सही पोषण-यूपी रोशन: कुपोषण पर वार से राज्य में कैसे बदली महिलाओं और बच्चों की तकदीर?
UP News: उत्तर प्रदेश में पोषण अभियान और तकनीक के बेहतर इस्तेमाल से महिलाओं और बच्चों के स्वास्थ्य में बड़ा सुधार दिख रहा है. कुपोषण, शिशु और मातृत्व मृत्यु दर में गिरावट आई है.

UP News: उत्तर प्रदेश, जो भारत की सबसे बड़ी आबादी वाला राज्य है, अब स्वास्थ्य और पोषण के क्षेत्र में एक नई और सकारात्मक दिशा की ओर बढ़ रहा है. एक स्वस्थ समाज की नींव स्वस्थ महिला और स्वस्थ बच्चे पर टिकी होती है. इसी मंत्र को आधार बनाकर प्रदेश में कुपोषण के खिलाफ एक निर्णायक युद्ध छेड़ा गया है, जिसके परिणाम अब धरातल पर दिखने लगे हैं.
बदलाव की बयार: आंकड़े क्या कहते हैं?
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 (NFHS-5) के आंकड़े बताते हैं कि उत्तर प्रदेश में बच्चों और महिलाओं के स्वास्थ्य में उल्लेखनीय सुधार हुआ है. जहां पहले बच्चों में ठिगनेपन (Stunting) और दुबलेपन (Wasting) की समस्या गंभीर थी, वहीं अब इसमें गिरावट दर्ज की गई है.
सर्वेक्षण के अनुसार, बच्चों में ठिगनेपन की दर में लगभग 7% की कमी आई है. मातृत्व मृत्यु दर (MMR) और शिशु मृत्यु दर (IMR) में भी पिछले कुछ सालों में लगातार गिरावट देखी गई है, जो बेहतर स्वास्थ्य सेवाओं की पहुंच का प्रमाण है.
तकनीक और आंगनवाड़ी का संगम
इस बदलाव का सबसे बड़ा श्रेय 'पोषण अभियान' और तकनीक के इस्तेमाल को जाता है. प्रदेश की लाखों आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं को अब स्मार्टफोंस (Poshan Tracker App) से लैस किया गया है. इससे बच्चों और गर्भवती महिलाओं के स्वास्थ्य की रीयल-टाइम मॉनिटरिंग संभव हो पाई है. अब यह पता लगाना आसान है कि किस बच्चे को राशन मिला और किसे नहीं.
महिला सशक्तिकरण: टेक-होम राशन और स्वयं सहायता समूह
सरकार ने एक और क्रांतिकारी कदम उठाया है. अब आंगनवाड़ी केंद्रों पर बच्चों और गर्भवती महिलाओं को दिया जाने वाला 'ड्राई राशन' (पंजीरी या दलिया) बनाने का काम बड़ी कंपनियों के बजाय महिला स्वयं सहायता समूहों (SHGs) को सौंपा जा रहा है. इससे दो फायदे हो रहे हैं:
- गांव की महिलाओं को रोजगार मिल रहा है और वे आर्थिक रूप से सशक्त हो रही हैं.
- ताजा और गुणवत्तापूर्ण पोषण बच्चों तक पहुंच रहा है, क्योंकि इसे बनाने वाली भी उसी समुदाय की माएं हैं.
'संभव' अभियान और जन-आंदोलन
कुपोषण को जड़ से खत्म करने के लिए प्रदेश में 'संभव' जैसे अभियान चलाए गए, जिसका उद्देश्य अति कुपोषित बच्चों की पहचान करना और उनका इलाज करना है. इसके अलावा, 'पोषण माह' और 'पोषण पखवाड़ा' जैसे कार्यक्रमों ने इसे एक सरकारी योजना से बदलकर 'जन-आंदोलन' बना दिया है. हालांकि चुनौतियां अभी भी हैं, लेकिन जिस तरह से उत्तर प्रदेश में स्वास्थ्य सुविधाओं का विस्तार हो रहा है और पोषण को प्राथमिकता दी जा रही है, वह दिन दूर नहीं जब प्रदेश 'कुपोषण मुक्त' होकर देश के विकास में अपनी सबसे मजबूत भागीदारी निभाएगा. स्वस्थ बचपन और सशक्त नारी ही 'नए उत्तर प्रदेश' की असली पहचान बन रहे हैं.
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Source: IOCL























