'अंधभक्ति का बोलबाला, पाखंड ही उनका हिंदुत्व बन गया', संजय राउत ने किस पर साधा निशाना?
Maharashtra: संजय राउत ने सामना में लिखा कि मोदी शासन में बाबागीरी व पाखंड का बोलबाला है. उन्होंने कहा कि अंधभक्त विज्ञान के माथे पर कील ठोक रहे हैं.

शिवसेना (यूबीटी) के मुखपत्र सामना में संजय राउत ने 12 अक्टूबर को तीखे अंदाज में संपादकीय लिखा है. इस संपादकिय में उन्होंने कहा कि मुख्य न्यायाधीश भूषण गवई पर जूता फेंकनेवाले और प्रबोधनकार ठाकरे की पुस्तक ‘देवळांचा धर्म आणि धर्माची देवळे’ की निंदा करने वाले “अव्वल दर्जे के अंधभक्त” हैं.
राउत ने लिखा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के शासन में “बाबागीरी और पाखंड” का बोलबाला है, जो असली हिंदुत्व की जगह झूठी आस्था को बढ़ावा दे रहा है. उन्होंने सवाल उठाया कि हिंदू बहुल सरकार के बावजूद बार-बार “हिंदू खतरे में” का शोर क्यों मचाया जा रहा है.
पाखंड के खिलाफ आवाज दबाने की कोशिश
राउत ने कहा कि आज जो लोग सनातन धर्म की रक्षा की बात करते हैं, वही सबसे ज्यादा उसकी बदनामी कर रहे हैं. सुप्रीम कोर्ट में जूता फेंकने की घटना और मुंबई के कस्तूरबा अस्पताल में प्रबोधनकार की किताब पर विवाद- दोनों को उन्होंने “कट्टर अंधभक्ति का नमूना” बताया. राउत ने लिखा कि “CJI भूषण गवई पर हमला करने वाले और प्रबोधनकार ठाकरे की किताब फेंकने वाले दोनों ही मानसिक रूप से अंधे हैं. वे नहीं समझते कि असली खतरा धर्म से नहीं, पाखंड से है.” उन्होंने कहा कि BJP के शासन में धर्म के नाम पर झूठ फैलाने वाले बाबाओं को संरक्षण मिला, जबकि प्रबोधनकार जैसे सुधारकों को अपमानित किया गया.
बाबाओं के पाखंड पर सीधा हमला
राउत ने अपने लेख में कहा कि “आसाराम, राम रहीम, नित्यानंद, निर्मल बाबा” जैसे कथित धर्मगुरुओं ने सनातन धर्म को कलंकित किया, लेकिन उन पर जूते फेंकने की हिम्मत किसी ने नहीं दिखाई. उन्होंने सवाल उठाया कि “दिल्ली के स्वामी चैतन्यानंद” पर महिलाओं के शोषण के आरोप साबित होने के बाद भी भक्तों ने चुप्पी क्यों साधी. राउत ने लिखा, “बागेश्वर बाबा भाजपा का प्रचारक है और प्रधानमंत्री स्वयं उनके आश्रम में जाते हैं. यह विज्ञान के माथे पर कील ठोकने जैसा है.” उन्होंने कहा कि “प्रधानमंत्री स्वयं को ईश्वर का अवतार मानते हैं, जबकि प्रबोधनकार ठाकरे जैसे विचारक ऐसे पाखंड पर प्रहार करते थे.”
प्रबोधनकार के विचार आज भी प्रासंगिक
राउत ने लिखा कि प्रबोधनकार ठाकरे का धर्म “सुधार और समानता” पर आधारित था. उन्होंने शाहू महाराज की तरह मंदिरों की संपत्ति शिक्षा में लगाने की बात की थी. ठाकरे ने कहा था कि “मंदिरों की अपार संपत्ति देश के उद्धार की बजाय लुच्चों, चोरों और दुष्टों के भोग-विलास में जा रही है.” राउत ने लिखा कि BJP और संघ परिवार आज भी मंदिरों और धर्म के नाम पर राजनीति कर रहे हैं, जबकि प्रबोधनकार ने एक सदी पहले ही ऐसे “धंधे” का विरोध किया था. उन्होंने व्यंग्य किया कि “पीएम केयर फंड भी उसी रास्ते पर है- धर्म और सेवा के नाम पर पैसा जुटाना, पर जनता के कल्याण में न लगाना.” अंत में उन्होंने कहा कि “प्रबोधनकार का विचार ही सच्चा सनातन है, बाकी सब पाखंड है.”
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Source: IOCL























