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100 वर्षों का दिल्ली विश्वविद्यालय है 'एक्सीलेंस इन एजुकेशन' का प्रतीक, वर्तमान पीएम से लेकर बड़े सेलेब्रिटी तक रहे हैं पूर्व छात्र

दिल्ली विश्वविद्यालय के पिछले एक साल से चल रहे शताब्दी वर्ष के समारोह का समापन शुक्रवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किया. इसी दौरान दिल्ली विश्वविद्यालय के 3 नए भवनों का शिलान्यास भी हुआ और विश्वविद्यालय के 100 वर्षों के गौरवशाली इतिहास पर दो कॉफी-टेबल बुक का अनावरण भी हुआ. नरेंद्र मोदी ने अपने संबोधन में दिल्ली विश्वविद्यालय को केवल विश्वविद्यालय नहीं अपितु एक आंदोलन बताया. उन्होंने कहा, "25 साल बाद, जब देश अपनी आज़ादी के 100 साल पूरे करेगा, तब दिल्ली यूनिवर्सिटी अपनी स्थापना के 125 वर्ष मनाएगी तब इसकी गिनती दुनिया की शीर्ष रैकिंग वाले विश्वविद्यालयों में होनी चाहिए, इसके लिए हम सभी को प्रयास करना होगा। क्योंकि विश्वविद्यालयों को श्रेष्ठ बनाकर ही अगले 25 वर्षों में विकसित भारत का भी मार्ग प्रशस्त होगा."

पुराने समय से ज्ञान का केंद्र है भारत

भारत सहस्त्राबियों से ही विश्व में ज्ञान का एक प्रमुख केंद्र रहा है जिसने संसार भर के विद्वानों को अपनी ओर सिर्फ आकर्षित ही नहीं किया बल्कि विश्व का मार्गदर्शन भी किया है. वर्तमान में भारत अपने औपनिवेशिक इतिहास से आगे निकलकर एक बार फिर से विश्वगुरु बनने की राह पर अग्रसर है. भारत की वर्तमान शिक्षा व्यवस्था एवं विभिन्न विश्वविद्यालय इस लक्ष्य की प्राप्ति को लेकर कटिबद्ध हैं, दिल्ली विश्वविद्यालय इस लक्ष्य की प्राप्ति हेतु अग्रणी भूमिका निभा रहा है. दिल्ली विश्वविद्यालय राष्ट्रीय शिक्षा नीति - 2020 को अक्षरतः लागू करने वाला देश का पहला विश्वविद्यालय बना. CUET, 4 वर्षों का स्नातक, NEP के माध्यम से नए पाठ्यक्रमों में बदलाव, बदलते हुए विश्व की जरूरतों को पूरा करते हुए नए पाठ्यक्रमों का निर्माण एवं उसका अनुमोदन भी दिल्ली विश्वविद्यालय में हो चुका है. 

स्वाधीनता संग्राम में दिल्ली विश्वविद्यालय का योगदान

मई 1922 में दिल्ली विश्वविद्यालय की स्थापना हुई. अपने पिछले 100 सालों के इतिहास में विश्वविद्यालय ने बहुत उतार-चढ़ाव एवं बदलावों का अनुभव किया है. भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन की शुरूआत से ही, दिल्ली के नागरिकों के साथ-साथ दिल्ली विश्वविद्यालय के छात्रों ने भी स्वतंत्रता आंदोलन में बढ़-चढ़कर भाग लिया एवं जन आंदोलनों का आह्वान हैं. स्वदेशी आंदोलन के दौरान, हिंदू और सेंट स्टीफन कॉलेज के छात्रों ने अरविंदो घोष की रक्षा के लिए धन एकत्र किया. रेवरेंड ऑलनट ने हार्डिंग बम मामले में दोषी ठहराए गए सेंट स्टीफन कॉलेज के पूर्व छात्र अवध बिहारी और अमीर चंद का बचाव किया. सेंट स्टीफन के पूर्व छात्र लाला हरदयाल ने अमेरिका में गदर पार्टी की स्थापना की.  प्यारे लाल वकील और विश्वविद्यालय कोर्ट के सदस्य ने भी होमरूल आंदोलन के दौरान नेतृत्व प्रदान किया एवं महात्मा गांधी, सी.एफ. एंड्रयूज के लगातार संपर्क में भी में रहे.

सेंट स्टीफन कॉलेज के प्राचार्य रूद्र के कार्यालय से ही गांधीजी ने असहयोग आन्दोलन को शुरू करने हेतु एक पत्र लिखा. 1924 में उन्होंने जब पुनः इस कॉलेज का दौरा किया तो छात्रों का संबोधन भी किया. महात्मा गांधी द्वारा असहयोग आन्दोलन के मद्देनजर रामजस कॉलेज के प्राचार्य गिडवानी ने इस्तीफा भी दिया था. औपनिवेशिक प्रशासन की गुप्त रिपोर्टों ने असहयोग आंदोलन के दौरान विश्वविद्यालय के छात्र एवं छात्राओं की भागीदारी के संकेत दिए. सत्यवती और अरुणा आसफ अली की गिरफ़्तारी के विरोध में रामजस कॉलेज के छात्रों ने राष्ट्रीय ध्वज फहराया और हड़ताल की. सेंट स्टीफन कॉलेज के फ्लैग स्टाफ पर भी राष्ट्रीय ध्वज फहराया गया.

