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Maharashtra Politics: एकनाथ शिंदे की बगावत के बाद शिवसेना को बचाने मैदान में उतरे आदित्य ठाकरे, कर रहे हैं ताबड़तोड़ दौरे
Maharashtra News: शिवसेना में बिखराब के बाद अब आदित्य ठाकरे पार्टी को जमीनी स्तर पर मजबूत करने का प्रयास कर रहे हैं. इन दिनों वह जबरदस्त राजनीतिक दौरा कर रहे हैं.
![Maharashtra Politics: एकनाथ शिंदे की बगावत के बाद शिवसेना को बचाने मैदान में उतरे आदित्य ठाकरे, कर रहे हैं ताबड़तोड़ दौरे Maharashtra Politics After Eknath Shinde's rebellion Aaditya Thackeray came to the fray to save Shiv Sena Maharashtra Politics: एकनाथ शिंदे की बगावत के बाद शिवसेना को बचाने मैदान में उतरे आदित्य ठाकरे, कर रहे हैं ताबड़तोड़ दौरे](https://feeds.abplive.com/onecms/images/uploaded-images/2022/08/13/1f3f962b3611ec4133c9df57097f6aff1660389244415292_original.jpg?impolicy=abp_cdn&imwidth=1200&height=675)
Aaditya Thackeray In Action: कभी शिवेसना नेताओं के बजाय बॉलीवुड सितारों और हस्तियों का पक्ष लेने की वजह से आलोचना का सामना करने वाले आदित्य ठाकरे (Aaditya Thackeray) महाराष्ट्र की उद्धव ठाकरे सरकार गिरने के बाद पार्टी कार्यकर्ताओं से जुड़ने के लिए सड़क पर उतर आए हैं. ठाकरे परिवार के उत्तराधिकारी राज्य के विभिन्न हिस्सों का दौरा कर रहे हैं, खास तौर पर उन निर्वाचन क्षेत्रों में जहां के शिवसेना विधायकों ने बगावत की है. उन्होंने यह पहल ऐसे समय की है जब उनके पिता उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाला शिवसेना का गुट अस्तित्व के संकट का सामना कर रहा है. आम तौर पर शांत और सौम्य रहने वाले 32 वर्षीय आदित्य ठाकरे ने पिछले डेढ़ महीने से आक्रामक रुख अपना रखा है. वह विधानसभा में मुंबई की वर्ली सीट का प्रतिनिधित्व करते हैं.
बदल गई आदित्य ठाकरे की वेष-भूषा
वह ‘निष्ठा यात्रा’ और ‘शिव संवाद’ अभियान के जरिये कार्यकर्ताओं से मिल रहे हैं. मंत्री रहने के दौरान आम तौर पर आदित्य ठाकरे को पैंट और शर्ट में देखा जाता था, कई बार वह इस पर काले रंग की जैकेट पहने नजर आते थे और उसी रंग के जूते पहने दिखते थे. इसके विपरीत अब उनके माथे पर तिलक होता है. राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) और कांग्रेस से गठबंधन करने की वजह से उनके पिता को हिंदुत्व के प्रति पार्टी की प्रतिबद्धता पर सवालों का सामना करना पड़ा है. शिवेसना के 55 में से 40 विधायकों ने इस साल जून में पार्टी नेतृत्व से बगावत कर दी थी, जिसकी वजह से उद्धव ठाकरे नीत महा विकास अघाड़ी (एमवीए) सरकार गिर गई थी. लोकसभा में भी पार्टी के 18 सदस्यों में से 12 ने बागी गुट का नेतृत्व कर रहे एकनाथ शिंदे का समर्थन किया है. कई पूर्व पार्षद और पदाधिकारियों ने भी पाला बदल लिया है जिसके बाद आदित्य ठाकरे को यह बिखराव रोकने के लिए सड़क पर उतरना पड़ा है.
अपने आवास पर बैठक कर रहे उद्धव ठाकरे
स्वास्थ्य कारणों की वजह से बहुत अधिक यात्रा कर पाने में असमर्थ उद्धव ठाकरे भी अपने आवास ‘मातोश्री’ में पार्टी कार्यकर्ताओं और नेताओं के साथ बैठकें कर रहे हैं. पिछले साल उद्धव ठाकरे की रीढ़ का ऑपरेशन हुआ था और तब कई सप्ताह तक उन्होंने मुख्यमंत्री पद की जिम्मेदारी अपने घर से संभाली थी. बगावत में शिंदे का साथ देने वाले कई विधायकों की शिकायतों की सूची में एक शिकायत यह भी थी कि उद्धव ठाकरे ‘‘उपलब्ध नहीं होते’’ थे. उल्लेखनीय है कि 21 जून को बगावत के बाद से आदित्य ठाकरे पार्टी के मुंबई और आसपास स्थित स्थानीय कार्यालयों का दौरा कर पार्टी काडर को एकजुट रखने की कोशिश करते रहे हैं क्योंकि जल्द ही मुंबई और अन्य बड़े नगर निकायों के चुनाव होने हैं. इससे पहले आदित्य के स्थानीय शाखाओं में जाने की बात शायद ही सुनी जाती थी. उन्होंने मुंबई से परे शिवसेना के मजबूत ‘गढ़’ कोंकण और मराठवाड़ा का दौरा भी किया है. आदित्य ने पश्चिमी महाराष्ट्र की भी यात्रा की और यह यात्रा बागी विधायकों के निर्वाचन क्षेत्र में हाताश कार्यकर्ताओं में भरोसा जगाने के लिए थी.
बागियों को आदित्य ठाकरे ने बताया 'गद्दार'
आदित्य ठाकरे ने बागियों के खिलाफ तीखे हमलों की शुरुआत की और ऐसी भाषा का इस्तेमाल किया जो पहले शायद ही सुनी गई हो. उन्होंने बागियों को ‘‘गद्दार’’, ‘‘नाली की गंदगी’’ करार दिया तथा कहा कि उन्होंने उनके पिता की ‘‘पीठ में तब छुरा घोंपा’’ जब वह बीमार थे. उन्होंने बागियों को विधानसभा से इस्तीफा देकर नए सिरे से चुनाव लड़ने की चुनौती भी दी है. आदित्य की भाषा को लेकर बागियों ने उन पर निशाना साधा. यहां तक कि उद्धव ठाकरे के प्रति निष्ठा रखने वाले कुछ नेताओं ने भी इसे खारिज किया. सोलापुर की सांगोला सीट से शिवसेना के बागी विधायक शाहजी पाटिल ने कहा कि युवा नेता अपने दादा एवं शिवसेना संस्थापक दिवंगत बाल ठाकरे की नकल करने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन ‘‘नकल’’ से काम नहीं चलता.
पाटिल ने कहा, ‘‘आदित्य ठाकरे जैसा बच्चा ऐसा बोलता है...इन विधायकों की उम्र 50-60 साल की है. माता-पिता बच्चों को सिखाते हैं कि बड़ों से सम्मान से बात करो, लेकिन पता नहीं उन्हें सिखाया गया है या नहीं.’’ उन्होंने कहा, ‘‘अगर उनमें ठाकरे जैसा स्तर नहीं होगा तो उनके लिए 50 लोगों की जनसभा को भी संबोधित करना मुश्किल होगा. एक ओर आप हमें गद्दार बताते हैं और दूसरी ओर आप वापस आने की अपील करते हैं.’’
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