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मिज़ोरम में  MNF के ज़ोरामथंगा चौथी बार बन पायेंगे मुख्यमंत्री या ZPM के लालदुहोमा बनेंगे विकल्प, समझें हर पहलू

इस साल नवंबर में जिन पाँच राज्यों में विधान सभा चुनाव होना है,उनमें से एक राज्य मिज़ोरम है. मिज़ोरम विधान सभा में कुल 40 सीट है और यहां की सत्ता हासिल करने के लिए बहुमत का आँकड़ा 21 है. मिज़ोरम में एक ही चरण में 7 नवंबर को मतदान होगा और मतों की गिनती बाक़ी राज्यों के साथ ही 3 दिसंबर को होगी. मिज़ोरम उत्तर-पूर्व के सेवन सिस्टर्स के नाम से मशहूर 7 राज्यों में से एक है. मिज़ोरम से 318 किलोमीटर की सीमा बांग्लादेश से और 404 किलोमीटर की सीमा म्यांमार से जुड़ी हुई है. वहीं पूर्वोत्तर राज्यों में त्रिपुरा,असम और मणिपुर की सीमा मिज़ोरम से जुड़ी है.

मिज़ोरम है एक ईसाई बहुल राज्य

2011 की जनगणना के मुताबिक़ मिज़ोरम की आबादी क़रीब 11 लाख थी. साक्षरता दर क़रीब 92 फ़ीसदी है. मिज़ोरम एक ईसाई बहुल राज्य है. यहाँ की 87 फ़ीसदी आबादी ईसाई है. बौद्ध धर्म को मानने वाले लोगों की संख्या 8.51% है. वहीं हिन्दू आबादी 2.75% और मुस्लिम आबादी 1.35% है. मिज़ोरम में लोक सभा और राज्य सभा के लिए एक-एक सीट है.

मिज़ोरम 1987 में बना देश का 23वां राज्य

मिज़ोरम पहले असम का हिस्सा था. इससे अलग होकर 1972 में मिज़ोरम केंद्र शासित प्रदेश बना. उसके बाद 1986 में संसद से पारित 53वें संविधान संशोधन अधिनियम के ज़रिये मिज़ोरम पूर्ण राज्य बना. मिज़ोरम 20 फरवरी 1987 को भारत का 23वां राज्य बना. मिज़ोरम पीस अकॉर्ड पर 30 जून  1986 को भारत सरकार और मिज़ो नेशनल फ्रंट हस्ताक्षर करती है. इसके बाद मिज़ोरम के पूर्ण राज्य बनने का रास्ता साफ हो पाता है.

पूर्ण राज्य में लालडेंगा मिज़ोरम के पहले मुख्यमंत्री

पूर्ण राज्य बनने के बाद मिज़ो नेशनल फ्रंट के संस्थापक लालडेंगा मिज़ोरम के पहले मुख्यमंत्री बनते हैं. ध्यान देने वाली बात है कि केंद्र शासित प्रदेश के तौर पर भी मिज़ोरम में विधान सभा था, जिसमें 30 सीटें थी. मिज़ोरम में पहली बार  विधान सभा चुनाव अप्रैल 1972 में हुआ था,जिसमें कांग्रेस को महज़ 6 सीटों पर जीत मिली थी और बाक़ी की 24 सीटों पर निर्दलीय उम्मीदवार जीतने में सफल रहे थे. उसके बाद मिज़ो यूनियन के C. Chhunga बतौर केंद्रशासित प्रदेश मिज़ोरम के पहले मुख्यमंत्री बने थे.

