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सात साल बाद उसी ध्रुव पर यूपी की राजनीति, कितना कमाल कर पाएगी अखिलेश-राहुल की जोड़ी

राहुल गांधी की न्याय यात्रा उत्तर प्रदेश में है. यात्रा रायबरेली पहुंची, लेकिन तब अखिलेश यादव वहां यात्रा में शामिल नहीं हुए. जब यात्रा बिहार में थी तब तेजस्वी यादव ने उस जीप की ड्राइविंग सीट संभाली थी, जिस पर राहुल सवार हुए थे, ऐसा यूपी में नहीं हुआ. अखिलेश यादव ने कहा था कि जब तक सीटों पर बात नहीं बनती है तब तक ड्राइविंग सीट नहीं संभालूंगा. अब बात बन गई है और सपा ने कांग्रेस के लिए 17 सीटें छोड़ी है, इस बात की घोषणा भी हो चुकी है. यूपी में अब इंडिया गठबंधन की बात बनती दिख रही है और अब अखिलेश ने यह बयान भी दे दिया है कि वह केवल यात्रा में शामिल ही नहीं होंगे, बल्कि सपा ने कुछ और भी बड़ा सोच रखा है. 

कांग्रेस और सपा के बीच तस्वीर साफ 

जिस दिन अखिलेश यादव को रायबरेली में न्याय यात्रा में शामिल होना था और उसके पहले उन्होंने बयान दिया कि जब तब कांग्रेस सीटों पर फैसला नहीं करेगी, गठबंधन पर फैसला नहीं करेगी, तब तक यात्रा में शामिल नहीं होंगे. उसके बाद से दबाव बहुत अधिक बढ़ गया. यह भी चर्चा होने लगी कि यूपी में इंडिया गठबंधन टूट सकता है और दूसरी तरफ अखिलेश यादव भी अपनी पार्टी में घिरे हुए थे क्योंकि उनकी पार्टी से स्वामी प्रसाद मौर्य ने इस्तीफा दिया था, पार्टी के अंदर असंतोष था, पल्लवी पटेल के तेवर भी बहुत तीखे थे, कांग्रेस के ऊपर बहुत दबाव था. दोनों दबाव मिले और उसके अगले दिन मल्लिाकार्जुन खड़गे ने अखिलेश यादव से बात की. बातचीत में मल्लिाकार्जुन खड़गे ने अखिलेश यादव से कहा कि एक से ढ़ेड घंटे के भीतर इस मामले का हल हो जाना चाहिए. उत्तर प्रदेश में सीटों को लेकर कांग्रेस की इकाई कुछ सीटों को लेकर काफी संजीदा थी.

उनकी जिद ये थी कि मुरादाबाद और संभल की सीटें उनको चाहिए. जबकि अखिलेश यादव के पास दोनों सिटींग एमपी सीटें है, इतना ही नहीं दोनों सीटों की नुमाइंदगी मु्स्लिम सांसदों की है. कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के बीच सीटों को लेकर लड़ाई हो सकती है उसे लेकर भी काफी सचेत थे. बातचीत का सिलसिला तेज हुआ और 12 बजते ही दोनों दल इस फैसले पर पहुंचे कि समझौता हो गया है, सीटों के ऊपर भी बात हुई , तीन बजते-बजते तस्वीर साफ हो गई. 

कुछ बड़ा करने की है योजना

अखिलेश यादव हालांकि तब लखनऊ में नहीं थे, जब समझौता हुआ लेकिन उत्तर प्रदेश के सपा के अध्यक्ष और कांग्रेस-अध्यक्ष के बीच जब प्रेस कांफ्रेस हो गई तब तस्वीर पूरी तरह से बदल गई. वो पल ऐसा था कि सपा के भीतर जो बगावत के सुर उभर रहे थे, सहयोगियों के बगावत के सुर उभर रहे थे, उसे उन्होंने ठंडा कर दिया. ये अखिलेश यादव के साथ-साथ कांग्रेस के लिए भी आवश्यक था. गुरुवार (22 फरवरी ) को अखिलेश यादव को यात्रा में शामिल होने के लिए निमंत्रण देकर बकायदा कांग्रेस का शीर्ष सपा के दफ्तर गया, समारोह पूर्वक निमंत्रण दिया गया.

अखिलेश यादव ने कहा कि अब हम न सिर्फ यात्रा में शामिल होंगे बल्कि हम कुछ और बड़ा प्लान कर रहें है. इसका अर्थ यह हुआ कि कांग्रेस और सपा के बीच जो हिचकिचाहट थी वो अब दूर हो चुकी है. ये यात्रा पश्चिमी उत्तर प्रदेश में है और ये यात्रा इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि यहीं से जयंत चौधरी ने साथ छोड़ा था जो कि कमजोरी मानी जा रही है. उस कमजोरी को दोनों दल मिलकर कैसे पूरा करते है इसपर सबकी नजर जरूर टिकी रहेगी. 

