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ट्रूडो के अहंकार से भारत और कनाडा के रिश्ते हैं न्यूनतम स्तर पर, भारत नहीं करेगा सम्मान से समझौता

भारत और कनाडा के रिश्तें में अब गर्माहट नहीं रही, बल्कि सच कहें तो तल्खी बढ़ती ही जा रही है. कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो की जबान पिछले साल फिसली थी और उन्होंने बिना किसी सबूत के कनाडा की संसद में कह दिया था कि निज्जर की हत्या में भारत की खुफिया एजेंसियों का हाथ है. फिर दोनों देश के बीच कूटनीतिक-डिप्लोमैटिक रिश्ते बदले और अब कनाडा ने भारत पर एक और आरोप लगाया है कि भारत उनकी घरेलू राजनीति में हस्तक्षेप कर रहा है. वहां के चुनाव को प्रभावित करने की कोशिश कर रहा है. इस बीच दोनों देशों के बीच वीजा प्रतिबंध से लेकर डिप्लोमैटिक स्टाफ में कमी करने तक का काम हो चुका है. कनाडा यह भूल रहा है कि भारत एक संप्रभु राष्ट्र है और बिना किसी सबूत के उस पर आरोप लगाना गलत बात है. 

कनाडा में भारतीय प्रभावित करते हैं राजनीति 

भारत और कनाडा के ऐतिहासिक और लोकतांत्रिक पृष्ठभूमि को देखा जाए तो कनाडा में लगभग 9 लाख 60 हजार के करीब इंडियन रहते है और जहां-जहां इंडियन रहते है भले ही वो अमेरिका हो, मैक्सिको हो, लैटिन अमेरिका हो, वहां पर भारत के सबंध बहुत ही अच्छे हो जाते है. ऐसा कहा जा सकता है कि जो 9 लाख 60 हजार लोग है, उनमे से 50 प्रतिशत लोग सिख समुदाय के है, 30 प्रतिशत लोग हिन्दू और बाकी धर्म के भी लोग हैं. कनाडा में इतनी अधिक संख्या में भारतीयों की उपस्थिति के बावजूद भी स्थितियां इतने खराब स्तर पर कैसे पहुंची, कि टूडो ने बिना किसी सबूत के भारत के ऊपर निशाना बनाया है.  वहीं अमेरिका के साथ भी हमारे संबंधों में तल्खी आ रही है, अमेरिका को भी बीच में कूदकर कूदकर ये कभी नहीं कहना चाहिए था कि एक भारतीय व्यक्ति निखिल गुप्ता पतवंतसिंह पन्नू को मारने की योजना बना रहा है. पूरा का पूरा नार्थ अमेरिका और वेस्ट के ऊपर  पहले से ही दाग लगा हुआ है भारत के बुद्धिजीवियों में, वो इस तरह की हरकतों से और भी गहरा होता जाता है. 

खालिस्तान है बड़ा मुद्दा

वर्तमान की बात की जाए तो सारा मुद्दा खालिस्तान का है. भारत का संबंध खराब नहीं रहा है क्योंकि अभी कुछ दिन पहले कनाडा का एक सैन्य प्रतिनिधि मंडल आया हुआ था जो कि भारतीय सेना के प्रतिनिधि के साथ ट्रेनिंग और प्रेस कॉन्फ्रेंस करके गया है.  जब वहां के प्रतिनिधि मंडल से भारतीय प्रेस ने संबंधों को लेकर सवाल पूछा तो वहां के प्रतिनिधि मंडल के प्रमुख ने कहा कि भारत- कनाडा संबंध के रक्षा-सहयोग में कहीं भी कोई कमी नहीं आयेगी, कहीं भी कोई रुकावट नहीं आयेगी, और जो भी भारत और कनाडा के बीच कूटनीति चल रहा है,जिस एलिगेशन की बात चल रही है,उसके चलते हमारे डिफेंस कार्पोरेशन पर कोई असर नहीं होगा. इसके अलावा कनाडा का जो विपक्ष है, उसके प्रमुख ने भी यह कहा है कि कनाडा में जिस तरह से इमरजेंसी लॉ का इस्तेमाल किया गया है, रूल ऑफ लॉ की अवधारणा को जिस तरह से नकारा गया है अपने आप में ही एक गलत प्रयोग है, गलत पॉलिसी है.

