Agra: आगरा का 'लाल ताजमहल' जिसे एक पत्नी ने पति की याद में बनवाया था, जानें - क्या है इससे जुड़ा इतिहास
उत्तर प्रदेश के आगरा में ताजमहल की तरह दिखने वाला एक और मकबरा है जिसे आरसी सिमट्री के नाम से जाना जाता है लेकिन यह पर्यटकों के बीच लाल ताजमहल के नाम से मशहूर है.
UP News: ताजमहल (Taj Mahal) को मुगल शासक शाहजहां (Shahjahan) ने अपनी पत्नी मुमताज (Mumtaj) की याद में बनवाया था, वहीं आगरा (Agra) में ऐसा एक मकबरा मौजूद है जिसे एक पत्नी ने अपने पति की याद में बनवाया था. देखने में ये मकबरा ताजमहल की नकल लगता है. लोग इसे लाल ताजमहल भी कहते हैं. आगरा के भगवान टॉकीज चौराहा पर महात्मा गांधी मार्ग के नजदीक बने इस ऐतिहासिक मकबरे को आरसी सिमेट्री के नाम से जाना जाता है. मकबरे की इमारत हूबहू ताज़महल की नकल लगती है. बस अंतर यही है कि ये मकबरा लाल पत्थरों से बना है और इसका आकार ताजमहल से कम है.
1803 में एक लाख रुपये बनाया गया था मकबरा
उस दौर में इस मकबरे को बनाने में करीब एक लाख रुपये का खर्चा आया था. इसे आगरा का सबसे पुराना कब्रिस्तान भी कहा जाता है. इसमें कर्नल जॉन विलियम हेसिंग का मकबरा बना हुआ है. कर्नल जॉन विलियम हेसिंग की पत्नी वेनी ने इस मकबरे का निर्माण करवाया था. अकबर के जमाने में रोमन कैथोलिक चर्च और ग्रेव बनाने के लिए ये जगह दान में दी गई थी. यहां अलग-अलग देश के ईसाई समुदाय के लोगों की कब्र बनी हुई है. भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के अधीक्षण पुरातत्वविद ने बताया कि आरसी सिमेट्री में सबसे पहली ग्रेव कर्नल जॉन हेसिंग की बनी थी. कर्नल जॉन हेसिंग की कब्र ताजमहल के निर्माण के काफी बाद 1803 में बनी है. उसका आर्किटेक्चर ताजमहल के आर्किटेक्चर से प्रेरित लगता है.
कब्रों के संरक्षण के लिए योजना तैयार
रोमन कैथोलिक चर्च में बनी पुरानी कब्रों का संरक्षण करने के लिए योजना तैयार की गई है. कई जगहों पर घास उग आई है. कब्रों से प्लास्टर उखड़ गए हैं.चुनी गई कुछ कब्रों की मरम्मत की जाएगी. इसके लिए बजट पास हो चुका है. बड़ी कब्रों को संरक्षित करने के लिए बीम कॉलम और पिलर का निर्माण भी किया जाएगा. कर्नल जॉन विलियम हेसिंग एक डच सिपाही था जिसने कैंडी के युद्ध में भाग लिया था. वह हैदराबाद के निजाम की सेवा में भी रहा. 1784 में मराठा सरदार महादजी सिंधिया के यहां नौकरी करने लगा. 1794 में महादजी की मौत के बाद वह आगरा आ गया. उस समय आगरा पर मराठों का अधिपत्य था और 1799 में उसे किले और दुर्ग रक्षक सेना का अधिपति बनाया गया. जहां साल 1803 में उसने आखिरी सांस ली.
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