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थाईलैंड के एशियन एथलेटिक्स चैंपियनशिप में शुभंकर बने हनुमान, भारत का 'सॉफ्ट पावर' दिख रहा चहुंओर

अभी हाल ही में 12 से 16 जुलाई 2023 तक थाईलैंड में चले एशियन एथलेटिक्स चैंपियनशिप के ऑफिशियल मैस्‍कॉट (शुभंकर) के रूप में हनुमानजी जी को चुना गया. उसके बाद से ही हनुमानजी जी और थाइलैंड के बीच के संबंधों को लेकर काफ़ी चर्चाएं हो रहीं हैं. भारत में भगवान हनुमान आस्था एवं श्रद्धा के प्रतीक माने जाते हैं. ऐसा माना जाता है कि हिंदू धर्म में हनुमान जी सबसे ज्यादा पूजे जाने वाले देवताओं में से एक है. भगवान हनुमान, प्रभु श्रीराम के अनन्य भक्त हैं. उन्हें भगवान शिवजी का ग्यारहवां रुद्र अवतार भी माना जाता है. हनुमानजी को बल एवं बुद्धि का प्रतीक भी माना जाता है. भारत में ऐसा माना जाता है कि जिन सात ऋषियों को इस पृथ्वी पर अमर होने का वरदान प्राप्त है, उनमें बजरंगबली भी शामिल हैं. 

25 वीं थी यह एशियाई एथलेटिक्स चैंपियनशिप 

मैस्कॉट (शुभंकर) का चयन मेजबान देश की ऑर्गेनाइजिंग कमेटी करती है जो कि अभी थाईलैंड के पास है. ऑर्गेनाइजिंग कमेटी ने बजरंगबली जी का चयन करते हुए अधिकारिक तौर पर कहा कि "हनुमान जी, भगवान राम की सेवा में गति, शक्ति, साहस और बुद्धि सहित असाधरण क्षमताओं का प्रदर्शन करते हैं. बजरंगबली की सबसे बड़ी ताकत उनकी दृढ़ निष्ठा और भक्ति है. इसी वजह से हनुमान जी को मैस्कॉट बनाने का फैसला किया गया है। 25वीं एशियाई एथलेटिक्स चैंपियनशिप-2023 का प्रतीक, खेलों में भाग लेने वाले एथलीट्स, उनकी स्किल, टीम वर्क, एथलेटिकिज्म, समर्पण और खेल कौशल के प्रदर्शन को दर्शाता है". बैंकॉक में मौजूद एथलीटों ने 45 अलग-अलग ट्रैक और फील्ड स्पर्धाओं में हिस्सा लिया. थाईलैंड के अलावा आठ देशों की टीमों ने इसमें हिस्सा लिया. इसमें चीन, भारत, इंडोनेशिया, जापान, दक्षिण कोरिया, मलेशिया, फिलीपींस, हॉन्ग-कॉन्ग एवं सिंगापुर शामिल हुए.

दक्षिण-पूर्व एशिया में पूजित है रामायण

दरअसल सिर्फ थाईलैंड में ही नहीं बल्कि लगभग पूरे दक्षिण-पूर्व एशिया के देशों में रामायण से जुड़े सभी तथ्यों एवं तत्वों को न सिर्फ माना जाता है बल्कि पूजा भी जाता है, यहाँ तक कि प्रभु राम के जीवन चरित्र का भी अनुसरण करने की कोशिश भी की जाती है. इंडोनेशिया जोकि मुस्लिम बहुल राष्ट्र है उसके बावजूद रामायण-महाभारत के नाटकों का मंचन वहां आम बात है और उनको वह अपनी सांस्कृतिक विरासत मानते हैं. दक्षिण कोरिया का राज परिवार भी अपने को पूर्वजों को अयोध्या से जोड़ कर देखता है. विश्व का सबसे बड़ा हिन्दू मंदिर अंगकोरवाट कंबोडिया में है. लगभग पूरे दक्षिण-पूर्व एशिया का हिन्दू इतिहास रहा है और उसके प्रमाण आज भी यहां देखने को मिल जाते हैं, जिसे इन देशों ने अपनी सांस्कृतिक धरोहर मान कर आज भी संजों कर रखा हुआ है. इसी वजहों से कई इतिहासकार दक्षिण-पूर्व एशिया के देशों को वृहत्तर भारत के नाम से संबोधित करते थे. 

