Mahashivratri 2023: अद्भुत है पहाड़ी पर बने 2 हजार साल पुराने जयपुर के भूतेश्वर नाथ महादेव मंदिर की कहानी, सारी मनोकामना होती हैं पूरी
Bhuteshwar Nath Mahadev Mandir: बताया जाता है कि आमेर के चारों तरफ जंगल के बीच बसे इस मंदिर की स्थापना जयपुर शहर के बसने से पहले की है.
Mahashivratri 2023: जयपुर जिले में भगवान महादेव के कई प्रमुख मंदिर हैं और सभी मंदिरों की अपनी-अपनी अद्भुत कहानी है. ऐसे में आमेर की पहाड़ी में स्थिति भूतेश्वर नाथ महादेव मंदिर की भी बड़ी अनोखी कहानी है. इस मंदिर पर महाशिवरात्रि के दिन सुबह 6 बजे रात 11-12 बजे तक भक्तों की भीड़ जल चढाने के लिए उमड़ी रहती है. जानकार बताते हैं कि आमेर की पहाड़ी में बसे यह मंदिर चर्चा में रहता है. ऐसी मान्यता है कि इस मंदिर पर जो भी कुछ मांगता है उसे यहां के भूतेश्वर नाथ महादेव पूरा कर देते हैं. यहां आमेर, जयपुर, हरियाणा और दिल्ली से लोग दर्शन करने आते हैं. अपने तरीके का यह अकेला मंदिर है. यहां पर सावन के महीने में बड़ी भीड़ होती है. इस मंदिर पर लगभग 30 सालों लगातार जाने वाले दयाशंकर का कहना है कि इस मंदिर की महिमा बहुत निराली है. इस मंदिर की स्थापना कब हुई इसकी कोई जानकारी किसी के पास नहीं है.
चारों तरफ है जंगल
इस मंदिर के महंत सोनू पारीक का कहना है कि आमेर के चारों तरफ जंगल के बीच बसे इस मंदिर की बड़ी महिमा है. लेकिन इसकी स्थापना बताया जाता है कि जयपुर शहर के बसने से पहले की है. पहले यह मंदिर पहाड़ी के बीच में अकेले था. धीरे-धीरे इस मंदिर के बारे में लोगों को पता चला और यहां पर बड़ी भीड़ होने लगी. पहाड़ों और जंगलों के बीच वाला यह यहां का अकेला मंदिर है. इसकी बनावट देखकर लगता है कि मंदिर का मंडप और गुंबद 17वीं ही शताब्दी में बनाया गया हो. इसकी वास्तुकला उस समय में बनी इमारतों जैसी दिखती है. यहां के लोग बताते हैं धीरे-धीरे इसमें कई और निर्माण कराए गए. मंदिर की विशेषता यही है कि इससे गहरे और घने विशाल जंगल के बीच स्थापित किया गया है. पहाड़ों पर ट्रैकिंग के जरिए भी लोग यहां पर पहुंचते हैं और अब बड़ी भीड़ होने लगी है.
कहां पर स्थित है और क्या है इसकी कहानी?
आमेर में नाहरगढ़ अभ्यारण से पांच किलोमीटर अंदर की तरफ जाने पर पहाड़ी के बीच में यह मंदिर स्थति है. इस मंदिर की कहानी बड़ी अद्भुत है. इस मंदिर के बारे में कहा जाता है कि किसी को इसका इतिहास पता नहीं है. बताया जाता है कि यह मंदिर जयपुर और आमेर से पहले का है. जंगल में यह मंदिर अकेला है. इसके आसपास कोई बसावट नहीं है. कहते हैं कि इस मंदिर की पहले पूजा नहीं होती थी. कोई रात में यहां नहीं रुकता था. इसी बीच एक संत आए और इस मंदिर की पूजा करने लगे. उसके बाद संत ने बाद में जिंदा वहां पर समाधि ली थी. उनकी समाधि अभी है. अब तो यहां पर खूब भीड़ होती है और पूजा पाठ जोरदार तरीके से हो रहा है.
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