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बाबर की तारीफ करने वाले मणिशंकर अय्यर आखिर क्यों भूल गये औरंगजेब के जुल्म की दास्तां?

''यह गर्दन कट तो सकती है मगर झुक नहीं सकती। कभी चमकौर बोलेगा ,कभी सरहिन्द की दीवार बोलेगी।।''

ये आवाज़ आज से करीब 317 साल पहले यानी 1704 में मुगलों की सेना से लड़ते हुए सिखों के दसवें व अंतिम गुरु श्री गोबिंद सिंह जी के दिल से निकली थी, जिन्होंने इस हिंदुस्तान को मुगलों की चरागाह बनने से बचाने के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया. यहां तक कि अपने मासूम बेटों की कुर्बानी देने से भी वे न डरे, न झुके और न ही पीछे हटे. दुनिया के इतिहास में कुर्बानी की ऐसी अनूठी मिसाल न उससे पहले थी और न हीं आज तक हुई है और शायद भविष्य में हमें कभी देखने को मिलेगी भी नहीं. लेकिन इतिहास के पन्नों को थोड़ा और पलटकर देखें, तो उनके पिता और सिखों के नवे गुरु श्री तेगबहादुर जी की शहादत का पूरा वाकया कांग्रेस के बेहद बड़बोले नेता समझे जाने वाले मणिशंकर अय्यर ने पढ़ा होता, तो शायद वे ये कहने की ज़ुर्रत नहीं कर पाते कि "मुगलों ने कभी धर्म के नाम पर अत्याचार नहीं किया."

चूंकि मामला सारा सियासी है क्योंकि उत्तर प्रदेश का चुनाव सिर पर है. लिहाजा, मुसलमानों को खुश करने के लिए इतिहास के तथ्यों को झूठलाये बगैर कांग्रेस की झोली में वोट भला कहां से आएंगे. लेकिन अय्यर इतने नासमझ नेता भी नहीं हैं, जो ये न जानते हों कि इतिहास को झूठा साबित करने की कोशिश भी आग से खेलने से कम नहीं है. इसलिये, यही माना जायेगा कि उन्होंन एक सुनियोजित राजनीतिक योजना के तहत इतिहास से छेड़छाड़ करते हुए इस विवाद को जन्म दिया है. मकसद सिर्फ शोहरत पाना नहीं है, उसके मायने और भी ज्यादा गहरे हैं. पार्टी के ही दूसरे नेता सलमान खुर्शीद ने अपनी किताब के जरिये हिन्दू धर्म और हिंदुत्व में फर्क बताने की जो चिंगारी छेड़ी थी, ये उसे शोला बनाने की तैयारी है. मुगल सम्राट बाबर की तारीफ़ करके वे अपनी पार्टी के सियासी फायदे के लिए इसे हिन्दू बनाम मुसलमान के बीच पैदा हुई नफरत को और गहरा करने की कोशिश तो कर ही रहे हैं लेकिन साथ ही उन हजारों अनाम सैनिकों की शहादत का अपमान भी कर रहे हैं, जो मुगलों की सेना से लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हो गए.

अय्यर ने मुगलिया सल्तनत की तारीफ में कसीदे पढ़ते हुए बहुत कुछ कहा है और उन्होंने अंग्रेजों से तुलना करते हुए ये कहने में जरा भी गुरेज नहीं किया कि "मुगलों में बड़ा फर्क ये था कि मुगल इस देश को अपना मानते थे." जिस बाबर और उसके वंशज औरंगज़ेब को हिंदुस्तान के इतिहास का खलनायक समझा जाता है, उसी बाबर की तारीफ करते हुए अय्यर ने ये भी कहा कि बाबर ने अपने बेटे हुमायूं को चिट्ठी लिखी थी, जिसमें हिंदुस्तान के लोगों के धर्म में किसी तरह का दखल ना देने की बात कही थी. यही वजह है कि अकबर के शासन में धर्म के नाम पर कोई भेदभाव नहीं होता था.

उन्होंने बीजेपी पर तंज कसते हुए ये भी कहा कि "इन लोगों को मैं बताना चाहता हूं कि वही बाबर भारतवर्ष आया सन् 1526 में और उनकी मौत हुई 1530 में मतलब वो भारत में मात्र 4 साल रहे. उन्होंने हुमायूं को बताया कि यदि आप इस देश को चलाना चाहते हो, यदि आप अपने साम्राज्य को सुरक्षित रखना चाहते हो तो आप यहां के निवासियों के धर्म में दखल ना दीजिएगा."

