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Raj Ki Baat: यूपी में पल पल बदल रहे राजनीतिक हालात, गठबंधन को लेकर टेंशन में सारे सियासी सूरमा

चुनाव से पहले सामाजिक और राजनीतिक समीकरणों को अपने पक्ष में करने की बीजेपी और समूचे विपक्ष की जंगफ़िलहाल सबसे दिलचस्प मोड़ पर पहुँच गई है.

Raj Ki Baat: उत्तर प्रदेश की सियासी जंग धीरे धीरे अब उस चरम बिंदु तक पहुंचनी शुरू हो गई है जहां से किसी राजनैतिक कदम का विश्लेषण करपाना भी दूरूह हो जाता है. पल दर पल और मिनट दर मिनट बदल रहे राजनैतिक हालात के बीच कहां से बाजी पलट जाए या कहां से नेता पलट जाए, कोई इस बात का आंकलन कर ही नहीं सकता. 2022 विधानसभा चुनाव के मुहाने पर खड़ी यूपी की राजनीति परअनिश्चितता वाले ये एक एक शब्द सत्य साबित हो रहे हैं.

उत्तर प्रदेश के आगामी चुनाव में स्थितियां जितनी चुनौतीपूर्ण सत्ता पक्ष के लिए सत्ता में वापसी की हैं उससे कहीं ज्यादा कठिन हालतविपक्ष की है. चुनाव से पहले सामाजिक और राजनीतिक समीकरणों को अपने पक्ष में करने की बीजेपी और समूचे विपक्ष की जंगफ़िलहाल सबसे दिलचस्प मोड़ पर पहुँच गई है. एक दूसरे के पाले में सेंध की इन तमाम कोशिशों में कभी कोई किसी के नहले परदहला मारता है तो कभी कोई तुरुप के पत्ते से समीकरणों की बाज़ी अपने पक्ष में कर रहा है. 

बीजेपी की विकास और हिंदुत्व के साथ मैदान में जाने की कोशिश
समीकरण साधने के इस युद्ध में एक बात तय है कि बीजेपी की कोशिश जहां विकास योजनाओं और सामाजिक समीकरणों को अपने हिंदुत्व के साथ सहेजकर जनता के बीच जाने की है. उसकी कोशिश यह भी कि विपक्ष पूरी तरह एकजुट न हो अपनी तरफ़ से पूरीताक़त से लड़े. ज़ाहिर है हर दल की महत्वाकांक्षा और अपने लोग हैं, जिससे वह सत्ता में अपनी हिस्सेदारी ज़्यादा से ज़्यादा सुनिश्चितकरना चाहता है. विपक्षी दलों की यह होड़ ज़ाहिर तौर पर बीजेपी के मुफ़ीद है. 

हालांकि अभी कुछ दिन पहले तक ये चुनौती इतनी बड़ी नहीं थी क्योंकि अखिलेश यादव मजबूती के साथ कमल के सामने कमान थामकर खड़े हुए थे लेकिन अब आखिर ऐसा क्या बदल गया की चुनौती बड़ी हो गई, यही हम आपको आज राज की बात में बताने जा रहेहैं.राज की बात ये है कि यूपी में विपक्ष का हर सूरमा इस समय टेंशन में. कोई गठबंधन को लेकर टेंशन में है, कोई बागियों से टेंशन में है, कोई दूसरे दलों की बिसात से टेंशन में है तो किसी को ये टेंशन खाए जा रही है कि खुद का जनाधार वोटकाटने वाली सियासत औरसूरमाओं से कैसे बचाया जाए. जी हां यही वो राज की बात है जो यूपी चुनाव के पूरे समीकरण और सियासत को झकझोर रही है.

प्रियंका गांधी वाड्रा की सक्रियता से बदले से बदले सियासी समीकरण
राज की बात ये है कि वर्तमान में जो समीकरण बदले हैं वो प्रियंका गांधी वाड्रा की सक्रियता से बदले हैं. कुछ दिनों पहले तक अखिलेशही अखिलेश विपक्षी पटल पर छाए हुए थे लेकिन प्रियंका आईं, लखीमपुर पर भिड़ी...आगरा पर भिड़ी ....महिलाओं के लिएलोकलुभावन वादे किए और सपा के नेता का थोड़ा स्पेस अपने पाले में खींच लाईं. और विपक्ष जब भी मजबूती से साथ कई धुरियों मेंबंटता है तो फिर उसका सीधा फायदा मिलता है सत्ताधारी दल को और यही वजह है अंदरखाने से सुगबुगाहट इस बात की भी यूपी में होरही है कि प्रियंका को सरकार ने जानबूझकर माहौल लूटने दिया है ताकि अखिलेश एकमात्र चेहरा विपक्ष के सूबे में न रह जाएं.

तो पहला मसला तो यूपी की सियासत में विपक्ष का नेता बनने का हो गया. ये स्पष्ट है कि अखिलेश जैसी जमीन भले ही प्रियंका नहीं बना पाई हैं लेकिन लाइमलाइट में तो आ ही गई हैं और अखिलेश के कुछ वोट काटने भर की जमीन तो तैयार हो ही गई है. ये रहाराजनीति का एक पक्ष.

