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कांग्रेस को नीचा दिखाने के लिए आखिर दिग्विजय सिंह क्यों देते हैं ऐसे बयान?

गांधी परिवार के सबसे करीबी समझे जाने वाले कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह बेबाक हैं लेकिन उनकी यही बेबाकी अक्सर पार्टी को संकट में भी डाल देती है. जम्मू-कश्मीर में राहुल गांधी की यात्रा में शामिल हुए दिग्विजय सिंह ने सोमवार को भी ऐसा विवादास्पद बयान दे डाला, जिससे आखिरकार कांग्रेस को ये कहकर पल्ला झाड़ना पड़ा कि ये उनके निजी विचार हैं.

इसलिये ये सवाल उठना लाजिमी है कि एक जमाने में मध्य प्रदेश में एकछत्र राज करने वाले दिग्विजय सिंह के इस तरह के विवादास्पद बयान देने के पीछे आखिर क्या सोच है और क्या वे इससे पार्टी का वोट बैंक मजबूत कर रहे हैं या फिर उसमें पलीता लगा रहे हैं? हालांकि साल 2014 में नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद से ही दिग्विजय बीजेपी सरकार पर ऐसे हमलावर बयान देते आये हैं जिनकी खूब आलोचना भी हुई लेकिन पार्टी नेतृत्व ने उन्हें न कभी टोका और न ही कभी रोका. 

इसलिये दिग्विजय के इस ताजा बयान से पार्टी ने बेशक पल्ला झाड़ने की रस्म अदायगी कर दी लेकिन उसका सियासी मतलब तो यही निकाला जा रहा है कि कांग्रेस इस सरकार के खिलाफ जो आरोप अपने मंच से लगा पाने की हिम्मत नहीं जुटा पा रही है उसके लिए दिग्विजय सिंह को सब कुछ बोलने की खुली छूट मिली हुई है. दरअसल, कांग्रेस की भारत जोड़ो यात्रा के जम्मू पहुंचते ही दिग्विजय सिंह ने गड़े मुर्दे उखाड़ते हुए मोदी सरकार द्वारा पाकिस्तान पर की गई सर्जिकल स्ट्राइक पर फिर से सवाल उठाए हैं. 

उन्होंने कहा कि सर्जिकल स्ट्राइक की बात करते हैं कि हमने इतने लोगों को मार गिराया लेकिन इसका आज तक कोई प्रमाण नहीं है. आज तक घटना की जानकारी न संसद में पेश की गई और न ही जनता के सामने रखी गई. सर्जिकल स्ट्राइक की बात करके सिर्फ झूठ बोलने से ही राज कर रहे हैं. जम्मू-कश्मीर में राहुल गांधी की यात्रा को अगले छह दिनों में कैसा और कितना समर्थन मिलेगा, ये हम नहीं जानते. लेकिन दिग्विजय ने पाकिस्तान की सीमा से सटे इस राज्य में पुराने आरोपों को दोहराते हुए वहां के मुस्लिमों में मोदी सरकार के खिलाफ नफरत की गंध फैलाने की पुड़िया फिर से खोल दी है. 

वे नेता हैं और उन्हें अपनी बात कहने का पूरा हक भी है लेकिन सवाल उठता है कि जिस नाजुक मसले को लेकर न तो उनकी पार्टी ने, न सर्वोच्च न्यायालय ने और न ही मीडिया ने आज तक कोई सवाल उठाया, फिर वे इसे तूल देकर अब सियासत की कौन-सी नई बिसात बिछाना चाहते हैं? यकीनन अगले दो-तीन महीने के भीतर जम्मू-कश्मीर में विधानसभा के चुनाव होने हैं लेकिन सोचने वाली बात ये है कि दिग्विजय के इस बयान से अगर वहां कांग्रेस को अपनी ताकत मजबूत होते हुए दिखती तो वो उनके बयान से पल्ला झाड़ने में इतनी जल्दबाजी नहीं दिखाती.

कांग्रेस के कुछ नेता दलील देते हैं कि उनके बयान को गंभीरता से नहीं लेना चाहिए क्योंकि वे सुर्खियों में बने रहने के लिए अक्सर विवादास्पद बातें कह जाते हैं. लेकिन वास्तव में ऐसा नहीं है. वह इसलिये कि मनमोहन सिंह सरकार के दौरान उन्होंने ही सबसे पहले देश को 'भगवा आतंकवाद' का नाम दिया था और उसके पीछे भी उनकी एक सोच थी. लेकिन उन्होंने जिन लोगों के लिये ये नामकरण किया था, उन्हीं साध्वी प्रज्ञा भारती ने साल 2019 के लोकसभा चुनाव में दिग्विजय को भोपाल से हराकर ये साबित कर दिखाया कि उनका ये स्लोगन कितना बूमरैंग कर गया था.

दिग्विजय ने जम्मू के मंच से राहुल गांधी की मौजूदगी में पुलवामा हमले को लेकर मोदी सरकार पर कई सवाल उठाये हैं. उन्होंने कहा कि पुलवामा जो कि पूरे तरीके से आतंक का केंद्र बन चुका है बाहर गाड़ी की चेकिंग होती है वहां एक स्कॉर्पियो गाड़ी उल्टी दिशा से आती है उसकी जांच पड़ताल क्यों नहीं होती और और इसके बाद वो टकराती है और हमारे 40 सीआरपीएफ के जवान शहीद हो जाते हैं. हालांकि उस घटना पर तमाम तरह के शक-शुभहे उठने के बाद मोदी सरकार को चौतरफा क्लीन चिट मिल चुकी है और उसके बाद ही बालाकोट में सर्जिकल स्ट्राइक को अंजाम दिया गया था. लेकिन दिग्विजय सिंह ने उन दोनों घटनाओं पर सवाल उठाकर अपनी ही पार्टी को शर्मिंदगी झेलने पर मजबूर कर दिया.

शायद इसीलिए कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश को ट्वीट करके ये सफाई देने पर मजबूर होना पड़ा कि ये पार्टी का स्टैंड नहीं है बल्कि उनके निजी विचार हैं. उन्होंने अपने ट्वीट में लिखा कि आज वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह द्वारा व्यक्त किए गए विचार कांग्रेस पार्टी के नहीं उनके व्यक्तिगत विचार हैं. 2014 से पहले यूपीए सरकार ने भी सर्जिकल स्ट्राइक की थी. राष्ट्रहित में सभी सैन्य कार्रवाइयों का कांग्रेस ने समर्थन किया है और आगे भी समर्थन करेगी. इसलिये सवाल उठता है कि पार्टी लाइन से अलग हटकर दिग्विजय सिंह अपनी अलग सियासी लाइन क्यों लेते हैं और अगर ऐसा करते हैं,तो क्या कांग्रेस नेतृत्व की उसमें मौन स्वीकृति होती है?

नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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