'रामकियेन' है थाईलैंड का 'रामायण'

थाईलैंड में रामायण को रामकियेन के नाम से जाना जाता है जिसका शाब्दिक अर्थ है 'राम की महिमा', जोकि वाल्मीकि रामायण पर आधारित मानी जाती है. यह थाईलैंड के राष्ट्रीय महाकाव्यों में से एक है एवं थाई साहित्यिक सिद्धांत का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है. आपको थाईलैंड के बौद्ध मंदिरों की दीवारों पर रामायण से जुड़ी हुई कथाएं नज़र आ जायेंगी, तो नाटकों के मंचन और बैले डैंस की प्रस्तुतियों तक में इसकी कथाओं को स्थान दिया जाना आम बात है. थाईलैंड में 1782 ईसवी से चक्री राजवंश विराजित है. जिसकी स्थापना राजा राम 'प्रथम' द्वारा की गई थी. तब से लेकर आजतक थाईलैंड के राजा के नाम में राम शब्द का होना अनिवार्य हो गया है. वर्तमान में महा वजिरालोंगकोर्न वहाँ के राजा हैं जिनको प्रजा राम 'दशम' के नाम से संबोधित ही नहीं करती बल्कि अपने राजा को भी राम का वंशज मानकर उसे विष्णु के अवतार की संज्ञा भी देती है. इसीलिए अगर ये कहा जाए कि थाईलैंड में आज भी "राम-राज्य" है, तो गलत नहीं होगा. थाईलैंड के राजाओं की राज्याभिषेक अभी भी हिन्दू पुजारियों के माध्यम से होती है. ब्राह्मणों का राजभवन में काफ़ी आदर सत्कार भी किया जाता है.

यहां भगवान ब्रह्मा जी एवं भगवान इंद्र आदि देवताओं को भी पूजा जाता है. बौद्ध धर्म भी यहाँ भारत के ही माध्यम से पहुंचा इसीलिए यहाँ बौद्ध और ब्राह्मणवाद का संयोजन देखने को मिला. कहा जाता है कि राज्याभिषेक की प्रथा भारत से ही यहां आई है. थाईलैंड बौद्ध बहुल देश होने के बावजूद हिंदू धर्म में अटूट आस्था रखता है. इतिहास में थाईलैंड को सियाम के नाम से भी जाना जाता था और उसकी राजधानी का नाम अयुत्या था जोकि भारत के अयोध्या जो प्रभु राम की जन्म भूमि मानी जाती है से काफ़ी मिलता है. थाईलैंड में हिंदुओं की कुल आबादी इसकी जनसंख्या के मात्र 0.1 फीसदी है। बौद्ध-बहुल राष्ट्र होने के बावजूद, थाईलैंड में हिंदू धर्म का प्रभाव बहुत मजबूत है. अधिकांश थाई हिंदू बैंकॉक, चोनबुरी और फुकेत में रहते हैं. थाईलैंड के एयरपोर्ट का नाम स्वर्णभूमि है एवं यहां पर समुद्रमंथन दृश्य की बड़ी सी प्रतिमा भी उकेरी गई है. थाईलैंड के कई घरों में आपको तुलसी जी के पौधे भी आम रूप से दिखाई देंगे जोकि हिन्दू आस्था का एक प्रतीक है. 

विदेश मंत्री जयशंकर हैं थाईलैंड में मौजूद

शायद इन्हीं साँस्कृतिक धरोहरों को संजोते हुए, थाईलैंड ने एशियन एथलेटिक्स चैंपियंशिप के ऑफिशियल शुभंकर के रूप में हनुमानजी जी को चुना. भारत के विदेश मंत्री  एस. जयशंकर अभी अपनी थाईलैंड की यात्रा पर हैं. वहां उन्होंने भारतीय समुदाय के साथ बातचीत में भगवान हनुमान के बारे में बताते हुए कहा, "उनके लिए सभी समय के सर्वश्रेष्ठ राजनयिक भगवान हनुमान हैं, जिन्होंने "अज्ञात इकाई" से निपटा, सीता जी का पता लगाया, उनका मनोबल बढ़ाने में मदद की और सफलतापूर्वक वापस आए." जयशंकर ने कहा कि 2014 के बाद से हमारी कनेक्टिविटी थाईलैंड के साथ बढ़ी है. हमारे रक्षा एवं सुरक्षा संबंध भी मज़बूत हुए हैं. दोनों देशों का आपसी कारोबार भी सालाना 18 अरब डॉलर को पार कर चुका है. भारत-म्यांमार-थाईलैंड ट्राइलेटरल हाइवे का काम भी 70 फ़ीसदी तक पूरा हो चुका है और इसे जल्दी ही पूरा कर लिया जाएगा. दोनों देश मेकांग-गंगा सहयोग पर भी लंबे समय से सहयोग कर रहे हैं एवं दक्षिण-चीन सागर में भी चीन से मिल रही चुनौतियों को लेकर भी सजग हैं. 

हालांकि भारत एवं थाईलैंड में भौगोलिक, सांस्कृतिक, धार्मिक एवं सामाजिक नजदीकियां होने के बावज़ूद भी दोनों देशों के राजनीतिक संबंधों में थोड़े सामंजस्य की कमी नज़र आती है. जिसको 2014 के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सुधारने की कोशिश की और भारत की दो दशकों से भी पुरानी 'लुक-ईस्ट पॉलिसी' का नाम बदलकर "ऐक्ट-ईस्ट" किया एवं एक सकारात्मक ऊर्जा के साथ, दक्षिण पूर्व एशिया के देशों से संबंधों की नई इबारत लिखने की ओर प्रयासरत है जिसका आधार अगर साँस्कृतिक होगा तो भारत को सिर्फ थाईलैंड में ही नहीं अपितु पूरे दक्षिण पूर्व एशिया में अप्रत्याशित सफलता प्राप्त होगी.

[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.]

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