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UN में भारत स्पेसिफिक मुद्दों पर जरूरत के हिसाब से कर रहा वोटिंग, फिलिस्तीन पर कायम है टू-नेशन स्टैंड

इजरायल और हमास के संघर्ष में सबसे पहले देखने की बात तो यह है कि भारत का इस संदर्भ में जो पहले से स्टैंड चला आ रहा है, उसमें कोई परिवर्तन नहीं हुआ है, कोई रणनीति नहीं बदली है. ये जो हालिया 12 अक्टूबर वाला संयुक्त राष्ट्र का प्रस्ताव था, वो ऑक्युपाइड फिलिस्तीनी क्षेत्र में सेटलमेंट के विरोध में था, जो पूर्वी येरूशलम है, गोलन हाइट्स है, उसमें इजरायल जो लगातार अपने सेटलमेंट बसा रहा है और वहां के निवासियों को हटा रहा है, उसके विरोध में ये प्रस्ताव था. इस प्रस्ताव के पक्ष में केवल भारत ने नहीं दुनिया के अधिकांश देशों ने वोट दिया, बल्कि प्रस्ताव के विरोध में केवल सात देशों ने वोट दिया. इनमें कनाडा, हंगरी, इजरायल, अमेरिका, नारू जैसे देश थे. 18 देशों ने प्रस्ताव से एब्सटेन किया और 145 देशों ने, जिनमें भारत भी शामिल था, इसके पक्ष में वोट दिया. यह एक विशेष प्रस्ताव था, इसलिए भारत ने इसका समर्थन किया और इसमें कुछ भी अलग नहीं है कि हमारे संबंध के खिलाफ जाए. 

भारत है मानवता के साथ 

अगर कहें कि भारत विशिष्ट मुद्दों पर मतदान कर रहा है, किसी देश के खिलाफ या पक्ष में नहीं और मानवता के लिए मत दे रहा है, तो यह गलत नहीं होगा. भारत का स्टैंड स्फेसिफिक मुद्दों के गिर्द ही रहा है. जैसे, 7 अक्टूबर जब इजरायल पर हमास के आतंकियों ने हमला किया था, तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तुरंत ही फोन कर बात की, ट्वीट पर सबसे पहले उस बर्बरतापूर्ण कृत्य की निंदा की. भारत खुद आतंकवाद का पीड़ित रहा है, इसलिए जब भी आतंक की बात होगी, तो कोई भी देश हो आतंक करनेवाले से भारत अलग रहेगा, चाहे वह हमास हो, आइएसआइएस हो या कोई भी ऐसा संगठन हो और पीड़ित देश के साथ भारत पूरी मजबूती से खड़ा रहा, जैसे इजरायल के साथ है.

जहां तक फिलिस्तीन और इजरायल के बीच संघर्ष की बात है, तो भारत का बहुत पहले से ये मानना रहा है कि इसका टू-स्टेट सॉल्युशन निकलना चाहिए. अभी हमारे विदेश मंत्री एस जयशंकर ने भी यह कहा है कि भारत हमास के आतंकी वारदात की कठोर निंदा करता है, वह इजरायल के साथ है, पीड़ितों के साथ हमारी हमदर्दी है लेकिन साथ ही हम यह भी चाहते हैं कि एक दीर्घकालीन समाधान निकले और उसी संदर्भ में पहले से ही संयुक्त राष्ट्र में भी एक प्रस्ताव बाकायदा पारित है कि टू-स्टेट थियरी के आधार पर समाधान हो और ईस्ट येरूशलम फिलीस्तीनी क्षेत्र की राजधानी हो और उस रेजोल्यूशन को लेकर भारत पूरी तरह गंभीर है. हमारी स्पष्ट सोच है कि अगर वेस्ट बैंक में या बाकी जगहों पर इजरायल अगर सेटलमेंट कर रहा है और वहां अपनी आबादी बढ़ा रहा है, तो फिर टू-स्टेट थियरी का पालन कैसे होगा? वो तो पूरी बात ही खटाई में पड़ जाएगी. 

