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रूस-अमेरिका के बीच न्यूट्रल ग्राउंड तलाशने की होगी भारत की कोशिश, जी20 का जॉइंट स्टेटमेंट राजनयिक कुशलता की होगी परीक्षा

दिल्ली में अभी गजब का माहौल है. सजी-धजी दिल्ली में दो दिनों का जी20 शिखर सम्मलेन कल यानी 9 सितंबर से होगा. हालांकि, रूस के राष्ट्रपति व्लादीमिर पुतिन और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के नहीं आने से थोड़ा माहौल में तनाव है, लेकिन बाकी राष्ट्राध्यक्षों के आने से पूरी दुनिया का ध्यान इस सम्मलेन पर है. भारत के लिए बडी चुनौती है कि वह बिना किसी विवाद के एक जॉइंट डेक्लेरेशन निकाल ले जाने में सफल हो, क्योंकि पिछली बार बाली में ऐसा नहीं हो पाया था. रूस-यूक्रेन युद्ध ही इसकी वजह था. 

जिनपिंग-पुतिन नहीं आए, कोई बात नहीं

जी20 समिट में वैसे तो सऊदी अरब के शाह भी नहीं आ रहे हैं. उसी तरह जिनपिंग और पुतिन के नहीं आने को भी ऐसे देख सकते हैं कि घर में भी शादी-ब्याह होता है तो बहुत रिश्तेदार खुद नहीं आते, किसी और को भेज देते हैं, अपने प्रतिनिधि के तौर पर. फिर भी जी20 में जो 20 मुल्क हैं, जी7 के अलावा और 13 देश. इसके अलावा कई बहुपक्षीय संगठन भी हैं, जैसे आसियान, आइएमएफ, वर्ल्ड बैंक आदि तो इनके भी प्रमुख हैं. इस तरह करीबन 30 देशों और संगठनों के प्रमुख आ रहे हैं. भारत ने कई को खुद आमंत्रण दिया है, क्योंकि वह अपना वैश्विक रुतबा भी बढ़ाना चाहता था और यह राजनीति भी है. इसी क्रम में इन्होंने बांग्लादेश, इजिप्ट जैसे देशों को बुलाया है, भारत की कोशिश है कि अफ्रीका के मुल्क भी आएं. यह अपना कुनबा, अपना रुतबा बढ़ाने की कोशिश है. पिछले नवंबर से जी20 की प्रेसिडेंसी भारत के पास है. इस दौरान 60 शहरों में करीबन 250 अलग बैठकें हुई हैं. इनमें 990 करोड़ रुपए खर्च हुए हैं. इन मीटिंग्स में वित्त, टूरिज्म, हेल्थ इत्यादि विभिन्न विषयों पर बात हुई है. कश्मीर से कन्याकुमारी और ईंटानगर से राजकोट तक तमाम तरह की बैठकें हुई हैं. भारत ने साल भर तक इनमें पूरी तरह लोगों को भी इनवॉल्व किया और काफी हद तक इसका प्रचार-प्रसार भी किया. 

पहले भी भारत ने किए ऐसे सम्मेलन

हालांकि, ऐसा नहीं है कि भारत में ऐसा कुछ और इतने बड़े स्तर का पहली बार हो रहा है. हां, जी20 सम्मेलन हो रहा है, क्योंकि इसकी उम्र अभी तुलनात्मक तौर पर कम है. जी20 के पहले नाम (गुटनिरपेक्ष आंदोलन) का सम्मेलन हुआ था, कॉमनवेल्थ स्टेट्स के तौर पर 76 देशों का सम्मेलन हुआ था. उस समय भी बड़े स्तर पर इंतजामात हुए थे. उस समय भी दिल्ली में कई चीजें बनी थीं. सरकार ने तब भी इंफ्रास्ट्रक्चर बनाने के तौर पर उनका इस्तेमाल किया था. जितनी भी बेहतरी की जा रही है, उसी तरह के इंतजाम उस समय भी हुआ था. हां, उस समय आज की तरह जाम नहीं लगे थे, काफी ढंग से काम हो गया था. भारत में एशियाड हुआ, कॉमनवेल्थ हुआ और यूएन के भी कई कार्यक्रम हुए. आजादी के तुरंत बाद ही एशियाड का आयोजन किया गया और तब ही वह स्टेडियम बना, जिसे आज हम ध्यानचंद स्टेडियम कहते हैं. भारत में पहले भी इस तरह के कार्यक्रम होते रहे हैं.