MNF और ZPM के बीच काँटे की टक्कर

इस बार मिज़ोरम विधान सभा चुनाव बेहद दिलचस्प होने वाला है. मिज़ोरम में अभी ज़ोरामथंगा की अगुवाई में मिज़ो नेशनल फ्रंट की सरकार है. फ़िलहाल मिज़ो नेशनल फ्रंट एनडीए गठबंधन का हिस्सा है. इस बार सत्ता विरोधी लहर से होने वाले नुक़सान से बचते हुए मिज़ो नेशनल फ्रंट के सामने सत्ता में बने रहने की चुनौती है. पिछले बार के मुकाबले उसके सामने मुख्य विपक्षी दल ज़ोरम पीपुल्स मूवमेंट की तगड़ी चुनौती है. इस बार ज़ोरम पीपुल्स मूवमेंट सीधे मिज़ो नेशनल फ्रंट को टक्कर देते दिख रही है. इसके साथ ही कांग्रेस भी अपने पुराने गढ़ को वापस पाने के लिए एड़ी-चोटी का ज़ोर लगा रही है. मिज़ो नेशनल फ्रंट की सहयोगी बीजेपी के लिए तो कुछ अधिक संभावना नहीं दिख रही है, लेकिन उसकी कोशिश रहेगी कि प्रदेश में अपना जनाधार बढ़ा सके.

कांग्रेस और एमएनएफ के बीच 10-10 साल का ट्रेंड

मिज़ोरम में 1989 के विधान सभा चुनाव से एक ट्रेंड चला आ रहा है. यहां की जनता बारी-बारी से कांग्रेस और मिज़ो नेशनल फ्रंट पर लगातार दो कार्यकाल के लिए भरोसा जाते आ रही है. 1989 और 1993 में कांग्रेस की जीत हुई. फिर 1998 और 2003 में मिज़ो नेशनल फ्रंट की सरकार बनी.  उसके बाद 2008 और 2013 में ललथनहवला  कीअगुवाई में कांग्रेस की सरकार बनी. इसके बाद मिज़ोरम की जनता ने 2018 में ज़ोरामथंगा की पार्टी मिज़ो नेशनल फ्रंट को मौक़ा दिया. इस परंपरा के हिसाब से इस बार के चुनाव में ज़ोरामथंगा की दावेदारी भले ही बनती हो, लेकिन उनकी राह का सबसे रोड़ा ज़ोरम पीपुल्स मूवमेंट है.

ज़ोरामथंगा बन पायेंगे चौथी बार मुख्यमंत्री!

मिज़ो नेशनल फ्रंट एनडीए का हिस्सा है, लेकिन यहां एमएनएफ और बीजेपी अलग-अलग चुनाव लड़ रही है. मिज़ो नेशनल फ्रंट के अध्यक्ष ज़ोरामथंगा ने चुनाव तारीख़ की घोषणा से पहले ही सभी 40 सीट पर उम्मीदवारों का ऐलान कर दिया था. तीन को छोड़कर एमएनएफ ने बाक़ी मौजूदा विधायकों पर भरोसा जताया है. ज़ोरम पीपुल्स मूवमेंट से मिल रही कड़ी चुनौती की काट के लिए ज़ोरामथंगा की पार्टी एमएनएफ मिज़ो राष्ट्रवाद के मुद्दे को चुनाव प्रचार में ज़ोर-शोर से उठा रही है.

ज़ोरामथंगा की पार्टी मिज़ोरम में रह रहे म्यांमार और मणिपुर के चिन-कुकी-ज़ोमी शरणार्थियों के मसले पर मिज़ो लोगों की भावनाओं का लाभ लेना चाहती है. यह मुद्दा इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि चिन-कुकी-ज़ोमी और मिज़ो का संबंध एक ही जातीय जनजाति  (ethnic tribe) 'ज़ो' से  है. सियासी गलियारों में इस तरह की चर्चा हो रही है कि चुनावी लाभ को देखते हुए ही ज़ोरामथंगा ने केंद्र सरकार के निर्देश बावजूद म्यांमार के चिन-कुकी शरणार्थियों का बायोमेट्रिक डेटा जमा करने से इंकार कर दिया. ज़ोरामथंगा की इस रणनीति से बीजेपी के साथ होने से प्रदेश के कुछ तबक़े में पनप रही नाराज़गी को दूर करने में भी मदद मिलेगी.

क्या ZPM है मिज़ोरम के लोगों का नया विकल्प?