इजरायल तो है सहमत टू-स्टेट थियरी पर

सैद्धांतिक तौर पर तो इजरायल सहमत ही है कि फिलीस्तीन एक देश के तौर पर बने, वेस्ट बैंक तो उन्होंने फिलीस्तीन को दिया भी, क्योंकि पहले तो वेस्ट बैंक और गाजा दोनों पर इजरायल ऑक्युपाइड था. वेस्ट बैंक को फतह की सरकार चला भी रही है. गाजा में भी 2007 के बाद वह हटा, फिर हमास वहां काबिज हो गया. इजरायल सहमत है, लेकिन उसका मैकेनिज्म अलग हो. बाकी ताकतें जो हैं, उनका अलग है. इजरायल इसको नहीं मानने को तैयार है कि ईस्ट येरूशलम फिलीस्तीन की राजधानी बने. अल-अक्सा जो मस्जिद है, उसके अधिकार को लेकर इजरायल सहमत नहीं है, तो ऐसे बहुतेरे लंबित और दीर्घकालीन मुद्दे हैं. इजरायल तो अब उन सहमतियों से भी आगे बढ़कर अपने सेटलमेंट बढ़ा रहा है, जिससे टू-नेशन थियरी ही खतरे में आ गयी है. वेस्ट बैंक या गोलन हाइट्स पर अगर वह बढ़ता रहा तो और अधिक समस्या आएगी. 

इस्लामिक मुल्कों में बड़प्पन की होड़

जो इजरायल की पॉलिसी अभी तक लग रही है, वह तो हमास के पूर्ण विनाश से पहले रुकने की नहीं लग रही है.  40 दिनों के युद्ध में 11 हजार फिलीस्तीनी गाजा में मारे जा चुके हैं. इजरायल के जो वेस्टर्न सपोर्टर हैं, अमेरिका और कनाडा को छोड़कर, वे भी इजरायल से अनुरोध कर रहे हैं कि वह सीजफायर करे, क्योंकि सिविलियन अधिक मारे जा रहे हैं.

इजरायल हालांकि यह मानने को तैयार नहीं है और उसके प्रधानमंत्री इस बात को लेकर प्रतिबद्ध हैं कि हमास का पूरी तरह से खात्मा कर दिया जाए. हमास के आतंकी गाजा में एक भी न बचें, इसलिए वह अल-शिफा हॉस्पिटल के अंदर के टनल और बाकी सुरंग भी शामिल हैं. इजरायल पूरी तरह प्रतिबद्ध है, क्योंकि ऐसा हमला इजरायल पर कभी नहीं हुआ है. यह 1967 के संयुक्त अरब देशों के हमले में भी इतना घायल नहीं हुआ, उसकी सिविलियन कैजुएल्टी इतनी अधिक नहीं हुई थी, इसलिए भी इजरायल इस बार छोड़ेगा नहीं. यह हमला इजरायल को कभी भूलेगा नहीं. 

जहां तक इस्लामिक देशों की बात है, तो उनकी अपनी समस्याएं और समीकरण हैं. वहां ईरान अपनी सत्ता चलाना चाहता है, सऊदी अरब तो खुद को इस्लामिक दुनिया का सबसे बड़ा लीडर मानता ही है. तुर्की अलग से खलीफा के नाम पर अपनी बांहें चढ़ाता है. वहीं, कतर भी है जो दुनिया भर के इस्लामिक आतंकियों को पनाह देकर इस्लाम का सबसे बड़ा झंडाबरदार बनना चाहता है, लेकिन इनमें भी एका नहीं है. दरअसल, इजरायल के पूर्ण बायकॉट के प्रस्ताव पर सऊदी अरब और यूएई ने रोक लगायी है. तो, पूरी इस्लामिक दुनिया में जो उथल-पुथल चल रही है, उसके मद्देनजर इस संघर्ष को फिलहाल देखना ही ठीक रहेगा, कोई भविष्यवाणी जल्दबाजी होगी.  

[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. यह ज़रूरी नहीं है कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ़ लेखक ही ज़िम्मेदार हैं.]

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