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घाटी में कश्मीरी पंडित ही आखिर क्यों हैं आतंकियों के निशाने पर?

कश्मीर घाटी में टारगेट किलिंग थमने का नाम नहीं ले रही है. शनिवार को एक कश्मीरी पंडित की हत्या के बाद ये सवाल फिर उठ खड़ा हुआ है कि घाटी में रहने वाले महज आठ सौ पंडितों के परिवारों को माकूल सुरक्षा देने में सरकार से चूक आखिर कहां हो रही है? आतंकवादी जिस तरह से कश्मीरी पंडितों को चुन-चुनकर अपना निशाना बना रहे हैं, उससे उनका मकसद साफ है कि वे इतनी दहशत फैलाना चाहते हैं कि एक भी कश्मीरी पंडित घाटी में रहने की हिम्मत न कर पाये.

जम्मू-कश्मीर से धारा 370 निरस्त किये जाने और घाटी में सुरक्षा बलों की भारी भरकम तैनाती के बाद के बाद कुछ अरसे तक आतंकवादी अपने दड़बों में दुबके हुए थे. लेकिन इस साल की शुरुआत से आतंकी गुटों ने हमले करने की अपनी रणनीति में बदलाव किया और पहले कश्मीरी पंडितों और फ़िर प्रवासी मजदूरों को भी अपना निशाना बनाना शुरु कर दिया.

इस साल जनवरी से लेकर अब तक आतंकी 28 लोगों की हत्या कर चुके हैं. मारे गए लोगों में कश्मीरी पंडित से लेकर सुरक्षा बल के जवान और प्रवासी मजदूर शामिल हैं. टारगेट किलिंग के खिलाफ घाटी में कश्मीरी पंडितों ने पिछले छह-सात महीने में कई बार प्रदर्शन किये हैं. कश्मीरी पंडित सरकार से खुद को दूसरी जगह सुरक्षित रूप से बसाये जाने की लगातार मांग कर रहे हैं. लेकिन सरकार की मजबूरी ये है कि अगर उन्हें घाटी से निकाला जाता है,तो ये आतंकियों के आगे घुटने टेकने जैसा ही होगा और उसके बाद आतंकी गुटों का हौसला भी सातवें आसमान पर कब पहुंचेगा.

पिछले तीन दशकों से घाटी के आतंकवाद पर निगाह रखने वाले जानकार मानते हैं कि धारा 370 निरस्त किये जाने के बाद से आतंकियों ने हमला करने का जो पैटर्न बदला है,तो उसकी खास वजह भी है. कश्मीर में टारगेट किलिंग को अंजाम देने वाले चाहते हैं कि पंडितों के अलावा अन्य बाहरी लोग भी घाटी में न रहें और न ही वहां ड्यूटी पर तैनात तैनात किए जाएं. नतीजतन वो ऐसे ही लोगों को चुन कर मार रहे हैं. सरकार की मजबूरी है कि वो यहां से गैर कश्मीरी लोगों को वापस भी नहीं बुला सकती क्योंकि अगर वो ऐसा करेगी तो ये उसके लिए बड़ा झटका होगा. उल्टे,सरकार तो वहां गैर कश्मीरी लोगों को तैनात कर रही है,ये दिखाने के लिए घाटी में अब सब कुछ सामान्य हो चला है. लेकिन टारगेट किलिंग की ऐसी एक भी घटना सरकार के दावे को गलत साबित करके रख देती है.

दरअसल,आतंकियों को लगता है कि धारा 370 हटने के बाद कश्मीरी पंडित फिर से घाटी में आकर बसना शुरू कर देंगे. सरकार की भी यही कोशिश है कि वे तीन दशक के बाद दोबारा अपनी सरजमीं पर आकर काम-धंधा शुरू करें. अगर ऐसा होता है तो ऐसी सूरत में जिन्होंने उनकी कई करोड़ों की सम्पतियों पर अवैध कब्जा जमाया हुआ है, उसे लौटाना पड़ेगा. यही वजह है कि उनमें खौफ़ का माहौल पैदा करने के लिए ही आतंकी लगातार कश्मीरी पंडितों को निशाना बना रहे हैं.

टारगेट किलिंग की वारदातों में तेजी आने की दूसरी बड़ी वजह ये भी है कि जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव की तैयारी अंतिम चरण में है और अगले कुछ महीने में वहां चुनाव का ऐलान हो सकता है. केंद्र सरकार ने राज्य के सभी प्रवासी नागरिकों समेत वहां तैनात लोगों को भी वोट डालने का अधिकार दे दिया है. घाटी के सियासी दलों के साथ ही आतंकियों को भी ये हज़म नहीं हो रहा है. लेकिन सच तो ये है कि सरकार के तमाम दावों के बावजूद जब तक ऐसी एक भी हत्या होती रहेगी, कश्मीरी पंडितों की दहशत खत्म नहीं होगी और वे चाहकर भी घाटी में बसने के बारे में सोच भी नहीं सकते.

ये पहलू ही कश्मीरी पंडितों को घाटी में जाने से रोकता है. कश्मीरी पंडित संघर्ष समिति के अध्यक्ष संजय टिक्कू के अनुसार, 1990 तक जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद फैलने के बाद से कम से कम 399 कश्मीरी पंडित मारे गए, लेकिन 1990 के बाद के इन 21 सालों में कुल 660 कश्मीरी अपनी जान गंवा चुके हैं. टिक्कू का यह भी मानना है कि अकेले 1990 में ही 302 कश्मीरी पंडितों की हत्या कर दी गई थी.

हालांकि टिक्कू अभी भी घाटी में रहते हैं और उनके अनुसार 808 परिवारों के कुल 3,456 कश्मीरी पंडित अभी भी कश्मीर में रहते हैं, लेकिन सरकार ने अब तक उनके लिए कुछ नहीं किया. ऐसी सूरत में दोबारा घाटी में बसने की भला कौन सोचेगा?

नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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