इस बार मिज़ोरम विधान सभा चुनाव का सबसे बड़ा सवाल यही है कि क्या ज़ोरम पीपुल्स मूवमेंट के रूप में प्रदेश के लोगों को नया विकल्प मिलेगा या एमएनएफ ही सत्ता में बनी रहेगी. दरअसल ज़ोरम पीपुल्स मूवमेंट का मकसद एमएनएफ और कांग्रेस के विकल्प के तौर पर ख़ुद को मिज़ोरम की जनता के सामने स्थापित करना है. आधिकारिक तौर से यह जुलाई 2019 में राजनीतिक पार्टी बनी. हालांकि इसी नाम से पिछला चुनाव लड़ चुकी है.

ज़ोरम पीपुल्स मूवमेंट के सबसे बड़े नेता लालदुहोमा

ज़ोरम पीपुल्स मूवमेंट के सबसे चर्चित चेहरे 74 साल के लालदुहोमा हैं. उनकी गिनती प्रदेश के वरिष्ठ नेता में होती है. आईपीएस से नेता बने लालदुहोमा की राजनीति की शुरूआत कांग्रेस से होती है. वे मिज़ोरम से 1984 में चुनाव जीतकर लोकसभा सांसद भी रह चुके हैं. मिज़ोरम में इंसर्जेंसी से निपटने में भी उनकी भूमिका रही है. इंदिरा गांधी सरकार ने 1984 में  एमएनएफ नेता लालडेंगा से बातचीत करके विद्रोह सुलझाने का काम लालदुहोमा को सौंपा था. उन्होंने लंदन जाकर लालडेंगा को भारत सरकार के साथ शांति वार्ता के लिए राजी किया. लालदुहोमा ने मिज़ो लोगों को संदेश देने के लिए भी लालडेंगा को तैयार किया कि कांग्रेस शांति स्थापित करने वाली पार्टी है.

दल-बदल कानून से अयोग्य होने वाले पहले सांसद

हालांकि बाद में जल्द ही लालदुहोमा का कांग्रेस से मोहभंग हो गया. लोक सभा सांसद रहते ही उन्होंने 1986 में कांग्रेस की सदस्यता छोड़ दी. बाद में लोक सभा स्पीकर ने दसवीं अनुसूची में शामिल दल-बदल कानून, 1985 के (एंटी-डिफेक्शन लॉ) अयोग्य घोषित कर दिया. लालदुहोमा पहले ऐसे सांसद थे, जो दसवीं अनुसूची में शामिल दल-बदल कानून के तहत अयोग्य घोषित किये गये थे. लालदुहोमा मिज़ो नेशनल यूनियन, मिज़ोरम पीपुल्स कॉन्फ्रेंस, ज़ोरम नेशनलिस्ट पार्टी में भी रह चुके हैं.

ग्रामीण इलाकों में ZPM की पकड़ उतनी मज़बूत नहीं

ज़ोरम पीपुल्स मूवमेंट की पकड़ शहरी इलाकों में ज़्यादा है. ग्रामीण इलाकों में पकड़ कमज़ोर होना एक ऐसा पहलू है, जिससे सत्ता पर बैठने के ज़ोरम पीपुल्स मूवमेंट की उम्मीदों को धक्का लग सकता है.ज़ोरम पीपुल्स मूवमेंट को 2018 के चुनाव में जिन 8 विधान सभा सीटों पर जीत मिली थी, उनमें एक सीट तुइरियाल को छोड़कर सभी शहरी सीटें थी.

हालांकि ज़ोरम पीपुल्स मूवमेंट मिज़ो नेशनल फ्रंट की काट निकालने के लिए कोई कोर-कसर नहीं छोड़ रही है. मिज़ो नेशनल फ्रंट की तरह ही ज़ोरम पीपुल्स मूवमेंट ने भी पहले  ही सभी सीटों के लिए उम्मीदवारों का एलान कर दिया था.  ज़ोरम पीपुल्स मूवमेंट ने मुख्यमंत्री पद के लिए पार्टी चेहरा के तौर पर लालदुहोमा के नाम की घोषणा भी कर दी है. ग्रामीण इलाकों में समर्थन बढ़ाने के लिए ज़ोरम पीपुल्स मूवमेंट ने Hmar People’s Convention के साथ भी गठबंधन किया है. इसका प्रदेश के Hmar अल्पसंख्यकों के बीच अच्छी-ख़ासी पकड़ है. ग्रामीण इलाकों में समर्थन हासिल करने के लिए ज़ोरम पीपुल्स मूवमेंट चुनाव प्रचार के दौरान किसानों को लेकर ख़ूब वादे कर रही है.

