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दशहरा रैली को लेकर आमने-सामने शिवसेना के दोनों गुट, जानिए- क्यों प्रतिष्ठा का सवाल है शिवाजी पार्क

Maharashtra News: शिवसेना के दोनों धड़ों ने शिवाजी पार्क में रैली के लिए आवेदन किया है. दोनों गुटों के लिए यह दावा करने के लिए आधार प्राप्त करना अनिवार्य हो गया है कि वे असली शिवसेना हैं.

Maharashtra News: मुंबई (Mumbai) के बीचों बीच बसा शिवाजी पार्क (Shivaji Park) महज एक सार्वजनिक मैदान नहीं है. सालों से यह भूमि का टुकड़ा राजनीति, संस्कृति, खेल और धार्मिक कार्यक्रमों के आयोजन का प्रमुख स्थल बन गया है. यह वहीं मैदान है जहां एक युवा सचिन तेंदुलकर (Sachin Tendulkar) ने बाद के सालों में मास्टर ब्लास्टर के नाम से क्रिकेट का अभ्यास किया. रामलीला के मंचन ने हर नवरात्रि में यहां अच्छी संख्या में लोगों को आकर्षित किया. जब बाल ठाकरे (Bal Thackeray) और लता मंगेशकर का अंतिम संस्कार किया गया तो यह मशहूर हस्तियों के लिए श्मशान बन गया. इन सालों में इसने कई राजनीतिक रैलियों और कई राष्ट्रीय चेहरों को जमीन पर बने मंचों से बोलते हुए देखा है. हालांकि, शिवसेना के लिए शिवाजी पार्क विशेष रूप से महत्वपूर्ण है और पार्टी इसे 'शिवतीर्थ' तीर्थ स्थान कहती है.

कई मुद्दों पर ठाकरे के बेबाक बोल
महाराष्ट्र के राजनीतिक गलियारों में सस्पेंस बना हुआ है कि 5 अक्टूबर दशहरा को शिवाजी पार्क में भीड़ को कौन संबोधित करेगा. उद्धव ठाकरे या एकनाथ शिंदे? शिवसेना के दोनों धड़ों ने मैदान के लिए आवेदन किया है. दोनों गुटों के लिए यह दावा करने के लिए आधार प्राप्त करना अनिवार्य हो गया है कि वे "असली शिवसेना" हैं. दशकों से दशहरा के दिन शाम को एक कोने पर आदर्श रामलीला समिति रामायण का एक प्रसंग बताती है. इसमें राम रावण का वध करते हैं और उसके बाद रावण का एक विशाल पुतला जलाया जाता रहा है. वहीं इसी दिन मैदान के एक हिस्से में एक विशाल मंच से शिवसेना सुप्रीमो बाल ठाकरे ने अपनी पार्टी के कार्यकर्ताओं की वार्षिक सभा को संबोधित करते रहे. 

शिवाजी पार्क से राष्ट्रीय मुद्दों पर बोले बाल ठाकरे
ठाकरे ने उत्साही शिवसैनिकों से भरे मैदान में राज्य से संबंधित और राष्ट्रीय मुद्दों के बारे में बेहतरतीब ढंग से बात की. उनके शब्द पार्टी के विरोधियों के लिए आक्रामकता, अपशब्दों और धमकियों से भरे हुए थे, जो समय के साथ दक्षिण भारतीयों से गुजरातियों और मुसलमानों में बदल गए. अक्सर शिवसेना के बाहर कई प्रतिष्ठित हस्तियों को भी मंच पर संबोधित करने के लिए आमंत्रित किया जाता था. ऐसी ही एक सभा में शरद पवार को भी आमंत्रित किया गया था, जो उस समय कांग्रेस में थे और ठाकरे के कट्टर राजनीतिक विरोधी माने जाते थे. हांलाकि वह व्यक्तिगत स्तर पर ठाकरे के मित्र थे.

उद्धव ने संभाली दशहरा रैली की परंपरा
दशहरा रैली के मंच पर ही बाल ठाकरे ने अपने पोते आदित्य का 2010 में राजनीति से परिचित कराया था. उन्हें तलवार भेंट करते हुए ठाकरे ने शिवसैनिकों से आदित्य की देखभाल करने का आग्रह किया. बाल ठाकरे के निधन के बाद उनके बेटे उद्धव ने दशहरा रैली की परंपरा को जारी रखा. उद्धव की वक्तृत्व शैली उनके पिता से बहुत अलग थी. यद्यपि उन्होंने खुद को आक्रामक रूप से पेश करने का प्रयास किया लेकिन उनके भाषण वरिष्ठ ठाकरे के रूप में भयभीत और कटु नहीं थे. उद्धव ने ज्यादातर अपने राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों के खिलाफ बात की लेकिन सांप्रदायिक या क्षेत्रीय आधार पर शायद ही कभी किसी समुदाय को निशाना बनाया.

ठाकरे परिवार के लिए शिवाजी पार्क का महत्व
नवंबर 2012 में जब बाल ठाकरे की मृत्यु हुई, तो उनका अंतिम संस्कार शिवाजी पार्क में उसी स्थान पर किया गया, जहां उनकी दशहरा रैली का मंच बनाया जाता था. अब उनका स्मारक पश्चिमी हिस्से में शिवाजी पार्क के एक हिस्से पर है. पूर्वी तरफ उनकी दिवंगत पत्नी मीनाताई ठाकरे की एक प्रतिमा स्थापित है, जिन्हें शिव सैनिक मां साहेब कहते हैं. 2019 में जब उद्धव ठाकरे मुख्यमंत्री बने तो उन्होंने शपथ ग्रहण के लिए शिवाजी पार्क को स्थान के रूप में चुना.

देव आनंद ने यहीं से लॉन्च की अपनी पार्टी
वर्षों से कई राजनीतिक दलों ने अपने आयोजनों के लिए मैदान का उपयोग किया है. जब आपातकाल के बाद जनता पार्टी के असफल प्रयोग से निराश अभिनेता देव आनंद ने अपना राजनीतिक संगठन नेशनल पार्टी ऑफ इंडिया (NPI) लॉन्च किया, तो उद्घाटन रैली के लिए शिवाजी पार्क को चुना. आनंद की रैली को भारी प्रतिक्रिया की खबर इंदिरा गांधी तक पहुंची और उन्होंने उन्हें अपनी पार्टी में शामिल होने की पेशकश की. आनंद ने प्रस्ताव को ठुकरा दिया. हालांकि, उनकी पार्टी खुद को लंबे समय तक बनाए रखने में विफल रही.

फरवरी 1993 में बाल ठाकरे ने उन्हें अपनी पार्टी के मुखपत्र "दोपहर का सामना" के हिंदी संस्करण को लॉन्च करने के लिए आमंत्रित किया. शिवाजी पार्क में दशहरा रैली की परंपरा शिवसेना की पहचान के साथ अंतर्निहित है. इसलिए दोनों गुट इसके लिए आक्रामक रूप से होड़ कर रहे हैं. अब गेंद बीएमसी (BMC) के पाले में है जिसे तय करना है कि यह प्रतिष्ठित मैदान किसे मिलेगा.

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