क्रांतिकारी इतिहास रहा डीयू का, विभाजन से बदला ढांचा 

दिल्ली षड्यंत्र मामले की योजना, जिसमें प्रसिद्ध क्रांतिकारी भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने 8 अप्रैल 1929 को दिल्ली में केंद्रीय विधान सभा के अंदर बम फेंका था, दिल्ली विश्वविद्यालय के वाइस रीगल लॉज के अंदर बनी थी. यह भी माना जाता है कि पंजाब लाने से पहले भगत सिंह को इसी वाइस रीगल लॉज की कालकोठरी में रखा गया था. एक अन्य प्रसिद्ध क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद, हिंदू एवं रामजस कॉलेज के छात्रावासों में रहे थे. 5 मार्च 1931 को इसी वाइस रीगल लॉज में गांधी-इरवीन समझौते पर भी हस्ताक्षर किए गए थे.  दिल्ली विश्वविद्यालय के छात्र एवं शिक्षक भारत छोड़ो आंदोलन में भी शामिल हुए थे. प्रो. वी.के.आर.वी. राव ने महात्मा गांधी की गिरफ़्तारी के खिलाफ़ प्रार्थना जुलूस का भी नेतृत्व किया. स्वतंत्र भारत में विश्वविद्यालय ने विकास के एक नए चरण में प्रवेश किया. देश के विभाजन ने शहर में बडे पैमाने पर जनसांख्यकीय परिर्वतन किये, इसलिए कॉलेजों की संख्या को बढ़ाने की आवश्यकता महसूस की गयी. 7 मार्च 1948 को आयोजित एक विशेष दीक्षान्त समारोह में जवाहरलाल नेहरू, लॉर्ड माउंटबेटन, ज़ाकिर हुसैन, मौलाना आज़ाद, जॉन सर्जंट और राजकुमारी अमृत कौर को मानद उपाधियाँ भी प्रदान की गईं. दिसंबर 1952 में वार्षिक दीक्षान्त समारोह में डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी, पूर्व केंद्रीय उद्योगमंत्री, और कलकत्ता विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति एवं डॉ. राजेंद्र प्रसाद, भारत के पहले राष्ट्रपति उपस्थित थे.

नामचीन रहे डीयू के अल्युमनाई, पूरी दुनिया से आते हैं छात्र  

1950 में विश्वविद्यालय ने अपना नया प्रतीक चिह्न (Logo) अपनाया जिसने उसे एक नई पहचान दी. डॉ. भीमराव अम्बेडकर, श्रीमती इंदिरा गांधी आदि जैसी कई विभूतियां भी दिल्ली विश्वविद्यालय से जुड़ी रहीं एवं समय-समय पर विश्वविद्यालय को इनका मार्गदर्शन भी प्राप्त हुआ. 1975 के आपातकाल के दौरान भी दिल्ली विश्वविद्यालय के शिक्षकों एवं छात्रों ने इसकी खुलकर मुखालफत भी की, जिसमें पूर्व वित्त मंत्री अरुण जेटली जो उस समय के दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संघ के अध्यक्ष थे, भी शामिल हैं. फिलहाल, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर देश के मुख्य न्यायाधीश भी दिल्ली विश्वविद्यालय के छात्र रहें हैं. देश की कई गणमान्य विभूतियां दिल्ली विश्वविद्यालय से संबंधित रहीं हैं, जीवन-समाज के हर क्षेत्र में दिल्ली विश्वविद्यालय के छात्रों ने सफलता अर्जित की है, नेता, अभिनेता, शिक्षाविद, वैज्ञानिक, डॉक्टर, इंजीनियर, प्रशासनिक अधिकारी, उद्योगपति, स्टार्टअप, इत्यादि में भी दिल्ली विश्वविद्यालय का दबदबा है. 

दिल्ली विश्वविद्यालय में पूरे देश से ही नहीं, पूरी दुनिया से भी बहुत से छात्र शिक्षा प्राप्त करने आते हैं. "वसुधैव कुटुम्बकम", "विविधता में एकता", सही मायने में दिल्ली विश्वविद्यालय में ही साकार होता नजर आता है. दिल्ली विश्वविद्यालय देश का ही नहीं बल्कि पूरे विश्व का सबसे बड़ा विश्वविद्यालय है क्योंकि सबसे ज्यादा विषयों की पढ़ाई, विभिन्न कॉलेज, विभाग, संस्थान, हर साल दी जाने वाली डिग्रियां, छात्र एवं शिक्षक (रेगुलर एवं पत्राचार) जितने दिल्ली विश्वविद्यालय में हैं उतने कहीं भी नहीं हैं. दुनिया की सारी विचारधाराएं भी यहाँ देखीं जा सकतीं हैं उसके बावजूद भी दिल्ली विश्वविद्यालय अपने अकादमिक एक्सीलेंस को बरकार रखे हुए है यहाँ तक कि हर साल यहां छात्र संघ के चुनाव भी शांति पूर्वक होते हैं. अपने वृहद स्वरुप एवं अकादमिक गुणवत्ता की वज़ह से दिल्ली विश्वविद्यालय का नाम गिनीज वर्ल्ड रिकार्ड में आना चाहिए. इस बात में कोई संशय नहीं है कि जब 25 साल बाद, जब देश अपनी आज़ादी के 100 साल पूरे करेगा, तब दिल्ली यूनिवर्सिटी अपनी स्थापना के 125 वर्ष मनाएगी तब इसकी गिनती दुनिया की शीर्ष रैकिंग वाले विश्वविद्यालयों में होगी एवं भारत अपने आप को विश्वगुरु स्थापित कर लेगा और इसमें दिल्ली विश्वविद्यालय की अग्रणी भूमिका होगी.

[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.]

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