मिज़ो नेशनल फ्रंट का दबदबा कम हो रहा है

ज़ोरम पीपुल्स मूवमेंट को 2023 में नवगठित लुंगलेई नगर परिषद के पहले चुनाव में सभी 11 वार्ड पर जीत मिली थी. इस चुनाव में ज़ोरम पीपुल्स मूवमेंट का वोट शेयर 49 फ़ीसदी से अधिक था, जबकि सत्ताधारी मिज़ो नेशनल फ्रंट का वोट शेयर 29 फीसदी ही रहा था. लुंगलेई नगर परिषद के दायरे में मिज़ोरम की 4 विधान सभा सीटें आती हैं. पिछली बार या'नी विधान सभा चुनाव, 2018 में इन चारों सीटों पर एमएनएफ की जीत हुई थी. राजधानी आइजोल के बाद लुंगलेई मिज़ोरम की दूसरी अधिक आबादी वाला शहर है. लुंगलेई नगर परिषद चुनाव में बेहतरीन प्रदर्शन से आगामी विधान सभा चुनाव को लेकर ज़ोरम पीपुल्स मूवमेंट बेहद उत्साहित नज़र आ रही है.

कांग्रेस के लिए प्रासंगिकता बनाये रखने की चुनौती

ज़ोरम पीपुल्स मूवमेंट की बढ़ती ताक़त की वज्ह से कांग्रेस के लिए इस बार का चुनाव मिज़ोरम की राजनीति में प्रासंगिकता बनाये रखने के नज़रिये से बेहद महत्वपूर्ण हो जाता है. पूर्वोत्तर राज्यों की सत्ता में दख़्ल के लिहाज़ से भी कांग्रेस के लिए इस बार का मिज़ोरम चुनाव ख़ास है. पिछली बार 2018 में मिज़ोरम की सत्ता कांग्रेस के हाथ से छीन गई थी. इसके साथ ही पूर्वोत्तर के किसी भी राज्य में कांग्रेस की सरकार नहीं रह गई थी.

प्रदेश के सबसे वरिष्ठ नेता ललथनहवला अभी भी पार्टी में है. हालांकि 85 साल की आयु होने की वज्ह से सक्रिय राजनीति में अब उनकी गतिविधि कम हो गई है. फिर भी पार्टी को उनसे उम्मीदें हैं. इस कारण से ही उन्हें कांग्रेस वर्किंग कमेटी में राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने शामिल किया था. मिज़ोरम में अभी लालसावता कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष हैं. प्रदेश में कांग्रेस के एक और बड़े नेता जोडिंग्लुंता राल्ते का लालसावता से तनातनी जगजाहिर है. यही कारण है कि जोडिंग्लुंता राल्ते ने इस साल प्रदेश पार्टी इकाई के कोषाध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया था. पलक सीट से कांग्रेस के विधायक रहे के टी रोखाव एमएनएफ का दामन थाम चुके हैं. एमएनएफ ने उन्हें पलक सीट से उम्मीदवार भी बना दिया है.

