देहरादून के इस गांव में महिलाओं के गहने पहनने की सीमा हुई तय, अंग्रेजी शराब पर भी लगाई गई रोक
Dehradun News: पंचायत के अनुसार, महिलाएं कानों में कुंडल,मुर्की,झुमकी या बाली, नाक में फूली, गले में मंगलसूत्र और हाथ में अंगूठी पहन सकती हैं. अन्य भारी या दिखावटी आभूषणों को पहनने की मनाही होगी.

उत्तराखंड की ग्रामीण परंपराएं और सामाजिक रीति-रिवाज एक बार फिर चर्चा में हैं. देहरादून जिले के चकराता ब्लॉक के खारसी गांव की पंचायत ने एक अहम फैसला लिया है, जिसके तहत महिलाओं के गहने पहनने की सीमा तय कर दी गई है. इसके साथ ही गांव में शादी समारोह और अन्य आयोजनों में अंग्रेजी शराब के सेवन और परोसे जाने पर पूरी तरह पाबंदी लगाने का निर्णय भी लिया गया है.
सोमवार को ग्राम खारसी में हुई पंचायत बैठक में यह निर्णय सर्वसम्मति से लिया गया. बैठक में ग्रामीणों,महिलाओं और पंचायत प्रतिनिधियों ने भाग लिया. पंचायत ने तय किया कि अब गांव की महिलाएं और बेटियां सामाजिक एवं धार्मिक आयोजनों में सीमित गहने ही पहन सकेंगी. यह नियम न केवल गांव की महिलाओं पर बल्कि बाहर से आने वाली बेटियों पर भी लागू होगा.
पंचायत के अनुसार, महिलाएं कानों में कुंडल,मुर्की,झुमकी या बाली, नाक में फूली, गले में मंगलसूत्र और हाथ में अंगूठी पहन सकती हैं. अन्य भारी या दिखावटी आभूषणों को पहनने की मनाही होगी. पंचायत ने कहा कि इस फैसले का उद्देश्य समाज में दिखावे की प्रवृत्ति को रोकना और सादगी की परंपरा को बनाए रखना है.
प्रतिस्पर्धा के कारण बढ़ रहे शादियों में अनावश्यक खर्चे
ग्राम प्रधान ने बताया कि गांव में बढ़ते दिखावे और प्रतिस्पर्धा के कारण शादियों में अनावश्यक खर्च बढ़ रहे थे.जिससे कई परिवार आर्थिक बोझ तले दब जाते हैं. इस फैसले से समाज में समानता और सादगी को बढ़ावा मिलेगा.
पंचायत ने इसके साथ ही अंग्रेजी शराब पर भी प्रतिबंध लगाने का फैसला किया है.अब गांव में किसी भी विवाह या समारोह में अंग्रेजी शराब परोसी नहीं जाएगी. ग्रामीणों का कहना है कि शराब से परिवारों में कलह और असामाजिक व्यवहार बढ़ता है, इसलिए यह निर्णय सामाजिक सौहार्द और सुरक्षा को ध्यान में रखकर लिया गया है.
चकराता ब्लॉक में भी लिया गया था ऐसा ही फैसला
गौरतलब है कि इसी तरह का निर्णय बीते अक्टूबर में चकराता ब्लॉक के कंधाड गांव की पंचायत ने भी लिया था, जहां महिलाओं को तीन गहने तक पहनने की अनुमति दी गई थी. अब खारसी गांव की पंचायत ने इस परंपरा को आगे बढ़ाते हुए सीमाओं को और स्पष्ट कर दिया है. ग्रामीणों का कहना है कि यह फैसला गांव की संस्कृति को बचाने और सामाजिक एकता को मजबूत करने की दिशा में एक सकारात्मक कदम है. पंचायत ने सभी परिवारों से इस निर्णय का पालन करने की अपील की है.
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