एक्सप्लोरर

बिहार की जातिगण गणना और मुसलमानों की जाति का पता लगाना... ये राष्ट्र का नहीं आईना, जानें क्या होगा बड़ा असर

बिहार में जातिवार सर्वेक्षण के आंकड़े 2 अक्टूबर यानी गांधी जयंती के दिन जारी कर दिए गए और उसके साथ ही इस पर तमाम तरह की राजनीति शुरू हो गयी. बयानों की आपाधापी में महागठबंधन के नेताओं ने जहां इसे कालजयी कदम बताया, वहीं भाजपा ने इसे बरगलाने वाली चाल बता दी. आंकड़ों पर भी सवाल उठ रहे हैं और इसके अधूरा या नाकाफी होने की बात भी कही जा रही है. इसके साथ ही यह भी कयास लगाए जा रहे हैं कि बिहार में मंडल 3.0 की शुरुआत हो गयी है जो धीरे-धीरे पूरे देश तक जाएगी तो वहीं कई इसे दग चुका कारतूस बता रहे हैं और कहते हैं कि इसका कोई विशेष प्रभाव नहीं पड़ेगा. तरह-तरह के दावों के बीच एक कयास यह भी लगाया जा रहा है कि कांग्रेस अब जाति-जनगणना की मांग को और तेज करेगी और भाजपा इस पर वेट एंड वाच की नीति अपनाएगी. इतना तो तय है कि भारतीय राजनीति का एक सच है जाति और बिहार में जाति-सर्वेक्षण के बाद राजनीति में उबाल तो आएगा ही. 

पूरे देश का आईना नहीं है

जाति आधारित सर्वेक्षण अगर इन्होंने किया है, तो बुरा नहीं है, लेकिन इसका उद्देश्य क्या है, वह मुझे समझ नहीं आ रहा है. 1881 में ब्रिटिश सरकार ने इसकी शुरुआत की थी और आखिरी बार यह 1931 में हुई. तब यह पूरे देश का हुआ था. अभी तो चलिए बिहार ने जातिगत सर्वेक्षण कराया है. यह पूरे देश का आईना नहीं है. यह कैसे हो सकता है? हरेक प्रांत की अलग डेमोग्राफी है, अलग परिस्थितियां हैं और यह बिहार की डेमोग्राफी है, जिसके अलग-अलग कारण हैं. भूगोल भी इसका एक कारण होता है. अब बिहार में यादव अधिक हैं, क्योंकि यहां नदियां अधिक हैं. यादव पशुपालक जाति है तो जहां उर्वरता होगी, नदियां होंगी, वहीं वे ज्यादा होंगे. वे डेक्कन के इलाके में तो नहीं हो सकते हैं. उसी तरह दक्षिण के राज्य हैं. डेमोग्राफी का लेनदेन भौगोलिक, आर्थिक और सांस्कृतिक मायनों से भी पड़ता है, इसलिए यह अलग प्रांत में अलग होता है. यह जो सर्वेक्षण है, यह बिहार का आईना है.

वैसे भी जाति को एक मरती हुई व्यवस्था के तौर पर मैं देखता हूं और इसका अंत करने की ओर काम करना चाहिए, लेकिन यहां एक अलग ही मंजर है. बिहार में तो जिलावार जो सेंसस हुआ था 1931 वाला, और अभी जो डाटा आया है, उसमें हम कोई अंतर्विरोध नहीं देख रहे हैं. प्रतिशत में अगर लें तो लगभग वैसा ही है. बिहार का विभाजन चूंकि 2000 में हुआ और आदिवासी आबादी जो 9 फीसदी थी (1931 में) वह लगभग खाली हो गया, छोटानागपुर के हटने के बाद और उस हिसाब से ही बाकी जातियों का भी बढ़ना हुआ है. 

1931 में यादव 11 प्रतिशत थे, अभी दो-तीन परसेंट बढ़कर 14 फीसदी हो गए. मुसलमानों की भी उसी हिसाब से बढ़ी है. जिसे जनरल क्लास कहते हैं, वहां चूंकि पढ़े-लिखे थे, साधन-संपन्न लोगों का परिवार नियोजित होता है, चूंकि धन-संपत्ति के विभाजन का खतरा रहता है, तो नए रोजगार के अवसर मिले तो बाहर भी गए. इसलिए, उनकी आबादी थोड़ी कम ही हुई है. नतीजे बिल्कुल अनुमान जैसे ही आए हैं. मैं इसको कोई बहुत क्रांतिकारी कदम नहीं मानता हूं. पिछड़ों की आबादी 7 फीसदी बढ़ गयी है, तो आदिवासियों वाले गैप को भर दिया गया है. यही तो हुआ है. मुसलमानों की आबादी के बारे में जो हल्ला कर रहे हैं, वह भी जान लें कि वह भी आनुपातिक हैं.