जी20 एक कॉन्सेप्ट है, जो जी7 से निकला है. जो दुनिया के सात सबसे बड़े पावर हैं, सबसे बड़ी ताकत हैं, उसी से यह निकला है. इसका आर्थिकी से लेना देना है. जी7 का पूरी दुनिया के 70 फीसदी इकोनॉमी पर कब्जा होता है और वे मल्टीनेशनल्स को लेकर कंसर्न्ड होते हैं. जी7 के जो शासक हैं, वे देखते हैं कि उनके हितों को कैसे संभाला जाए? जी20 उन्हीं मल्टीनेशनल्स के प्रभाव को आगे कैसे बढ़ाया जाए, या उसका उपयोग कैसे किया जाए, दुनिया के बहुराष्ट्रीय निगमों, व्यापारों, मैन्युफैक्चरिंग को वे जिस तरह कंट्रोल करते हैं, उसे आगे कैसे बढ़ाया जाए, वही इन देशों के नेता आगे मिलकर काम करते हैं. वास्तविक कान्सेप्ट तो यही है, बाकी सैद्धांतिक तौर पर यही कहा और सिखाया जाता है कि सब लोग साथ मिलेंगे, बैठेंगे तो दुनिया का व्यापार बढ़ेगा, दुनिया का भला होगा. तो, वास्तविक और कहे हुए लक्ष्य में अंतर होता है. 

जॉइंट डेक्लेरेशन होगी बड़ी चुनौती

अभी भी, जी20 की जितनी मीटिंग्स हुई है, किसी में भी जॉइंट डेक्लेरेशन नहीं हुई है. उसकी एक खास वजह रही है. उसे आप चीन कहें, जिनपिंग कहें या पुतिन कहें, लेकिन कहीं से भी जॉइंट स्टेटमेंट नहीं आय़ा है, एक समरी-स्टेटमेंट आया है. इसकी वजह है. यूक्रेन-रूस युद्ध तो इन बैठकों के पहले शुरू हो गया था और इसके साथ ही रूस-चीन और अमेरिका-नाटो, ये जो बड़ी ताकतें हैं, वे दोनों अलग-अलग तरह से, अपने तरह से काम करने लगा. भारत का जो काम था, इस दौरान बैलेंस करना था, संतुलन बनाना था, बीच से राह निकालनी थी. इसके पहले अगर हम देखें तो बाली (इंडोनेशिया) में जो समझौता हुआ था, वहां भी संयुक्त बयान नहीं आया था. वहां भी रूस, चीन, नाटो और अमेरिका के बीच एकरूपता नहीं थी, एक मत नहीं बना था.

यूक्रेन को लेकर इन दोनों गुटों का रुख अलग है. रूस का जो रुख है, वह यूक्रेन की वजह से है, चीन का रुख दक्षिण चीन सागर और समंदर में ताइवान, जापान और अमेरिका की गतिविधियों पर है. अगर आप बारीकी से देखें तो पाएंगे कि हरेक वार्ता जो चीन और भारत के बीच हुई है, चीन कभी कहता नहीं है कि वह वार्ता नहीं करेगा, लेकिन उसके बावजूद आप देखेंगे कि हमारे पास जितने पोस्ट्स थे, आज उनमें से आधे से भी कम पोस्ट रह गए हैं. लद्दाख में जो चरवाहे अपने जानवरों को जहां तक ले जाते थे, वहां आज हिंदुस्तान वहां नहीं जा सकता था. अरुणाचल में जिस तरह चीन ने आपत्ति जताई, पाकिस्तान ने जो कश्मीर में आपत्ति जताई, उसका हालांकि कोई मतलब नहीं है, लेकिन आप देखें कि उसी तरह भारत को बहुत लाभ नहीं हुआ है. भारत को एक चीज का लाभ हुआ है. रूस के ऊपर जो सैंक्शन लगा, उसके बाद भारत ने रूस से तेल खरीदा. वह पब्लिक सेक्टर को नहीं मिला, बल्कि प्राइवेट सेक्टर को मिला और फिर उन्होंने उसे यूरोप में एक्सपोर्ट किया. उसको लेकर यूरोप और अमेरिका के मन में भी समस्या है. क्रूड के दाम जो अगस्त से बढ़ रहे हैं, तो वह फायदा जो हुआ, देश के लोगों को नहीं हुआ.  

2 बनाम 18

जी20 के सम्मेलन में 2 बनाम 18 हो जाता है, क्योंकि प्रतिबंध की वजह से रूस के साथ समस्या है. रूस के साथ जो पुराने मुल्क थे, उनमें कोई जी20 में नहीं है. एक बड़ा देश भारत ही है. चीन भी है. भारत के लिए फायदेमंद ये है कि वह एक सेंट्रल पॉइंट हो गया है. भारत के दूसरे देशों के साथ रिश्ते बेहतर हो गए हैं. जो बाइडेन चार दिन यहां रहेंगे. हालांकि, समस्या ये है कि अमेरिका चाहता है कि जो बयान हो, वह रूस के फेवर में न हो. भारत ऐसा करेगा नहीं. भारत चीन के खिलाफ भी नहीं जाएगा. भारत की कोशिश ये होगी कि वह बीच का रास्ता निकाले और जो 250 बैठकों के सैकड़ों मसले हैं, उनको देख लिया जाए और उनमें से जो 20 अहम मसले हैं, उन पर सहमति बनाए. वह रूस और पश्चिम के बीच पुल की तरह काम करने की कोशिश करेगा और यह कोशिश कितनी सफल होती है, यह देखने की बात होगी. 

[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.] 

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