इंडिया गठबंधन की तस्वीर साफ

दूसरी तरफ पल्लवी पटेल का बयान आया, उन्होंने कहा कि अखिलेश बड़े भाई है, वहीं फैसला करेंगे और हम सभी पीडीए है और मैं अपना वोट रामजीलाल सुमन को दूंगी, इससे राज्यसभा में उनकी राह आसान हो गयी है.. कुल मिलाकर छोटे-छोटे दबाव वाली राजनीति की जा रही थी. लेकिन अब फैसला हो गया और उत्तर प्रदेश में इंडिया गठबंधन की तस्वीर साफ है. एक और संभावना के संकेत मिले जब रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया के घर राम गोपाल यादव गए, उनसे बातचीत हुई. गुरुवार(22 फरवरी) को अखिलेश यादव ये सवाल पूछा गया कि क्या रघुराज प्रताप सिंह पार्टी में आयेंगे. सवाल के जवाब में अखिलेश यादव ने कहा कि बिल्कुल जो भी आना चाहेगा, वह उसका स्वागत करेंगे. 

7 साल में परिपक्व हुए राहुल-अखिलेश

2017 की तस्वीर बहुत अलग थी, जब कांग्रेस और सपा ने विधानसभा का चुनाव साथ लड़ा था और हार गए थे. कांग्रेस और सपा के बीच गठबंधन बहुत जल्दबाजी में किया गया था. क्योंकि परिस्थितियां ऐसी थी कि अखिलेश यादव की पार्टी टूट चुकी थी और उनके पास चुनाव में जाने के पहले वक्त नहीं था और पार्टी संगठन बिल्कुल टूटा हुआ था. शिवपाल यादव भी अलग हो गए थे. ऐसे में अखिलेश यादव के पास न कोई परिपक्व सलाहकार था और न ही वह इस तरह की राजनीति के आदी थे. उस बीच कांग्रेस ने उत्तर प्रदेश में 100 सीटें ली थी, हालांकि कांग्रेस के पास कैंडिडेट्स की भी कमी थी.

कई जगह इतना भम्र हुआ कि दोनों पार्टियों के बीच आपस में लड़ाई भी हुई. उस समय कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व ढुलमुल स्थिति में था. राहुल गांधी में भी परिपक्वता की बहुत अधिक कमी थी. लेकिन 2017 से 2024 के बीच जो समय बीता है, 7 साल में बहुत सी चीजें बदली है. राहुल गांधी की धारणा जनता के बीच में काफी हद तक बदली, वो जनता के बीच जा रहे है, बातें कर रहें है, उनकी बातें सुन रहें है. 

बदल सकता है कांग्रेस का वर्तमान

कहीं न कहीं राहुल गांधी की छवि थोड़ी बदली है. अखिलेश यादव ने मायावती के साथ समझौता किया, लेकिन बाद में वह भी कमजोर पड़ गया. सारा फायदा मायावती को पहुंचा, अखिलेश यादव ने उससे भी बहुत कुछ सीखा.  आज के समय में जो देश का माहौल है, उससे साफ बात है कि चुनाव वर्तमान सरकार के खिलाफ या उसे समर्थन में होना है. जहां दो ध्रुव है और ये ध्रुव के भीतर ही चुनाव लड़ा जाना है. ऐसे में कांग्रेस ने उत्तर प्रदेश में अधिक सीटों को लेकर समझदारी दिखाई. अखिलेश यादव के पास उनके कोटे में 63 सीटें है, जो कि उन्होंने 3 से 5 तक अपने दूसरे सहयोगियों में बांटने के लिए तैयार है. अब देखना यह है कितना तालमेल बनता है और यह जिम्मेदारी दोंनो पार्टियों के नेताओं के पास होगी.

हालांकि कांग्रेस के पास पूरे उत्तर प्रदेश में कोई ऐसा संगठन नहीं है जो प्रभाव डाले लेकिन कुछ जगहों पर बहुत मजबूत है. कांग्रेस की संभावना बढ़ गई है और उन्हें लगता है कि 17 सीट मिली है उसमें कुछ सीटें जीतने की स्थिति में है. यदि वे 6 या 7 सीटें भी जीत जाते है तो उत्तर प्रदेश में कांग्रेस का परिदृश्य बदल सकता है. अखिलेश यादव विपक्ष के सबसे बड़े नेता के तौर पर स्थापित हो सकते है, इसमें सपा का फायदा है. एक संकेत भी मिला है कि कुछ दिनों में आगरा में शायद कुछ हो सकता है. चुनाव की घोषणा के पहले कांग्रेस और सपा साथ दिखाई देंगे. दोनों दलों ने अपने अतीत के असफलताओं को, गठबंधन में मिली विफलताओं से काफी कुछ सीखा है और उसके बाद वे अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ने के लिए तैयार है.

[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. यह ज़रूरी नहीं है कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.]

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