लेकिन अय्यर इतिहास की उस सच्चाई को बताना भूल गए कि उसी मुगल वंश में पैदा हुए औरंगज़ेब ने इस हिंदुस्तान की धरती पर अपना राज करते हुए कितना अत्याचार किया और कितने बेगुनाहों का खून बहाया. इतिहास में सम्राट अकबर को आज भी इसलिये याद किया जाता है कि उसने मज़हब के नाम पर इस धरती पर कभी अत्याचार नहीं किया, बल्कि हर धर्म का सम्मान करते हुए 'दिन-ए-इलाही की स्थापना करके समाज में आपसी प्रेम व भाईचारे की परंपरा को और आगे बढ़ाया. लेकिन अकबर की भलाई और औरंगजेब के ज़ुल्म को न तो एक तराजू में तौला जा सकता है और न ही तोला जाना चाहिए. लिहाज़ा, मणिशंकर अय्यर ने इतिहास का आधा सच और आधा झूठ बताते हुए अपनी सियासी रोटियां सेंकने की जो मुहिम छेड़ी हैं, वो बेशक उनके लिए न सही लेकिन कांग्रेस के लिए भारी पड़ सकती है. उन्होंने बाबर की जिंदगी के इतिहास से जुड़े उस सियाह पन्ने का जिक्र आखिर क्यों नहीं किया कि उसने महज़ चार साल की हुकूमत के दरमियान ही हिंदुस्तान के कितने मंदिरों को मस्ज़िद में तब्दील कर दिया था.

अय्यर तर्क दे रहे हैं कि मुगलों ने धर्म के नाम पर यहां कोई अत्याचार नहीं किया, तो वे यह बताते हुए उसी मुगल वंश के सम्राट औरंगज़ेब की ये करतूत क्यों भूल गए जिसने हिंदुओं के लिए खुला हुक्म दे रखा था कि या तो इस्लाम कबूल करो वरना मरने के लिए तैयार हो जाओ. उसी औरंगजेब ने ये आदेश भी दिया था कि राजकीय कार्यों में किसी भी उच्च पद पर किसी हिंदू की नियुक्ति न हो और हिंदुओं पर‘जजिया’ (कर) लगा दिया जाए. उसके बाद हिंदुओं पर हर तरफ अत्याचार का बोलबाला हो गया था और अनेक मंदिरों को तोड़कर वहां मस्जिदें बनवा दी गईं, मंदिरों के पुजारियों, साधु-संतों की हत्या की गईं. हिंदुओं पर लगातार बढ़ते अत्याचारों से भयभीत बहुत सारे हिंदुओं ने मजबूरन इस्लाम कबूल कर लिया था.

औरंगजेब के अत्याचारों के उसी दौर में कश्मीर के कुछ पंडित मदद की आस और विश्वास के साथ तब गुरु तेग बहादुर जी के पास पहुंचे और उन्हें अपने ऊपर हो रहे जुल्मों की दास्तान सुनाते हुए कहा कि उनके पास अब दो ही रास्ते बचे हैं कि या तो वे मुस्लिम बन जाएं या अपना सिर कटाएं.

उनकी पीड़ा सुन गुरु जी ने गुरुनानक जी की पंक्तियां दोहराते हुए कहा-
"जे तउ प्रेम खेलण का चाउ। सिर धर तली गली मेरी आउ।।
इत मारग पैर धरो जै। सिर दीजै कणि न कीजै।।"

तब उन्होंने कहा था कि यह भय शासन का है, उसकी ताकत का है, पर इस बाहरी भय से कहीं अधिक भय हमारे मन का है, हमारी आत्मिक शक्ति दुर्बल हो गई है, उस जमाने में हिंदुओं की रक्षा करने और औरंगज़ेब से लड़ने का बीड़ा गुरु तेग बहादुर जी ने उठाया था.

22 नवंबर, 1675 को औरंगजेब के आदेश पर काजी ने गुरु तेग बहादुर से कहा, ''हिंदुओं के पीर! तुम्हारे सामने तीन ही रास्ते हैं, पहला, इस्लाम कबूल कर लो, दूसरा, करामात दिखाओ और तीसरा, मरने के लिए तैयार हो जाओ. इन तीनों में से तुम्हें कोई एक रास्ता चुनना है.'' अन्याय और अत्याचार के समक्ष झुके बिना धर्म और आदर्शों की रक्षा करते हुए गुरु तेग बहादुर ने तीसरे रास्ते का चयन किया. जालिम औरंगजेब को यह सब भला कहां बर्दाश्त होने वाला था,सो उसने गुरु तेग बहादुर का सिर कलम करने का हुक्म सुना दिया. 24 नवंबर, 1675 का दिन था, चांदनी चौक के खुले मैदान में एक विशाल वृक्ष के नीचे गुरु तेग बहादुर समाधि में लीन थे, वहीं औरंगजेब का जल्लाद जलालुद्दीन नंगी तलवार लेकर खड़ा था. 

अंतत: काजी के इशारे पर जल्लाद ने गुरु तेग बहादुर का सिर धड़ से अलग कर दिया.आज उसी स्थान पर ऐतिहासिक गुरुद्वारा शीशगंज साहिब है. बाबर की तारीफ़ करने वाले अय्यर साहब उसी मुगल वंश के इतिहास के इस सच का भी जिक्र करने की हिम्मत कभी जुटा पाएंगे?

नोट- उपरोक्त दिए गए विचार व आंकड़े लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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