नौकरी में हुये असफल, कलकतिया बेर की लगाई बगिया और पैदा हुये रोजगार के अवसर
ओमप्रकाश मौर्य को नौकरी में असफलता हाथ लगी, लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी. लाल बेर की खेती की और हौसले से लिख दी सफलता की कहानी.

बस्ती: कुछ करने की सोच और हौसला हो तो फिर सफलता की मंजिल आप से दूर नहीं रह सकती. ऐसी ही राह पर चलकर कप्तानगंज विकास क्षेत्र के परिवारपुर गांव के ओमप्रकाश मौर्य ने कलकतिया बेर की बगिया लगाई तो यहां 'रोजगार के अवसर' पैदा हो गए. मैदानी एवं सामान्य तापमान वाले इलाके में कश्मीरी सेब के मानिद नए प्रजाति का बेर अभिनव प्रयोग साबित हो रहा है.
160 पौधे मंगवाए
स्नातक की पढ़ाई के बाद नौकरी में असफल हुए ओमप्रकाश खेती के साथ ही कप्तानगंज कस्बे में ग्राहक सेवा केंद्र चलाने लगे. इंटरनेट के जरिये खेती के तौर-तरीके सीखने की जिज्ञासा हुई. बेर की खेती का प्रयोग देखा तो उन्हें भाया. कोलकाता की एक एजेंसी से संपर्क साधा. वहां की नर्सरी से कश्मीरी रेड एप्पल प्रजाति के बेर के 160 पौधे मंगवाए. डेढ़ बीघा खेत में इसकी रोपाई की. आठ महीने में पौधे विकसित हो गए और सज गई सुर्ख लाल बेर की आकर्षक बगिया. फरवरी के दूसरे सप्ताह तक यह पककर तैयार हो जाएंगे.
दूसरी पैदावार में होता है ज्यादा मुनाफा
ओमप्रकाश के मुताबिक, पहले साल एक पेड़ से लगभग 20 से 25 किलोग्राम फल मिलने की संभावना है. अगले सीजन में पेड़ जब और विकसित होंगे तो पैदावार बढ़कर 75 किलो से एक क्विंटल तक हो जाएगी. इस प्रजाति के बेर की कीमत फुटकर में 90 और थोक में 70 रुपये प्रति किलोग्राम है. पहली बार कम पैदावार होने और पेड़ों की रोपाई में खर्च होने के नाते मुनाफा कम आता है, लेकिन दूसरी पैदावार से आमदनी बढ़ जाएगी. पहली बार इनकी बगिया में लाल बेर के उत्पादन का आंकलन 40 क्विंटल है, जिसकी थोक में अनुमानित कीमत 28 हजार रुपये है. इसकी खेती के लिए सिंचाई और तापमान का विशेष ध्यान रखने की जरूरत है. फल का सीजन समाप्त होने पर ओमप्रकाश मिर्चा, बैंगन, टमाटर लगाकर अतिरिक्त आमदनी करेंगे.
अपनी फसल को लेकर उत्साहित हैं
ओमप्रकाश की इस खेती में उनके पिता और पूरे परिवार का भरपूर सहयोग मिलता है, अभी तक रेड बेर की खेती इक्का दुक्का किसान ही करते हैं, मगर पहली बार ओमप्रकाश ने हौसले के साथ यह खेती शुरू की है और फसल देखकर उन्हें लग भी रहा की वह इसमें सफल भी हुए है, अभी उनके सामने चुनौती कम नहीं है, फसल तैयार होने के बाद मार्केट की भी तलाश करनी होगी, क्यों की लाल बेर की डिमांड यहां कम है और मार्केट भी नहीं है, बावजूद ओमप्रकाश हार मानने को तैयार नहीं है और अपनी फसल को लेकर बेहद उत्साहित है.
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