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ब्रिटेन, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया से यूएस तक खालिस्तान के नाम पर भारत का विरोध पाकिस्तान की देन, असल मंशा खतरनाक

बीते दिनों (8 जुलाई को) ब्रिटेन, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका की सड़कों पर खालिस्तान समर्थकों ने जुलूस निकाला. हालांकि, कड़ी मेहनत के बावजूद इनके यहां भीड़ नहीं जुटी, लेकिन जिस तरह भारतीय दूतावास के अधिकारियों के नाम और फोटो के साथ उनको मारने की अपील हुई, किल इंडिया जैसे नारे लगे, उसने भारत सरकार की भृकुटि टेढ़ी तो कर ही दी है. भारत ने सख्त लहजे में चारों देशों को डिप्लोमैटिक-चेतावनी दी है और कहा है कि खालिस्तानियों पर अविलंब नियंत्रण किया जाए. इन पर कार्रवाई भी हो रही है, लेकिन जिस तरह पाकिस्तान लगातार अपनी खुफिया एजेंसी के माध्यम से खालिस्तान के कथित आंदोलन को भड़का रहा है, वह जरूर चिंता की बात है. 

पाकिस्तान कश्मीर के मसले पर बौखलाया

पिछले कुछ वर्षोें से हम देख रहे हैं कि इन चार देशों से खालिस्तानियों को समर्थन मिल रहा है. खालिस्तान के समर्थक कुछ अधिक सक्रिय भी हैं इन देशों में, तो हमें यह भी देखना चाहिए कि जब 2019 में भारत सरकार ने कश्मीर से अनुच्छेद 370 को हटा दिया, तब से ही पाकिस्तान खासा गुस्से में है. उसने अपनी कश्मीर नीति को फिर से, नये सिरे से अंजाम देना शुरू किया है. इस दौर में पाकिस्तान का एजेंडा के-2 (यानी कश्मीर और खालिस्तान) है, जिसकी वजह से वह पूरी शिद्दत से खालिस्तानियों का समर्थन कर रहा है. इसीलिए, आईएसआई के मार्फत एक नया ग्रुप भी बनाया गया- कश्मीर-खालिस्तान रेफरेंडम फ्रंट और इसकी आड़ में तमाम तरह की उचित-अनुचित कार्रवाई को अंजाम दिया जाता है. पंजाब में फिलहाल पाकिस्तान ड्रोन से ड्रग्स और हथियार सप्लाई करता है, और वही हथियार फिर कश्मीर में भी जाते हैं.

हिंदुस्तान ने तो पाकिस्तानी एजेंसियों को यह भी चेतावनी दी है कि करतारपुर कॉरिडोर का बेजा इस्तेमाल कतई न हो, जो पाकिस्तान अब तक करता आ रहा है. पिछले क्रिकेट विश्व-कप के दौरान, जो ब्रिटेन में हुआ था, उस दौरान भी खालिस्तानी स्टेडियम में रेफरेंडम वाली टी-शर्ट पहन कर आ जाते थे. स्टेडियम के ऊपर से हवाई जहाज भी गुजारा जाता था, जिस पर रेफरेंडम-2020 पेंट होता था. भारत की कड़ी आपत्ति के बाद ब्रिटेन की सरकार ने स्टेडियम के ऊपर नो-फ्लाई ज़ोन घोषित किया और ऐसे लोगों के स्टेडियम में प्रवेश पर भी रोक लगा दी. अभी हमने देखा कि खालिस्तानी आतंकी निर्झर की हत्या को लेकर भी खालिस्तानी एंटी-इंडिया सेंटिमेंट बनाना चाह रहे हैं. उसकी हत्या का उपयोग करते हुए धरना-प्रदर्शन कर रहे हैं. मार्च में कनाडा के दूतावास पर इन आतंकियों ने 2 ग्रेनेड फेंके थे, सैन फ्रांसिस्को के कांसुलेट में भी इन्होंने तोड़फोड़ की और एक जूनियर अधिकारी उसमें घायल भी हुए, ब्रिटेन में भी दूतावास में इन्होंने हंगामा मचाया था, वह भी हमने देखा है. भारत ने कूटनीति और डिप्लोमैसी से इनका जवाब भी भरपूर दिया है.  

