रेप पीड़िताओं के गर्भपात में देरी पर हाईकोर्ट ने खुद लिया संज्ञान, लापरवाही पर जताई नाराजगी
Prayagraj News: हाईकोर्ट ने टिप्पणी करते हुए कहा कि दुष्कर्म पीड़िताओं के गर्भपात मामलों में कई स्तरों पर प्रक्रियात्मक अड़चनें सामने आती हैं. इसका असर उनके शारीरिक-मानसिक स्थिति पर भी पड़ता है.

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने दुष्कर्म पीड़ित महिलाओं के गर्भपात से जुड़े मामलों में हो रही अनावश्यक देरी को गंभीर मसला मानते हुए स्वतः संज्ञान लिया है. कोर्ट ने इसे केवल एक प्रशासनिक चूक नहीं, बल्कि पीड़िताओं के मौलिक अधिकारों से जुड़ा विषय बताया है. इसी क्रम में हाईकोर्ट ने इस मुद्दे पर सुओ मोटो जनहित याचिका दर्ज कर विस्तृत सुनवाई शुरू की है.
हाईकोर्ट ने टिप्पणी करते हुए कहा कि दुष्कर्म पीड़िताओं के गर्भपात मामलों में कई स्तरों पर प्रक्रियात्मक अड़चनें सामने आती हैं. मेडिकल बोर्ड की देरी, प्रशासनिक अनुमति में विलंब और स्पष्ट दिशा-निर्देशों के अभाव के कारण पीड़िताओं को समय पर आवश्यक चिकित्सा सहायता नहीं मिल पाती. इसका सीधा असर उनके शारीरिक स्वास्थ्य के साथ-साथ मानसिक स्थिति पर भी पड़ता है, जो बेहद चिंताजनक है.
संवेदनशील मामलों में लापरवाही पर कोर्ट की नाराजगी
कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि ऐसे संवेदनशील मामलों में थोड़ी सी भी देरी पीड़िता के लिए गंभीर परिणाम ला सकती है. न्यायालय का मानना है कि गर्भपात से जुड़े मामलों में समय का अत्यधिक महत्व होता है, लेकिन व्यवहार में देखा जा रहा है कि प्रक्रियाएं इतनी जटिल हैं कि पीड़िताओं को लंबा इंतजार करना पड़ता है. हाईकोर्ट ने इसे मानवीय दृष्टिकोण की कमी करार दिया.
अधिकारियों को संवेदनशील बनाने की जरूरत
खंडपीठ ने कहा कि इस तरह के मामलों में केवल कानून का पालन ही पर्याप्त नहीं है, बल्कि संबंधित अधिकारियों और चिकित्सा तंत्र को संवेदनशील बनाने की भी आवश्यकता है. कोर्ट ने संकेत दिया कि भविष्य में ऐसे स्पष्ट दिशानिर्देश तय किए जाने चाहिए, जिससे दुष्कर्म पीड़िताओं को गर्भपात के लिए अनावश्यक कानूनी और प्रशासनिक अड़चनों का सामना न करना पड़े.
न्याय मित्र की नियुक्ति, अगली सुनवाई तय
इस मामले में अदालत की सहायता के लिए वरिष्ठ अधिवक्ता महिमा मौर्य को न्याय मित्र नियुक्त किया गया है. न्याय मित्र अदालत के समक्ष तथ्यों, कानूनी प्रावधानों और सुधारात्मक सुझावों को रखेंगे. हाईकोर्ट ने मामले की अगली सुनवाई 13 जनवरी को निर्धारित की है. कोर्ट को उम्मीद है कि इस सुनवाई के बाद दुष्कर्म पीड़िताओं के गर्भपात मामलों में समयबद्ध और मानवीय प्रक्रिया सुनिश्चित करने की दिशा में ठोस कदम उठाए जाएंगे.
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