पूर्वोत्तर में मिज़ोरम कांग्रेस का मज़बूत क़िला था

मिज़ोरम कांग्रेस का कभी सबसे मज़बूत गढ़ हुआ करता था. मिज़ोरम में राजनीतिक हैसियत को फिर से पाने के लिए इस बार कांग्रेस.....ज़ोरम नेशनलिस्ट पार्टी और मिज़ोरम पीपुल्स कॉन्फ्रेंस के साथ मिलकर चुनाव लड़ रही है. इस गठबंधन को मिज़ोरम सेक्युलर अलायंस का नाम दिया है. ज़ोरम नेशनलिस्ट पार्टी और मिज़ोरम पीपुल्स कॉन्फ्रेंस..पिछली बार ज़ोरम पीपुल्स मूवमेंट के बैनर तले ही चुनाव लड़ी थी. हालांकि कांग्रेस ने जिन दो दलों को सहयोगी बनाया है, उनका ज़ोरम पीपुल्स मूवमेंट से हटने के बाद प्रदेश में कोई ख़ास जनाधार बचा नहीं है. कांग्रेस को मज़बूती देने के लिए पार्टी के वरिष्ठ और पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी भी मिज़ोरम का  दौरा करने वाले हैं.

क्या बीजेपी मिज़ोरम में जनाधार बढ़ा पायेगी?

बीजेपी के लिए इस बार का चुनाव पंख फैलाने जैसा है. अकेले दम पर सरकार बनाने के लिहाज़ से तो फ़िलहाल बीजेपी की दावेदारी की दूर-दूर तक कोई संभावना नहीं है. बीजेपी के लिए 2018 का चुनाव में ख़ास था क्योंकि पहली बार पार्टी मिज़ोरम में खाता खोलने में सफल हुई थी. बीजेपी को 2018 में सिर्फ़ एक सीट पर ही जीत मिली. इसके बावजूद यह चुनाव बीजेपी के लिए प्रदेश में जनाधार बढ़ाने के लिहाज़ से काफ़ी लाभदायक रहा. बीजेपी का वोट शेयर 8 फ़ीसदी के पार चला गया. इसके पहले 2013 में बीजेपी का वोट शेयर एक फ़ीसदी से भी कम रहा था.

पिछली बार बीजेपी को बौद्ध चकमा बहुल तुइचावंग सीट पर जीत मिली थी. हालांकि इस साल चकमा स्वायत्त जिला परिषद (CADC) चुनाव में बीजेपी का प्रदर्शन काफ़ी खराब रहा था. तुइचावंग सीट भी इसी परिषद के दायरे में आता है. मिज़ोरम में बीजेपी की नज़र उन सीटों पर ज़्यादा है, जहाँ बौद्ध और हिन्दुओं की प्रभावी संख्या है. ऐसी क़रीब 10 से 12 सीटें हैं.

मिज़ोरम में पार्टी के बेहतर प्रदर्शन के लिए बीजेपी ने चुनाव तारीख़ के एलान के कुछ दिन बाद केंद्रीय मंत्री किरेन रीजीजू को मिज़ोरम के लिए पार्टी का चुनाव प्रभारी नियुक्त किया है. इसके साथ पार्टी के नगालैंड के उप मुख्यमंत्री यांथुंगो पाटन सह-प्रभारी बनाये गये हैं. हालांकि तमाम कोशिशों के बावजूद कहा जा सकता है कि इस बार बीजेपी के लिए मिज़ोरम में विस्तार की गुंजाइश कम है.

कांग्रेस के हाथ से 2018 में छीन गई सत्ता

मिज़ोरम में पिछला विधान सभा चुनाव 28 नवंबर 2018 को हुआ था. पूर्ण राज्य बनने के बाद पहली बार मिज़ोरम की जनता के सामने मिज़ो नेशनल फ्रंट और कांग्रेस के अलावा किसी तीसरी ताक़त का विकल्प भी मौजूद था. कई छोटे-छोटे दलों और संगठनों के जुड़ने से बनी ज़ोरम पीपुल्स मूवमेंट पहली बार चुनाव मैदान में थी.

ज़ोरम पीपुल्स मूवमेंट ने 2018 के विधान सभा चुनाव में लालदुहोमा की अगुवाई में अपने प्रदर्शन से सबको चौंका दिया था. पहली बार में ही ज़ोरम पीपुल्स मूवमेंट 22.9% वोट शेयर के साथ 8 सीटें जीतकर दूसरे नंबर की पार्टी बन गई. इससे दस साल से मिज़ोरम की सत्ता पर क़ाबिज़ कांग्रेस को काफ़ी नुक़सान हुआ. सत्ता तो हाथ से गई ही, महज़ 5 सीट जीतने की वज्ह से कांग्रेस तीसरे नंबर की पार्टी बन गई. हालांकि कांग्रेस का वोट शेयर (29.98%) ज़ोरम पीपुल्स मूवमेंट काफ़ी ज़्यादा था.