टूडो को ऐसा नहीं करना चाहिए था. वहां की सुप्रीम कोर्ट ने अभी हाल ही में यह फैसला दिया है कि इमरजेंसी पावर को सरकार इस्तेमाल कर रही है, वह गलत है. हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि काफी वर्षो से, जबसे भारत और कनाडा के बीच कूटनितिक मान्यता एक दूसरे को दी और संबंध स्थापित किए. और विभिन्न क्षेत्रों जैसे एविएशन, टेक्सटाइल, कैमिसल्स और डिफेंस कार्पोरेशन, डायमंड्स इन सारे क्षेत्रों में काफी आदान-प्रदान होता है. 

भारत-कनाडा के संबंधों में तल्खी, पर खराब नहीं

यदी हम कनाडा सरकार के आंकड़ो को देखें और यह हमारे विदेश मंत्रालय की विज्ञप्ति ने भी बताया है, कि हम दोनों देशों के बीच संबंध प्रगाढ़ हैं और जो व्यापार घाटा है, वह भी भारत के पक्ष में है. यहां हम अच्छे दोस्त हैं. देखना ये होगा कि हिंद प्रशांत क्षेत्र में निज्जर कांड और पन्नू कांड का क्या असर होगा, क्योंकि भारत, अमेरिका, जापान, आस्ट्रेलिया क्वाड के मेंबर हैं. कनाडा इसका सदस्य नहीं है. कनाडा को जल्द शामिल करने की बात की जा रही है. एक मिडिल पावर और एक मिडिल ग्राउंड स्टेट के ओहदे से कनाडा भी ऊपर की ओर बढ़ना चाहता है.

यदि भारत के साथ कनाडा के रिश्ते खराब हुए तो हिंद-प्रशांत क्षेत्र में कनाडा के प्रसार-प्रचार में भारत व्यवधान प्रस्तुत कर सकता है. जहां तक भारतीय विदेश नीति का सवाल है, तो वह 2014 से ही प्रधानमंत्री नरेंन्द्र मोदी के आने के से बड़ी ही आक्रमक हो गई है. नेहरू काल में जो विदेश नीति होती थी या यूपीए 1 और यूपीए 2 के समय जो विदेश नीति हुआ करती थी, वह प्रतिक्रियावादी यानी रिएक्टिव हुआ करती थी. यदि हमारे ऊपर कोई आरोप लगता था, कोई विवाद होता था तो हम सिर्फ जवाब ही दे पाते थे.

जब से भाजपा की नरेंद्र मोदीनीत सरकार आई है, भारत की तरफ से उरी किया गया, बालाकोट का जवाब दिया. ऐसी कई सारी घटनाएं हुई जिसमें भारत ने अपने दुश्मनों को मुंहतोड़ जवाब दिया. एस. जयशंकर ने भी बड़े ही आक्रमक ढंग से सितम्बर 2023 में जवाब दिया जब वो यूनाइटेड नेशन्स गए थे, उनसे अमेरिका के एक थिंक टैंक ने न्यूयॉर्क में पूछा कि आपका इन मसलों पर क्या कहना है तो जयशंकर जी ने केवल दो शब्दों में जवाब दिया था कि हमने कभी माना नहीं कि ऐसी घटना हुई है या नहीं! भारत की नीति है ही नहीं, भारत की विदेश नीति कोई भी अनधिकारिक न्यायिक काम करने में विश्वास नहीं रखती है औऱ हमने आज तक हमारी याद में कभी भी एक्सट्रा जूडिशियल किलिंग नहीं की.

यदि कनाडा को संदेह है तो सामने आकर सबूत रखे और जब वो सामने सबूत रखेगा तो हम बात करने के लिए तैयार है. कहीं कोई गलती हुई होगी तो हम उसको सुधारने के लिए तैयार है.  कनाडा और भारत के संबंध खराब नहीं क्योंकि अब टूडो भी अब इतने पॉप्यूलर नहीं रहे. वह अपने चुनावी फायदे के लिए जबरदस्ती मुद्दा बना रहे हैं और भारत उनको मुंहतोड़ जवाब देने में समर्थ है. 

[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. यह ज़रूरी नहीं है कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.] 

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