जाति-सर्वेक्षण का दांव पड़ सकता है उल्टा 

मूल सवाल तो यह है कि इसको विकास से कैसे जोड़ेंगे..भाई, 30-32 वर्षों से तो बिहार में सामाजिक न्याय की ही सरकार थी. लालूजी, राबड़ी देवी औऱ फिर नीतीश कुमार हैं. तो, इससे ऐसा क्या कर देंगे कि पिछड़ों का विकास हो जाएगा? ऐसी कौन सी योजना बन जाएगी? सरकार के मुताबिक उन्होंने 500 करोड़ रुपए इस कवायद पर खर्च किए हैं, लेकिन उससे तो पूरे राज्य के अस्पताल सुधारे जा सकते थे, स्कूल बेहतर हो सकते थे, तो यह केवल राजनीतिक कदम है. हालांकि, यह समझ नहीं रहे हैं कि इससे तो उनका राजनैतिक नुकसान ही होगा. जब 1990 में मंडल कमीशन आया था, तब से तो भाजपा बढ़ ही रही है और अभी जब ये सर्वे आया है, तो भी भाजपा के घटने के आसार नहीं हैं. रोहिणी आयोग की रिपोर्ट केंद्र सरकार के पास है और अगर बिहार में आर्थिक सर्वेक्षण हुआ है और अगर यादवों-कुर्मियों का स्टेटस जनरल कास्ट के बराबर पाया गया और सरकार ने उनको भी जनरल में डाल दिया तब ये क्या करेंगे? अति-पिछड़े लोगों को कहा जाएगा कि इनको हटाने से आपकी भागीदारी बढ़ जाएगी. बीजेपी यह काम कर सकती है और अनजाने में इन लोगों से भारी गलती हुई है और यह इनको भारी भी पड़ सकता है. जाति एक सच्चाई है, लेकिन बुझती हुई सच्चाई है. उसे जबरन जगाए रखने से फायदा नहीं है. हमें शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार में क्रांतिकारी परिवर्तन लाना था, उससे नया देश बनता. आज जातिगत सर्वे का कोई उपयोग नहीं है. 1990 से अब तक 32 साल बीत चुके. नयी पीढ़ी आ चुकी है और दुनिया बदल चुकी है. 

मुसलमानों की जाति गिनना क्रांतिकारी कदम

नीतीश कुमार इस मामले में शुरू से स्पष्ट रहे हैं. मुसलमानों की जातिवार गणना उन्होंने करवाई भी है. इसके लिए वे बधाई के पात्र हैं. मुसलमानों में जो दलित जातियां हैं, जैसे हलालखोर, भंगी, मेहतर, आदि को इन्होंने अनुसूचित जाति में शामिल किया है और इसको देश के स्तर पर करना चाहिए. इसी से अनुसूचित जाति की संख्या थोड़ी बढ़ी है. जाति कोई हिंदू धर्म का मामला नहीं है, यह तो ईसाइयों में भी है, मुसलमानों में भी है. यह भारतीय उपमहाद्वीप की, बल्कि पिछड़े समाजों की सच्चाई है. जाति का मतलब वहां जहां जन्म पर जोर दिया जाता है. भारतीय संविधान में तो वर्ग बनाया गया है, एससी माने शिड्यूल्ड कास्ट, शीड्यूल्ड ट्राइब और ओबीसी. यहां सी माने कास्ट नहीं, क्लास है. तो, जनगणना होनी भी थी तो वर्ग में ही होता. जहां तक राहुल गांधी के बधाई देने की बात है, तो यह कांग्रेस के पतन का परिचायक है. कांग्रेस की समझदारी अब इतनी हो गयी है. जिस कांग्रेस में कभी नेहरू और गांधी थे, वहां आज राहुल गांधी बधाई दे रहे हैं. 1986 में शाहबानो मामले में ऐसी ही गलती थी और दकियानूसी का समर्थन किया था. आज राहुल उसी का अनुकरण कर रहे हैं. कांग्रेस के अपने जो आदर्श थे, नेहरू जिस साइंटिफिक टेंपर पर जोर देते थे, वहां के लिए यह अफसोस की बात है. 

यह भी एक अलग बात है कि मैं आज नीतीश कुमार से अलग हूं. मुसलमानों की जातिगत गणना तो होनी ही चाहिए. मंडल कमीशन में भी तो मुस्लिम ओबीसी थे ही. उस समय माना गया था कि पिछड़े करीबन 54 फीसदी हैं, जिसमें से 8 फीसदी मुस्लिम पिछड़े हैं. तो यह लोगों को भ्रम है कि ओबीसी में मुस्लिम जातियां नहीं हैं. अगर सभी पिछड़े वर्गों की गणना हुई है, जैसे मंसूर, मलिक, जुलाहे, राइन इत्यादि तो यह बेहद अच्छी बात है, स्वागत होनी चाहिए. गणना हो तो पूरी हो, न हो सारी हो. मुसलमान भी जातियों में बंटे हैं और उनकी भी गणना वैसी ही होनी चाहिए, इसलिए नीतीश कुमार बधाई के पात्र हैं. 

[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. यह ज़रूरी नहीं है कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.]

