ड्रग इंस्पेक्टरों की नियुक्ति के बाद औपचारिक नियुक्ति पत्र वितरण बना चर्चा का विषय, जानें पूरा मामला
जानकारों का कहना है कि तैनाती आदेश जारी होने के बाद औपचारिक रूप से नियुक्ति पत्र बांटना विभागीय प्रक्रिया का मजाक उड़ाने जैसा है.

उत्तराखंड में स्वास्थ्य विभाग एक बार फिर सुर्खियों में है. इस बार मामला है औषधि निरीक्षकों की नियुक्ति से जुड़ा, जिसे लेकर न केवल राजनीतिक गलियारों में चर्चाएं तेज हैं, बल्कि विभाग की कार्यप्रणाली पर भी सवाल उठने लगे हैं. हाल ही में प्रदेश सरकार ने ड्रग विभाग में 18 नए औषधि निरीक्षकों की नियुक्ति की थी और इन निरीक्षकों के तैनाती स्थल भी तय कर दिए गए थे. लेकिन अब स्वास्थ्य मंत्री डॉ. धन सिंह रावत 8 अप्रैल को इन नव नियुक्त ड्रग इंस्पेक्टरों को औपचारिक रूप से नियुक्ति पत्र सौंपने जा रहे हैं.
इस पूरे घटनाक्रम को लेकर यह सवाल उठ रहे हैं कि जब नियुक्ति पहले ही पूरी हो चुकी थी और तैनाती आदेश जारी कर दिए गए थे, तो अब सार्वजनिक रूप से नियुक्ति पत्र देने की जरूरत क्यों पड़ी? क्या यह एक राजनीतिक स्टंट है या फिर सरकार की छवि चमकाने की कवायद.
जानकारों का कहना है कि तैनाती आदेश जारी होने के बाद औपचारिक रूप से नियुक्ति पत्र बांटना विभागीय प्रक्रिया का मजाक उड़ाने जैसा है. आमतौर पर नियुक्ति पत्र की प्रक्रिया पहले पूरी होती है, उसके बाद तैनाती होती है. लेकिन यहां उल्टा क्रम अपनाया गया है, जिससे विभाग की कार्यप्रणाली पर सवाल उठना स्वाभाविक है.
स्वास्थ्य विभाग के भीतर भी इस मुद्दे को लेकर खींचतान की स्थिति है. सूत्रों के मुताबिक, विभाग के कुछ अधिकारी इस ‘प्रचारात्मक आयोजन’ से असहज हैं, जबकि कुछ इसे मंत्री की उपलब्धियों को सार्वजनिक करने का एक जरिया मान रहे हैं.
राजनीतिक विश्लेषक इस पूरे घटनाक्रम को ‘श्रेय की राजनीति’ से जोड़कर देख रहे हैं. उनके अनुसार, लोकसभा चुनावों के ठीक पहले इस तरह का आयोजन राजनीतिक लाभ उठाने की कोशिश के रूप में देखा जा रहा है. एक विश्लेषक ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, "जब नियुक्ति पहले हो चुकी हो, तब मंत्री द्वारा औपचारिक नियुक्ति पत्र बांटना एक तरह से यह दिखाने की कोशिश है कि यह उपलब्धि उनकी व्यक्तिगत पहल का परिणाम है.
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उत्तराखंड में पहले से ही बेरोजगारी एक गंभीर मुद्दा बना हुआ है. हाल ही में कई प्रतियोगी परीक्षाएं रद्द हुई हैं या विवादों में रही हैं. ऐसे में युवाओं के मन में यह सवाल उठना लाजमी है कि क्या सरकारी भर्तियों की प्रक्रिया पारदर्शी ढंग से चल रही है? औपचारिकता के नाम पर नियुक्ति पत्रों का वितरण न केवल सवाल पैदा करता है, बल्कि उन युवाओं की भावनाओं से भी खिलवाड़ करता है जो सालों से नौकरी की आस में हैं.
स्वास्थ्य मंत्री डॉ. धन सिंह रावत पहले भी अपने बयानों और कार्यशैली को लेकर विवादों में रह चुके हैं. इस बार भी उन पर विभागीय प्रक्रिया को 'राजनीतिक रंग' देने का आरोप लग रहा है. विपक्षी दलों ने भी इस मुद्दे को लेकर मंत्री पर निशाना साधा है और इसे “लोकतंत्र की प्रशासनिक मर्यादाओं का उल्लंघन” बताया है.
ड्रग इंस्पेक्टरों की नियुक्ति के बाद औपचारिक नियुक्ति पत्र बांटने की यह कवायद जहां एक ओर सरकार की सक्रियता का प्रदर्शन करने की कोशिश है, वहीं दूसरी ओर इससे विभागीय प्रक्रियाओं की पारदर्शिता और गंभीरता पर सवाल खड़े हो रहे हैं. आने वाले समय में यह देखना दिलचस्प होगा कि सरकार इस आलोचना से कैसे निपटती है और जनता के भरोसे को कायम रखने के लिए क्या कदम उठाती है.
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