प्रयागराज: मुस्लिम समुदाय के लोग करते हैं उर्दू में रामलीला का मंचन, गंगा जमुनी तहजीब की अनोखी परंपरा
प्रयागराज में गंगा जमुनी तहजीब की अनोखी परंपरा देखने को मिली है। यहां मुस्लिम समुदाय के लोग उर्दू में रामलीला का मंचन करते हैं।

प्रयागराज, मोहम्मद मोइन। देश में एक तरफ भगवान राम के मंदिर को लेकर विवाद छिड़ा हुआ है। राम के मंदिर पर हिन्दू और मुस्लिम समुदाय के लोग एक-दूसरे के खिलाफ देश की सबसे बड़ी अदालत में कानूनी लड़ाई लड़ रहे हैं तो वहीं गंगा-जमनी तहजीब का संदेश देने वाले प्रयागराज शहर के मुस्लिम समुदाय के लोग इससे बेफिक्र होकर खास अंदाज में भगवान राम की महिमा का गुणगान करने में जुटे हुए हैं। यहां मुस्लिम समुदाय के लोग भगवान राम को धार्मिक दायरे से बाहर निकालकर पूरी दुनिया को उनकी मर्यादा पुरुषोत्तम की छवि और उनके आदर्श -त्याग, विचार व संदेशों से बेहद खास अंदाज में रूबरू करा रहे हैं। प्रयागराज के मुस्लिमों ने इसके लिए खास तौर पर उर्दू में रामलीला को तैयार किया है। इस खास रामलीला में राम के किरदार पर ही ज़्यादा फोकस भी किया गया है। उर्दू में तैयार की गई इस ख़ास रामलीला के प्रोड्यूसर -डायरेक्टर और स्क्रिप्ट राइटर मुस्लिम ही हैं तो साथ ही लक्ष्मण और सीता समेत रामलीला के तकरीबन आधे किरदारों को अक्लियत के लोग ही मंच पर पेश भी कर रहे हैं।

तकरीबन डेढ़ घंटे की इस खास उर्दू की रामलीला का पहला शो शनिवार को प्रयागराज में हुआ। मुस्लिमों द्वारा तैयार की गई उर्दू की इस ख़ास रामलीला का मंचन प्रयागराज के बाद अब अगले हफ्ते से देश के दूसरे सभी बड़े शहरों में किये जाने की तैयारी है। इस अनूठी रामलीला में बाकी सब तो वहीं है, जो वाल्मीकि रामायण व रामचरित मानस में है। इसके डायलॉग उर्दू में हैं तो साथ ही इस अनूठी रामलीला के जरिये भगवान राम को एक खास मज़हब के दायरे से बंधे होने की छवि से बाहर निकालकर उनकी मर्यादा पुरुषोत्तम की छवि को समूची दुनिया और समूची इंसानियत के लिए जरूरी बताने की शानदार कोशिश भी की गई है। इसीलिए इस रामलीला का नाम दिया गया है, दास्तान-ए-राम। यानी मर्यादा पुरुष से भगवान बनने वाले राम की कहानी। प्रयागराज में मंच पर इसका प्रस्तुतीकरण इतने शानदार तरीके से किया गया कि एनसीजेडसीसी सभागार में बैठे दर्शक डेढ़ घंटे के दौरान एक पल के लिए भी स्टेज से टकटकी नहीं हटा सके। इस अनूठी रामलीला के जरिये दुनिया को यह बताने की कोशिश की गई कि राम जीवन जीने का आदर्श व्यक्तित्व हैं। वह हिन्दुओं के लिए जितने अहम हैं, दूसरे मजहबों के लिए भी उससे कतई कम नहीं।
उर्दू की इस अनूठी रामलीला को देखने के लिए सैकड़ों की तादात में लोग जुटे। लोगों ने न सिर्फ इस रामलीला की तारीफ की, बल्कि इसके मकसद व संदेश को भी जी भरकर सराहा। रामलीला के मंचन के दौरान कई मुस्लिम किरदारों ने स्टेज पर अपनी प्रस्तुति के दौरान जय श्री राम का जयकारा भी लगाया। रामलीला तैयार करने वालों से लेकर इसके मुस्लिम आर्टिस्ट तक ने एक आवाज में कहा कि राम के मंदिर के नाम पर आपस में विवाद और सियासी खींचतान पूरी तरह गलत हैं। राम सिर्फ हिन्दुओं के नहीं, बल्कि हम सब के हैं, इसलिए अयोध्या में राम के मंदिर को सभी को मिलकर बनाना चाहिए।
दास्तान -ए- राम की रामलीला सब को आसानी से समझ आ जाए, इसके लिए इसमें उर्दू के बेहद आसान लफ्जों का इस्तेमाल किया गया। इस रामलीला के प्रोड्यूसर शिक्षाविद और पत्रकार मोहम्मद तारिक खान हैं, तो डायरेक्टर मुस्तफा मलिक। स्क्रीन प्ले और डायलॉग दानिश इकबाल का है। रामलीला में सीता का किरदार शानफा रहमान ने निभाया तो अदनान ने लक्ष्मण का।
बेनहर्स फोरम फॉर थियेटर आर्टस के बैनर तले हुई उर्दू की इस रामलीला ने हिंदी और संस्कृत के बाद उर्दू में रामलीला के मुंशी प्रेमचंद के नब्बे बरस पुराने सपने को भी हकीकत में तब्दील करने का काम किया है। इसमें कर्नाटक की प्रचलित छाया कठपुतली का प्रयोग कर इसे और आकर्षक बनाया गया है तो साथ ही स्टेज पर भरतनाट्यम व कथकली के जरिये इसे अनूठा बनाने की भी कोशिश की गई है। इसे तैयार करने में तकरीबन छह महीने का वक्त लगा है। पचास से ज़्यादा लोगों की टीम ने मिलकर इस अनूठी रामलीला को तैयार किया है। कहा जा सकता है कि दास्तान- ए- राम नाम की उर्दू की यह रामलीला अपने अनूठे संदेश की वजह से आने वाले दिनों में कामयाबी की ऐसी इबारत लिखेगी, जो राम के बेमिसाल व्यक्तित्व को और आगे बढ़ा सकती है।
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Source: IOCL





