View More

ओपिनियन

Sponsored Links by Taboola
Advertisement
Advertisement
25°C
New Delhi
Rain: 100mm
Humidity: 97%
Wind: WNW 47km/h
Advertisement

टॉप हेडलाइंस

शशि थरूर को मिला पुतिन के साथ डिनर का न्योता, जाएंगे या नहीं? कांग्रेस सांसद ने दिया क्लीयर जवाब
शशि थरूर को मिला पुतिन के साथ डिनर का न्योता, जाएंगे या नहीं? कांग्रेस सांसद ने दिया क्लीयर जवाब
कथावाचक इंद्रेश उपाध्याय और शिप्रा ने लिए सात फेरे, देखें शादी की पहली तस्वीर
कथावाचक इंद्रेश उपाध्याय और शिप्रा ने लिए सात फेरे, देखें शादी की पहली तस्वीर
Putin India Visit: 'हम सीटियां मारते हैं तो भी पुतिन रुकते नहीं और मोदी के साथ...', रूसी राष्ट्रपति को भारत में देखकर गुस्से से लाल हुए PAK एक्सपर्ट
'हम सीटियां मारते हैं तो भी पुतिन रुकते नहीं और मोदी के साथ...', रूसी राष्ट्रपति को भारत में देखकर गुस्से से लाल हुए PAK एक्सपर्ट
'धुरंधर' के पहले रणवीर सिंह के करियर की सबसे बड़ी ओपनिंग वाली फिल्में कौन सी?
'धुरंधर' के पहले रणवीर सिंह के करियर की सबसे बड़ी ओपनिंग वाली फिल्में कौन सी?
ABP Premium

वीडियोज

Major Crisis For Indigo: क्या अब खत्म हो जाएगा IndiGo संकट? DGCA ने वापस लिया अपना आदेश |ABPLIVE
Dhurandhar Review: Ranveer Singh ने किया Surprise, R. Madhavan & Akshaye Khanna की दमदार screen presence
Flight Delay या Cancel? DGCA के नियम जो Airlines आपको नहीं बताती | Paisa Live
IPO Alert: Luxury Time IPO में Invest करने से पहले जानें GMP, Price Band | Paisa Live
New Labour Code 2024: Take-Home Salary क्यों कम होगी ? Full Salary Breakdown Explained | Paisa Live

पर्सनल कार्नर

टॉप आर्टिकल्स
टॉप रील्स
शशि थरूर को मिला पुतिन के साथ डिनर का न्योता, जाएंगे या नहीं? कांग्रेस सांसद ने दिया क्लीयर जवाब
शशि थरूर को मिला पुतिन के साथ डिनर का न्योता, जाएंगे या नहीं? कांग्रेस सांसद ने दिया क्लीयर जवाब
कथावाचक इंद्रेश उपाध्याय और शिप्रा ने लिए सात फेरे, देखें शादी की पहली तस्वीर
कथावाचक इंद्रेश उपाध्याय और शिप्रा ने लिए सात फेरे, देखें शादी की पहली तस्वीर
Putin India Visit: 'हम सीटियां मारते हैं तो भी पुतिन रुकते नहीं और मोदी के साथ...', रूसी राष्ट्रपति को भारत में देखकर गुस्से से लाल हुए PAK एक्सपर्ट
'हम सीटियां मारते हैं तो भी पुतिन रुकते नहीं और मोदी के साथ...', रूसी राष्ट्रपति को भारत में देखकर गुस्से से लाल हुए PAK एक्सपर्ट
'धुरंधर' के पहले रणवीर सिंह के करियर की सबसे बड़ी ओपनिंग वाली फिल्में कौन सी?
'धुरंधर' के पहले रणवीर सिंह के करियर की सबसे बड़ी ओपनिंग वाली फिल्में कौन सी?
UP AQI: नोएडा-गाजियाबाद नहीं थम रहा जहरीली हवा का कहर, घुट रहा दम, आज भी हालत 'बेहद खराब'
नोएडा-गाजियाबाद नहीं थम रहा जहरीली हवा का कहर, घुट रहा दम, आज भी हालत 'बेहद खराब'
क्या इस भारतीय क्रिकेटर को मिला DSP सिराज से ऊंचा पोस्ट? बंगाल में ड्यूटी की जॉइन
क्या इस भारतीय क्रिकेटर को मिला DSP सिराज से ऊंचा पोस्ट? बंगाल में ड्यूटी की जॉइन
अब हेल्थ और नेशनल सिक्योरिटी का सेस लगाएगी मोदी सरकार, इन चीजों पर नहीं पड़ेगा कोई असर
अब हेल्थ और नेशनल सिक्योरिटी का सेस लगाएगी मोदी सरकार, इन चीजों पर नहीं पड़ेगा कोई असर
अब इनका नंबर है... इंद्रेश उपाध्याय की शादी में पहुंचे कुमार विश्वास, धीरेंद्र शास्त्री की तरफ किया इशारा, देखें वीडियो
अब इनका नंबर है... इंद्रेश उपाध्याय की शादी में पहुंचे कुमार विश्वास, धीरेंद्र शास्त्री की तरफ किया इशारा, देखें वीडियो
Embed widget