुआत किसी आम मुस्लिम ने नहीं बल्कि पार्टी के कद्दावर नेता आज़म खान के खेमे से शुरु हुई है. आज़म खान तो पिछले तकरीबन ढाई साल से जेल में है और जेल के भीतर से ही वे चुनाव जीतकर विधायक बने हैं, लेकिन ये भला कौन मानेगा कि उनकी मर्जी के बगैर उनका मीडिया सलाहकार अखिलेश यादव को कठघरे में खड़ा करने वाला बयान दे सकता है?
इसलिये यूपी की सियासत में एक बड़ा सवाल उठ रहा है कि इस चुनाव में सपा और उसके सहयोगी दलों के जो 34 मुसलमान विधायक चुनकर आये हैं, क्या वे पार्टी को अलविदा कहकर अपना कोई नया मोर्चा बनाने की सोच रहे हैं? हालांकि फिलहाल ऐसे किसी निष्कर्ष पर पहुंचना जल्दबाजी होगी लेकिन यूपी की सियासत में ऐसी सुगबुगाहट तो शुरु हो ही चुकी है.
दरअसल, आज़म खेमा अब अखिलेश यादव को दो वजह से खलनायक साबित करने की कोशिश में जुटा है. पहली तो ये कि आज़म खान ये उम्मीद लगाये बैठे थे कि नेताजी यानी मुलायम सिंह यादव उन्हें विपक्ष का नेता बनाने के लिए अपने वीटो पावर का इस्तेमाल करते हुए अखिलेश को इसके लिए मना लेंगे, लेकिन मुलायम ने ऐसा कुछ नहीं किया और अगर वे कुछ कहते भी, तब भी अखिलेश नहीं मानते. चुनावी नतीजे आने के बाद वे तय कर चुके थे कि सांसदी से इस्तीफा देकर विधानसभा में प्रतिपक्ष का नेता बनकर अब वह सिर्फ प्रदेश की राजनीति ही करेंगे.
दूसरा यह कि यूपी के मुस्लिम समुदाय में अब ये माहौल बनाने की कोशिश हो रही है कि अखिलेश पहले की तरह ही अब मुसलमानों के खैरख्वाह नहीं रहे, क्योंकि उन्होंने मुस्लिमों से जुड़े मुद्दे उठाने बंद कर दिए हैं. दोबारा सत्ता में आने के बाद योगी सरकार ने मुस्लिम विधायकों के खिलाफ अब तक जितनी भी कार्रवाई की है, उसके विरोध में अखिलेश ने न तो कोई बयान दिया और न ही कोई ट्वीट ही किया.
हो सकता है कि अखिलेश की ये रणनीति उनकी अगले पांच साल की बदली हुई राजनीति करने का ही एक हिस्सा हो कि वे खुद पर सिर्फ मुसलमानों का नेता होने की छाप नहीं लगवाना चाहते. उन्हें समझ आ चुका है कि मुसलमानों के 98 फीसदी वोट हासिल करने के बावजूद पार्टी की सीटों में इज़ाफ़ा तो हो सकता है, लेकिन सिर्फ इसी बूते यूपी की सत्ता में आ पाना, नामुमकिन है. शायद इसीलिये अखिलेश मुस्लिमों के खिलाफ होने वाली किसी भी कार्रवाई को लेकर बिल्कुल खामोश हैं. फिर चाहे पार्टी के बरेली से नव निर्वाचित विधायक शहजिल इस्लाम के कथित रुप से अवैध पेट्रोल पंप पर बुलडोजर चलाने का मसला हो या फिर कैराना के सपा विधायक नाहिद हसन के खिलाफ सरकार की कार्रवाई से जुड़ा मामला हो.
यहां तक कि पिछले हफ़्ते उत्तर प्रदेश के सीतापुर में एक कथित धर्मगुरु बजरंग मुनि ने मुस्लिम महिलाओं के बारे में जो भड़काऊ भाषण दिया था, उस पर भी अखिलेश ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी. इस भाषण में बजरंग मुनि ने मुसलमान बहू- बेटियों को अग़वा कर उनके साथ बलात्कार करने की आपत्तिजनक बात की थी. उसका वीडियो वायरल होने के बाद पुलिस ने मुकदमा तो दर्ज कर लिया, लेकिन पूरे मामले पर अखिलेश की रहस्यमयी चुप्पी ने मुसलमानों को बेचैन कर दिया है.
दरअसल, बीती 11 अप्रैल को आज़म ख़ान के करीबी और मीडिया सलाहकार फ़साहत अली ख़ान ने रामपुर में खुले मंच से अखिलेश यादव पर निशाना साधते हुए ये जाहिर करने की शुरुआत की थी कि सूबे के मुसलमान अब उनसे ख़फ़ा है. फसाहत अली ने अपने भाषण में कहा था कि "वाह राष्ट्रीय अध्यक्ष जी वाह! हमने आपको और आपके वालिद साहब (मुलायम सिंह) को चार बार प्रदेश का मुख्यमंत्री बनवाया. आप इतना नहीं कर सकते थे कि आज़म ख़ान साहब को नेता विपक्ष बना देते? हमारे कपड़ों से बू आती है राष्ट्रीय अध्यक्ष जी को. स्टेजों पर हमारा नाम नहीं लेना चाहते हैं." उन्होंने ये भी कहा कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) ने कहा था कि अखिलेश नहीं चाहते कि आजम खान जेल से बाहर आएं, ये बात सही है.
"अखिलेश ने हमें बीजेपी का दुश्मन बना दिया और उन्होंने आजम खान की बलि दे दी, वरना बीजेपी से हमारी क्या दुश्मनी थी. चुनाव में जो 111 सीट आईं, वो हमारी वजह से आईं फिर भी अखिलेश हमारे नहीं हुए." उत्तर प्रदेश की मुस्लिम राजनीति के जानकार शादाब रिज़वी कहते हैं, "आज़म ख़ान विधायक का चुनाव शायद इसलिए लड़े थे कि सरकार आ जाएगी और उन्हें आसानी से ज़मानत मिल जाएगी. अब जब ये नहीं हुआ तो उनकी एक बड़ी ख्वाहिश यह थी कि उन्हें नेता विपक्षी दल बना दिया जाये. अगर वो नेता विपक्ष बनते तो उन पर क़ानूनी शिकंजा, सरकार का शिकंजा कम हो सकता है." उनके मुताबिक " इसमें कोई शक नहीं कि आज़म ख़ान मुसलमानों के एक बड़े चेहरे हैं तो अगर आप उनको कुछ देंगे तो मुसलमान आपके साथ जुड़ा रहेगा. मुझे लगता है कि उनके ख़फ़ा होने की असली वजह यही है."
अपनी ही पार्टी के मुस्लिम विधायकों की नाराजगी अखिलेश ने तब और बढ़ा दी, जब विधानसभा में विपक्ष का नेता बनने के बाद अपने भाषण में भाजपा के नेताओं को तो सम्मान दिया, लेकिन आज़म ख़ान का ज़िक्र करना तक भूल गए. बड़ा सवाल है कि दो साल बाद होने वाले लोकसभा चुनाव में मुसलमानों की इस नाराजगी का स्वाद चखना सपा के लिए कितना कड़वा साबित होगा?
(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)
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