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Live in Relation: लिव-इन में रहने वाले 100 जोड़ों ने की सुरक्षा की मांग, दुविधा में फंसी हाईकोर्ट, कानून के इन जानकारों से...

Punjab and Haryana High Court: पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट के जज दुविधा में इसलिए हैं कि सुरक्षा की गुहार लगाने वाले युवा याची लिव इन रहते हैं और पहले से शादी शुदा हैं. 

Punjab News: इंसान की जरूरतों ने उसे वहां ला खड़ा किया कि जहां पूरी तरह से सुरक्षित रह पाना भी कुछ युवाओं के लिए मुश्किल हो गया है. बदलते जीवन शैली के बीच रिश्तों में आए बदलाव की वजह से लिव इन में रहने वाले सैकड़ों युवाओं  के समझ कुछ ऐसी ही अजीबोगरीब स्थिति उत्पन्न हो गई है. ऐसे युवाओं ने खतरे को भांप पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट से सुरक्षा गुहार लगाई. पिछले चार दिनों से हाईकोर्ट में इस मसले पर बहस जारी है, लेकिन जज निर्णय की स्थिति तक पहुंच नहीं पा रहे हैं. जजों के सामने यह स्थिति इसलिए उत्पन्न हुई कि हाईकोर्ट से सुरक्षा की गुहार लगाने वाले युवा लिव इन रहते हैं, लेकिन वो पहले से शाादी है. 

इन युवाओं का कहना है कि उनकी पहले ही शादी हो चुकी थी, लेकिन नौकरी के सिलसिले में शहर छोड़नस पड़ा. नए शहर में किसी अविवाहित युवती के साथ लिव-इन में रहने लगा. उनके समक्ष समस्या यह है कि  इस रिश्ते को क्या नाम दिया जाए? उनका ये रिश्ता समाज पर क्या असर छोड़ेगा? इसे कानूनी माना जाएगा या गैर- कानूनी? इन सवालों पर पिछले चार दिनों से हाईकोर्ट में बहस जारी है. हाईकोर्ट के किसी निर्णय पर नहीं पहुंच पाएं हैं. दुविधा में फंसे जजों ने अब एडिशनल सॉलिसिटर जनरल ऑफ इंडिया सत्यपाल जैन, हरियाणा के एडवोकेट जनरल बीआर महाजन, पंजाब के डिप्टी अटॉर्नी जनरल जेएस अरोड़ा और यूटी चंडीगढ़ के एडिशनल पब्लिक प्रॉसिक्यूटर पीएस पॉल इस मसले पर अपनी राय देने को कहा है. 

यह मामला पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट में उस समय पहुंचा जब शादी शुदा होने के बावजूद लिव-इन में रहने वाले 100 जोड़ों ने अलग-अलग समय में सुरक्षा के लिए हाईकोर्ट में गुहार लगाई. इन मामलों में है कि लिव इन में रहने वाले जोड़े पहले से ही शादीशुदा हैं, लेकिन तलाक लिए बगैर ही दूसरे रिश्ते में रहने लगे. ये सोचे बगैर की इसका परिणाम क्या होगा? फिलहाल, हाईकोर्ट ने केस के एक जैसे मामलों को क्लब कर सुनवाई शुरू की है.

अहम सवाल: पीड़ित की सुरक्षा की जिम्मेदारी स्टेट की

2 जून 2023 को सीनियर एडवोकेट आरएस बैंस असिस्टेड बाय एडवोकेट मयंक गुप्ता और एडवोकेट अमित बंसल ने कोर्ट में बहस की कि किसी इंसान की लाइफ और लिबर्टी के अधिकार से छेड़छाड़ नहीं की जा सकती है. चाहे वह शादीशुदा हो या न हो, भले उसे समाज स्वीकार करे या न करे. उनकी सुरक्षा करना फिर भी स्टेट की जिम्मेदारी है. वहीं, सवाल ये भी है कि किसी व्यक्ति को कानून अपने हाथ में लेने का अधिकार नहीं है. इस पर जस्टिस संजय वशिष्ट ने सभी याचिकाओं पर अंतरिम आदेश पास करते हुए कहा कि संबंधित पुलिस अथॉरिटी प्रत्येक केस को स्टडी करें और जरूरी कदम उठाएं. बहस में शामिल वकीलों का कहना है कि चाहे याचिकाककर्ता की जान को खतरा नहीं है तो भी अनुच्छेद 21 के तहत उन्हें सुरक्षा दी जानी. अगर ऐसा होता है तो क्या इससे समाज में एक्स्ट्रा मैरिटल रिलेशन को बढ़ावा मिलेगा? 

कोर्ट से सुरक्षा की क्यों लगाई गुहार?

शादी शुदा होने के बावजूद लिव इन में रहने वाले इन जोड़ों ने हाईकोर्ट में अनुच्छेद 226 के तहत  याचिकाएं दायर की हैं. याचिकाकर्ता या तो लिव-इन में हैं या फिर बिना तलाक लिए लिव-इन में रह रहे हैं, जिसे उनके लाइफ पार्टनर और अन्य रिश्तेदार स्वीकार करने को राजी नहीं है. यही वजह है कि खतरे को भांपते हुए इन जोड़ों ने सुरक्षा की गुहार अदालत से लगाई है.

सुरक्षा अनैतिक रिश्तों पर कोर्ट की मंजूरी का ठप्पा तो नहीं!

पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ताओं ने कहा कि उनको बाहरी लोगों से खतरा है लेकिन कोई पुख्ता सबूत नहीं हैं. हाईकोर्ट को पहली नजर में लगता है कि याचिककर्ताओं को अपने परिवार से ही खतरा है. याचिककर्ता सुरक्षा के नाम पर कोर्ट के आर्टिकल 226 के तहत प्रोटेक्शन ऑर्डर चाहते हैं. क्या ऐसी सुरक्षा देने से शादी, तलाक और पत्नी-बच्चों के अधिकारों के नजरअंदाज होने की आशंका बनती है? ऑनर किलिंग से बचने के लिए क्या शादीशुदा लोगों का सुरक्षा मांगना या भागे हुए युवा जोड़ों का सुरक्षा मांगना एक समान है? सवाल यह भी है कि शादीशुदा लोगों को कोर्ट की ओर से सुरक्षा देने को कहीं अनैतिक रिश्तों पर मंजूरी का ठप्पा तो नहीं माना जाएगा?

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