दूसरे पक्ष में जाएं तो टेंशन गठबंधन पर फंसी हुई है. सपा की कोशिश है कि छोटे दलों को साधकर छोटी छोटी जातियों के वोटबैंक कोसाधा जाए. अखिलेश इसमें सफल भी हैं और इतने सफल कि बीजेपी के खेमे में जाते जाते ओपी राजभर को अपने पाले में खींच लाए. इतना ही नहीं कांग्रेस के तमाम सूरमा भी अखिलेश के साथ हैं या फिर साइकिल की सवारी करने को आतुर हैं. 

कांग्रेस की कोशिश सपा से हो जाए गठबंधन
राज की बात ये है कि कांग्रेस भी इस कोशिश में लगी है कि समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन हो जाए. हालांकि अखिलेश इस मामलेपर कोई संकेत नहीं दे रहे लिहाजा कांग्रेस की टेंशन अकेले चुनाव में उतरने के डर से बढ़ी हुई है. राज की बात ये भी है कि कांग्रेस ने तोसपा को यहां तक ऑफर किया है कि जिन सीटों पर सपा तीसरे या चौथे नंबर पर रही है वो सीटें गठबंधन करके कांग्रेस को दे दे. लेकिनएक बार कांग्रेस से गठबंधन करके गच्चा खा चुके अखिलेश दोबारा इसमे जाना चाहते हैं या नहीं....इस पर संशय बना हुआ है. लिहाजाकांग्रेस सियासी परेशानी में फंसी हुई है. 

हालांकि ऐसा नहीं है कि ये टेंशन केवल कांग्रेस को ही है. टेंशन में सपा और सपा अध्यक्ष भी हैं. अखिलेश के सियासी टेंशन की वजहक्या है वो भी आपको बताते है. राज की बात ये है कि सपा ये मानकर चल रही है कि रालोद से उनका सैद्धान्तिक गठबंधन है और वोमिलकर ही चुनाव लड़ेगे. लेकिन यहां पर एक राज की बात और भी है. राज की बात ये कि जयंत चौधरी सस्ता सौदा करना नहीं चाहतेऔर अखिलेश गठबंधन के समझौते में किसी को ज्यादा सीट देना नहीं चाहते. 

जयंत चौधरी की एक मुलाकात ने बढ़ाई अखिलेश की टेंशन
लिहाजा इन्ही हालात के बीच एक और राज की बात सामने आई. बीते दिनों रालोद अध्यक्ष जयंत चौधरी ने बीजेपी के एक शीर्ष नेता के साथ मुलाकात कर और इसी खबर के बाद अखिलेश की टेंशन बढ़ गई. क्योंकि पश्चिमी यूपी में रालोद के सहयोग से बीजेपी कोकमजोरी के चरम तक पहुंचाया जा सकता है और अगर उसी रालोद के समीकरण बीजेपी के साथ बैठने शुरू हों तो फिर पूर्वांचल सेज्यादा पश्चिम से आस लगाए बैठे नेता का विचलित हो जाना स्वाभाविक है.

बीजेपी को गठबंधन से हराने की जुगत में सेंध!
ये बात तो हुई पार्टी और उसके नेता के समीकरण के बिगड़ने की आशंका की. लेकिन केवल पार्टी ही नहीं बल्कि रालोद अध्यक्ष केबीजेपी के शीर्ष नेता की मुलाकात से विपक्ष और बिखरता नजर आने लगा. पूर्वांचल में सपा और कांग्रेस का गठबधन बीजेपी के लिए चुनौती बन सकता है तो वो गठबंधन नही हो पा रहा. औऱ पश्चिमी यूपी में सपा और रालोद बीजेपी को झटका दे सकते हैं तो अभ उस संभावना में बीजेपी की सेंध लगती हई नजर आ रही है. इन सबके बीच पश्चिम में प्रभाव रखने वाले 2 नेताओं का कांग्रेस से तौबा करलेना भी एक झटके का सबब प्रियंका के लिए बन गया है.

तो राज की बात ये है कि सत्ताधारी बीजेपी तो सधे अंदाज मे अपने प्लान पर काम कर रही है लेकिन विपक्ष मजबूत होने के बजायकमजोर होता चला जा रहा है. अभी हवाई जहाज़ पर शुक्रवार को प्रियंका और अखिलेश की मुलाक़ात और इससे पहले फ़ोन पर वार्ताक्या गुल खिलाएगा, इस पर सबकी नज़रें टिकी हैं. वैसे राज की बात ये कि नवंबर के मध्य तक गठबंधन या रणनीतिक तरीक़े सेउम्मीदवार बीजेपी के सामने खड़े करने पर बड़ा धमाका विपक्ष की तरफ़ से हो सकता है. 

हालांकि चुनाव में उतरने से पहले वाली सियासी तस्वीर तैयार हो गई है ये भी नहीं कहा सकता. जिस तरह से तेजी के साथ समीकरणबदल रहे हैं उससे ये अंदाजा लगाया जा रहा है कि नवबर के आखिर तक ही ये तय हो पाएगा कि चक्रव्यूह का स्वरूप क्या होगा औरलड़ाई किस अदांज में लड़ी जाएगी. लेकिन इतना तो साफ है क सियासी शह मात के इस खेल में अभी बहुत दिलचस्प मोड़ बाकी हैऔर वक्त के साथ ही साथ ये तस्वीर साफ हो पाएगी. 

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