ज़ोरम पीपुल्स मूवमेंट से कांग्रेस को तो भारी नुक़सान हुआ, लेकिन इसका फ़ाइदा मिज़ो नेशनल फ्रंट को मिला. ज़ोरामथंगा की अगुवाई में मिज़ो नेशनल फ्रंट 2018 के चुनाव में 26 सीट पर जीतकर सत्ता पर क़ाबिज़ हो गई. मिज़ो नेशनल फ्रंट का वोट शेयर 37.70% रहा. वहीं बीजेपी को एक सीट पर जीत मिली थी.

कांग्रेस और एमएनएफ का रहा है दबदबा

शुरूआत से ही मिज़ोरम की राजनीति पर कांग्रेस और एमएनएफ का दबदबा रहा है. लालडेंगा युग के अंत के बाद 1989 से मिज़ोरम की राजनीति में नया दौर शुरू होता है. जनवरी 1989 से लगातार दो कार्यकाल कांग्रेस  की सरकार रहती है. इस दौरान ललथनहवला मुख्यमंत्री रहते हैं. फिर दिसंबर 1998 से लगातार दो कार्यकाल मिज़ो नेशनल फ्रंट की सरकार रहती है. इस दौरान ज़ोरामथंगा मुख्यमंत्री रहते हैं. फिर 11 दिसंबर 2008 से 14 दिसंबर से लगातार दो कार्यकाल ललथनहवला कीअगुवाई में कांग्रेस की सरकार रहती है. लगातार दो कार्यकाल के बाद पिछले चुनाव में कांग्रेस से सत्ता छिन जाती है. मिज़ो नेशनल फ्रंट सरकार बनती है और ज़ोरामथंगा तीसरी बार मिज़ोरम के मुख्यमंत्री बनते हैं.

प्रदेश में ललथनहवला और ज़ोरामथंगा का वर्चस्व

मिज़ोरम की राजनीति पर क़रीब चार दशक से ललथनहवला और ज़ोरामथंगा का वर्चस्व रहा है. कांग्रेस नेता पु ललथनहवला मिज़ोरम में सबसे ज़्यादा समय तक मुख्यमंत्री रहे हैं. 85 साल के ललथनहवला  22 साल से ज़्यादा समय तक मुख्यमंत्री रहे हैं. उनके बाद मिज़ोरम की राजनीति पर सबसे अधिक प्रभाव मिज़ो नेशनल फ्रंट के अध्यक्ष और मौजूदा मुख्यमंत्री ज़ोरामथंगा का रहा है. वर्तमान कार्यकाल को मिलाकर 79 साल के ज़ोरामथंगा  क़रीब 15 साल प्रदेश सरकार की कमान संभाल चुके हैं.

मिज़ो नेशनल फ्रंट, कांग्रेस, बीजेपी समेत सभी दलों ने चुनाव आयोग से मतगणना की तारीख़ बदलने की मांग की है. इसके लिए चुनाव आयोग को लिखे गए पत्र में कहा गया है कि मतगणना की तारीख़ 3 दिसंबर रविवार है और रविवार का दिन ईसाइयों के लिए पवित्र दिन होता है. रविवार को सभी कस्बों और गांवों में धार्मिक कार्यक्रम होते हैं. इस कारण से राजनीतिक दलों के साथ ही प्रदेश में चर्चों के समूह 'मिज़ोरम कोहरान ह्रुएतुते कमेटी'  ने भी चुनाव आयोग से मतगणना की तारीख बदलने का अनुरोध किया है.

[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. यह ज़रूरी नहीं है कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ़ लेखक ही ज़िम्मेदार हैं.]

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