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दुनिया जब है उथल-पुथल से भरी तो मैक्रां का गणतंत्र दिवस का अतिथि बनना देता है कई संकेत

पूरा देश आज 75वें गणतंत्र दिवस के भव्य समारोह का साक्षी बना. भारत ने कर्तव्य पथ पर अपनी सांस्कृतिक, सामरिक और मारक क्षमता का प्रदर्शन किया. फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुअल मैक्रां इस बार मुख्य अतिथि थे, हालांकि पहले अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन को बुलाया गया था, लेकिन अपने स्वास्थ्य और अमेरिका की घरेलू राजनीति की वजह से वह शिरकत नहीं कर सके. मैक्रां को नरेंद्र मोदी ने पहले तो जयपुर घुमाया और फिर आज गणतंत्र दिवस की परेड में भी मुख्य अतिथि के तौर पर ससम्मान अपने साथ बिठाया और उनको हरेक बात की जानकारी देते रहे. 

भारत और फ्रांस स्वाभाविक सहयोगी

पिछले कुछ वर्षों से भारत और फ्रांस के संबंध बहुत अच्छे चल रहे हैं. सामाजिक, राजनीतिक, रणनीतिक और सामरिक मसलों में भी हमारे संबंध बहुत अच्छे चल रहे हैं. दोनों देश साझा सहयोग कर रहे हैं और कई वैश्विक मसलों पर सहयोग कर रहे हैं. अभी पिछले ही साल भारत और फ्रांस ने अपने सामरिक रिश्तों की 25वीं वर्षगांठ मनाई और इसी संदर्भ में जो बास्तिल डे होता है फ्रांस का, जो हमारे गणतंत्र-दिवस जैसा ही महत्व रखता है, उसमें नरेंद्र मोदी ने शिरकत की थी. बाइडेन ने अंतिम समय अपना दौरा रद्द किया और फ्रांस ने सहर्ष बिल्कुल आखिरी समय इसके लिए सहमति जताई. यह दिखाता है कि दोनों देशों के बीच के संबंध कितने प्रगाढ़ है कि बिल्कुल आखिरी वक्त कहने पर भी मैक्रां ने सहर्ष स्वीकार किया और भारतीय प्रधानमंत्री ने भी उसी गर्मजोशी से उनका स्वागत किया. पहले जयपुर में उनका स्वागत हुआ, यूनेस्को की कई वैश्विक विरासतों को दिखाया, हवामहल पर उन लोगों ने चाय भी पी और उसका पेमेंट मोदी ने यूपीआई से किया, जो भारत का तकनीक के मामले में पूरा अनूठा कदम है. इससे जयपुर तो प्रसिद्ध हुआ ही, यूपीआई भी दुनिया की आंखों में आया. कुछ देश तो ऑलरेडी यूपीआई में रुचि दिखा रहे हैं. मैक्रां छठे ऐसे फ्रांसीसी राष्ट्रपति हैं, जो गणतंत्र दिवस के मौके पर भारत आए हैं और पिछले तेरह महीनों में सात से आठ बार दोनों देशों में द्विपक्षीय वार्ता हुई है. 

दुनियावी राजनीति में यह दौरा बेहद अहम

मैक्रां का यह दौरा बहुत अहम है. रूस और यूक्रेन का युद्ध, इजरायल-हमास का युद्ध तो चल ही रहा है, हिंद प्रशांत क्षेत्र में भी चीन अपनी वर्चस्ववादी नीति पर आमादा है. इन सारे विषयों पर भारत और फ्रांस ने विस्तार से चर्चा की है. फ्रांस भी हिंद प्रशांत का एक रीजनल पावर है. फ्रांस के कुछ द्वीप और नौसैनिक अड्डे अभी भी उस इलाके में हैं. अभी कुछ ही दिनों पहले जो रीयूनियन आइलैंड है, मॉरीशस के पास, वह फ्रांस का द्वीप है, उसे भारत को फ्रांस ने किसी भी स्थिति में इस्तेमाल करने की इजाजत दी है. मॉरीशस ने पहले ही बोला हुआ है कि भारतीय नौसेना किसी आपात या जरूरत की स्थिति में, उनकी रणनीतिक जरूरत के लिए उसका इस्तेमाल कर सकता है. रीयूनियन आइलैंड इस जरूरत के लिए बेहद मुफीद हैं. स्कॉर्पियन सबमरीन हों या रफाएल विमान हों, फ्रांस के साथ हमारा रणनीतिक और सामरिक संधि जो है, वह बढी है. एक कदम आगे बढ़कर फ्रांस ने भी तकनीकी समझौते औऱ ट्रांसफर पर बात की है. इसी संदर्भ में भारतीय दूतावास के साथ मिलकर एक टेक्नोलॉजी डेस्क भी बनाया है. जो इस तरह की बातों को देखेगा. अगर देखें तो रूस के बाद फ्रांस ही ऐसा मुल्क होगा, जिसके साथ हम ऐसा कुछ करेंगे. हम अभी 26 रफाएल और ले रहे हैं, 3 अत्याधुनिक पनडुब्बियां भी फ्रांस से ले रहा है और हिंद प्रशांत क्षेत्र को देखते हुए भारत अपनी नौसेना को बिल्कुल आधुनिक बना रहे हैं. जरूरत को देखते हुए ही भारत ने अभी अंडमान में अपना तीसरा नौसैनिक अड्डा बनाया है. नौसेना का विस्तार लंबे समय से चल रहा है और फ्रांस उसमें भारत को पूरा सहयोग दे रहा है. वह चीन के खतरे को भांप रहा है और भारत के साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम कर रहा है. अंतरिक्ष सहयोग हो या तकनीकी ट्रांसफर, फ्रांस भारत के साथ हर स्तर पर सहयोग कर रहा है. 

फ्रांस हमेशा भारत के साथ

जो भारत का पिछले कई वर्षों से विश्वगुरु बनने का सपना है और भारत बहुत सफाई और कड़ाई से वैश्विक मंचों पर अपनी बात रख रहा है. भारत चीन की तरह एक विस्तारवादी मुल्क नहीं है औऱ यह बात दुनिया के सारे देश जानते हैं. यूरोप में भी फ्रांस ही नहीं, कई और देश भी भारत के साथ सहयोग कर रहा है. फ्रांस भारत के साथ हमेशा खड़ा रहा है. 1998 में जब हमने परमाणु परीक्षण किए तो फ्रांस इकलौता देश था, जिसने हम पर लगाए प्रतिबंधों को हटाने के लिए लॉबीइंग की. फ्रांस ही वह देश है जो संयुक्त राष्ट्र में हमारी स्थायी सदस्यता की मांग के साथ खड़ा है. वह NSG वेवर की बात करता है, कई परमाणु समझौते जैसे जैतापुर परमाणु रिएक्टर पर भी बात करता है. फ्रांस को लगता है कि भारत एक जिम्मेदार देश है और अगर भारत वैश्विक मंचों पर खड़ा होता है, तो यह दुनिया के लिए अच्छी बात होगी. फ्रांस में एकाध बार कुछ बातों को लेकर थोड़ा खिंचाव हुआ है, लेकिन जल्द ही वो सारा मामला सुलझ जाएगा. थोड़ा बहुत व्यापार घाटा अभी फ्रांस के पक्ष में है, लेकिन बहुत जल्द इस पर भी भारत अपने पक्ष में जरूरी कदम उठाएगा. 

[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. यह ज़रूरी नहीं है कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.]

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