अलग हैं इस बार के हालात

8 जुलाई का धरना-प्रदर्शन इस मामले में अलग है कि पहले जो सैकड़ों की संख्या में ये खालिस्तान-समर्थक जमा होते थे, इस बार उनकी संख्या में अभूतपूर्व कमी दिखी. ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका और कनाडा में भी इनके पक्ष में 30-40 से अधिक लोग नहीं जुटे. इनके सामने ही भारत के प्रवासियों ने इनका विरोध भी किया. तिरंगा लेकर निकलनेवाले भारतीयों की संख्या अभूतपूर्व रही है. भारत वैसे लगातार इन देशों से अपना विरोध दर्ज करा रहा है. हमारे विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा है कि ये लोग फ्रीडम ऑफ एक्सप्रेशन का नाजायज फायदा उठा रहे हैं और इनके प्रदर्शन कहीं से शांतिपूर्ण नहीं है, ये किल इंडिया के नारे लगा रहे हैं, दूतावास के कर्मियों के फोटो दिखाकर उनको मारने के लिए उकसा रहे हैं. भारत के कड़े रुख को देखते हुए इन चारों ही देशों ने भारत के साथ खड़े होना चुना है. कनाडा की अगर हम बात करें तो वहां अच्छी-खासी संख्या में पंजाबी रहते हैं. उनमें से कुछ और ध्यान रहे, वे कुछ ही हैं, खालिस्तान को सपोर्ट करते हैं. वहां जो वर्तमान सरकार है, जस्टिन ट्रूडो की, वह चंद वोटों के लालच में इनका समर्थन कर रही है. अभी चंद दिनों पहले ही इन खालिस्तानियों ने इंदिरा गांधी की हत्या को बहुत क्रूड तरीके से चित्रित किया था. वैसे, इन्हें जानना चाहिए कि भस्मासुर को पैदा करना तो आसान है, लेकिन उस पर नियंत्रण रखना या उसका नाश करना उतना ही कठिन है. ट्रूडो और कनाडा पर दबाव है, लेकिन वह अपने वोट बैंक के चक्कर में अनदेखी कर रहे हैं. 

भस्मासुर को काबू करना कठिन

हमने देखा है कि शीतयुद्ध के काल में कबायलियों को हथियार दिए गए और आज वे ही तालिबान बन कर पूरी दुनिया को परेशान कर रहे हैं. उसके बाद किस तरह अमेरिका पर हमला होता है और किस तरह आतंक के खिलाफ युद्ध शुरू होता है, वह हमने देखा है. अमेरिका ने इसे भुगता है. तो, बेहतर है कि ये चारों देश भी उससे सबक लें और अपने यहां मौजूद इन तत्वों पर लगाम कसें तो खुद भी सुखी रहेंगे और दुनिया भी सुखी रहेगी. इसके साथ ही, भारत जो अब दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है, उससे भी उनके संबंध खराब नहीं होंगे। जहां तक हमारी डिप्लोमैसी का सवाल है, उसे असफल करार देना बेहद जल्दबाजी की बात होगी. खालिस्तानियों के खिलाफ एक्शन लिया जा रहा है, भारत ने कड़ा विरोध लगातार दर्ज किया है, यही वजह है कि प्रदर्शनकारियों की संख्या भी घटी है. भारत दरअसल अब छोटी-छोटी घटनाओं पर रिएक्ट कर रहा है, जो हम पहले नहीं करते थे. भारत की बात सुनी जा रही है. चाहे अमेरिका का दौरा हो या ब्रिटेन-ऑस्ट्रेलिया का, पीएम से लेकर हमारी विदेश सेवा के अधिकारियों ने भी बार-बार इन घटनाओं पर प्रतिक्रिया दी है और उसका बढ़िया परिणाम भी सामने आ रहा है. 

थोड़ी सी बात इतिहास की भी याद रखी जाए. 1971 में बांगलादेश बना और भारत के कारण बना, यह भी किसी से छिपा हुआ नहीं है. वह घाव तब से पाकिस्तान के लिए नासूर बना है और वह तब से भारत के खिलाफ लगातार षडयंत्र की ही मुद्रा में रहता है. 2019 के बाद से पाकिस्तान दोहरे दर्द में है, क्योंकि कश्मीर का स्पेशल-स्टेटस खत्म कर दिया गया. तब से वह अपने के2 प्लान पर जोरशोर से काम कर रहा है. हालांकि, भारत सरकार लगातार इन सभी चुनौतियों से निबट रही है. पंजाब में ड्रोन के माध्यम से ड्रग्स और हथियार भेजे जा रहे हैं, लेकिन सरकार उन साजिशों को नाकाम कर रही है. भारत ने तो बल्कि इन चारों देशों को यह भी कहा है कि अगर उनके मन में किसी तरह की दुविधा है, तो वे भी पंजाब आएं और देखें कि यहां हालात क्या हैं? यह पाकिस्तान की तिलमिलाहट है, जो बार-बार सतह पर सामने आ जा रही है. कुछ तालिबानी आतंकी गायब हो गए हैं, कुछ की हत्या हो गयी है और आईएसआई अब उनसे भी रॉ को जोड़कर भारत को बदनाम कर रही है. यह दरअसल फंडिंग की बंदरबांट का मामला है, जो खालिस्तानियों के विभिन्न ग्रुप्स में फैल गया है और ये लोग एक दूसरे को ही निबटा रहे हैं. 

[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.]

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