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नेपियर घास से बढ़ रहा है दूध उत्पादन, किसान ले रहे है लाखों का मुनाफा

नैपियर बाजरा अपनी वृद्धि की सभी अवस्थाओं पर हरा पौष्टिक और स्वादिष्ट चारा होता है, जिसमें कच्ची प्रोटीन की मात्रा 8-11 प्रतिशत और रेशे की मात्रा 30.5 प्रतिशत होती है.

पियर घास जिसे सदाबहार हरा चारा कहा जाता है वो एक बहुवर्षीय चारे की फसल है. इसके पौधे गन्ने की तरह लम्बाई में बढ़ते हैं. पौधे से 40-50 तक कल्ले निकलते हैं. इसे हाथी घास के नाम से भी जाना जाता है. संकर नेपियर घास अधिक पौष्टिक एवं उत्पादक होती है. पशुओं को नेपियर के साथ रिजका, बरसीम या अन्य चारे अथवा दाने एवं खली देनी चाहिए. बहुवर्षीय फसल होने के कारण इसकी खेती सर्दी, गर्मी और वर्षा ऋतु में कभी भी की जा सकती है. इसलिए जब अन्य हरे चारे उपलब्ध नही होते हैं तो उस समय नेपियर का महत्व अधिक बढ़ जात है.

पशुपालकों को गर्मियों में हरे चारे की सबसे ज्यादा परेशानी होती है बरसीम, मक्का, ज्वार, बाजरा जैसी फसलों से तीन-चार महीनों तक ही हरा चारा मिलता है. ऐसे में पशुपालकों को एक बार नेपियर बाजरा हाइब्रिड घास लगाने पर महज दो महीने में विकसित होकर अगले चार से पांच साल तक लगातार दुधारू पशुओं के लिए पौष्टिक आहार की जरूरत को पूरा कर सकती है .

इसकी प्रमुख प्रजातियां कौन सी हैं?

इसकी प्रमुख प्रजातियों की बात करें तो इनमें, जॉइंट किंग, सुपर नेपियर , सीओ-1, हाइब्रिड नेपियर - 3 (स्वेतिका), सीओ-2, सीओ-3, सीओ-4, पीबीएन - 83, यशवन्त (आरबीएन - 9) आईजीएफआरआई 5 एनबी- 21, एनबी- 37, पीबीएन-237, केकेएम 1, एपीबीएन-1, सुगना, सुप्रिया, सम्पूर्णा (डीएचएन - 6) हैं.

कैसा दिखता है ये पौधा

नैपियर घास (पैनीसिटम परप्यूरीरियम) एक बहुवर्षीय पैनीसेटम कुल का पौधा है, जिसको जड़ों और क्लम्पों के द्वारा समुद्र तल से 1550 मीटर की ऊंचाई पर रोपित करके अच्छी गुणवत्तायुक्त चारा उत्पादन किया जाता है. एक क्लम्प से 3-4 माह की उम्र पर 30-35 पौधे तैयार हो जाते हैं. इसकी पत्तियां गहरे हरे रंग की और 50-70 से.मी. लम्बी एवं 2-3 से.मी. चौड़ी होती हैं.

नैपियर घास की उपयोगिता 

नैपियर बाजरा अपनी वृद्धि की सभी अवस्थाओं पर हरा पौष्टिक तथा स्वादिष्ट चारा होता है जिसमें कच्ची प्रोटीन की मात्रा 8-11 प्रतिशत तथा रेशे की मात्रा 30.5 प्रतिशत होती है. सामान्यत 70-75 दिन की उम्र पर काटे गये चारे की पचनीयता 65 प्रतिशत तक पायी जाती है. नैपियर बाजरा में कैल्शियम 10.88 प्रतिशत तथा फॉस्फोरस 0.24 प्रतिशत तक पाया जाता है. नैपियर घास को अन्य चारे के साथ मिलाकर खिलाना लाभदायक होता है. इस चारे को पशुओं हेतु अधिक उपयोग बनाने के लिए साइलेज बनाकर खिलाना भी लाभदायक होता है.

कहां पर होती है इसकी खेती?

नेपियर की खेती मुख्य रूप से राजस्थान, उत्तर प्रदेश, बिहार, बंगाल, असम, उड़ीसा, आन्धप्रदेश, तमिलनाडु, कर्नाटक, महाराष्ट्र, केरल, हरियाणा और मध्यप्रदेश में की जाती है. दरअसल, गर्म और नम जलवायु वाले स्थान पर, जहां तापमान अधिक रहता है (240-280 सेल्सियस) और वर्षा अधिक होती है. इसके साथ ही वायुमण्डल में आर्द्रता अधिक रहती हो वो ही क्षेत्र नेपियर की खेती के लिए उत्तम माने जाते हैं. 

कब होती है इसकी खेती?

नेपियर को लगाने का सबसे अच्छा समय मार्च का महीना माना जाता है. इसके साथ ही इसकी बुवाई जुलाई-अगस्त में भी कर सकते हैं. हालांकि, अधिक गर्मी और अधिक सर्दी में पौधे ठीक तरह से स्थापित नहीं हो पाते हैं. यदि टुकड़े बड़े हों तो उसकी पत्तियां काट देनी चाहिए, जिससे उत्स्वेदन द्वारा पानी का नुकसान कम होगा! इसके साथ ही बुवाई हमेशा लाइनों और मेड़ों पर करनी चाहिए. इसके साथ ही इस  टुकड़ों का झुकाव उत्तर दिया की ओर रखना चाहिए ताकि फसल पर वर्षा का हानिकारक प्रभाव नहीं पड़े. नेपियर की बूवाई ठीक उसी प्रकार की जाती है जेसे गन्ने की की जाती है.

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