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सड़क हो या दफ्तर, कितने फीसदी लोग बन रहे 'VIP कल्चर' का शिकार? सर्वे के ये आंकड़े चौंका देंगे

VIP Culture News: देश में दो-तिहाई लोग आज भी ये मानते हैं कि VIP पहले की तरह सिस्टम के लिए नासूर ​बना हुआ है. सिर्फ 35 फीसदी लोग यह मानते हैं कि पिछले तीन वर्षों के दौरान वीआईपी कल्चर में कमी आई है.

VIP Culture In India: यूपी के झांसी मेडिकल कॉलेज अग्निकांड में 11 बच्चों की मौत के बाद देश में वीआईपी कल्चर को लेकर आई एक रिपोर्ट में चौंकाने वाला खुलासा हुआ है. लोकल सर्कल के सर्वेक्षण में बताया गया है कि भारत में वीआईपी कल्चर आज भी चरम पर अस्तित्व में हैं. बात चाले सड़क पर सफर करने की हो या अस्पताल में इलाज कराने की. हर जगह वीआईपी कल्चर की वजह से लोगों मौलिक सुविधाओं से वंचित है. इसको लेकर लोगों में असंतोष का माहौल है. 

सर्वेक्षण रिपोर्ट में कहा गया है कि देश में दो-तिहाई लोग आज भी ये मानते हैं कि वीआईपी पहले की तरह सिस्टम के लिए नासूर ​बना हुआ है. सिर्फ 35 फीसदी लोग यह मानते हैं कि पिछले तीन वर्षों के दौरान वीआईपी कल्चर में कमी आई है. इस मामले में एक  प्रतिशत उत्तरदाताओं न तो हां में और ना ही ना में जवाब दिया. 

सर्वे में 362 जिलों के 45000 उत्तरदाता शामिल
 
दरअसल, लोकल सर्कल सोमवार को देश में वीआईपी कल्चर और उसके दुष्प्रभाव को लेकर एक सर्वेक्षण रिपोर्ट जारी किया है. इस सर्वे में भारत के 362 जिलों में रहने वाले 45 हजार से अधिक लोगों को शामिल किया गया है. सर्वे में 65 प्रतिशत उत्तरदाता पुरुष और 35 प्रतिशत उत्तरदाता महिलाएं शामिल थीं. 48 प्रतिशत उत्तरदाता टियर 1, 24 प्रतिशत टियर 2 शहर और 28 प्रतिशत उत्तरदाता टियर 3, 4 और ग्रामीण जिलों से थे. 

सर्वेक्षण में शामिल 64 से 65 प्रतिशत उत्तरदाताओं का मानना ​​है कि विगत 3 सालों के दौरान वीआईपी संस्कृति कम नहीं हुई है. यह पहले की तरह बरकरार है. यह अब इतना मजबूत हो गया है कि सरकारी प्रतिष्ठानों में कोई अफसर आपको सेवा देने से इनकार भी कर सकता है. 

इसी तरह सड़क मार्ग से यात्रा करने वाले 91 फीसदी लोग यह मानते हैं कि उन्होंने वीआईपी कल्चर के असर को महसूस किया. हवाई सफर करने वालों में से 70 प्रतिशत और ट्रेन से सफर करने वाले 57 प्रतिशत यात्रियों ने माना है कि वीआईपी कल्चर का राज आज भी मौजूद है. 
 
सरकारी दफ्तरों के कामकाज से जाने वाले 83 फीसदी लोगों का कहना है कि वे वीआईपी कल्चर के शिकार हुए. सार्वजनिक और निजी कार्यक्रमों में शामिल होने वाले 79 और धार्मिक स्थानों पर 73 प्रतिशत लोगों ने इसके प्रचलन में होने की बात स्वीकार की. 

स्वास्थ्य सेवा संस्थानों में वीआईपी कल्चर की प्रभाव को लेकर पूछे गए सवालों के जवाब में 66 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने कहा कि हमने इसका असर महसूस नहीं किया. 24 प्रतिशत लोगों ने हां में जवाब किया जबकि 10% ने कोई स्पष्ट उत्तर नहीं दिया. कुल मिलाकर, चार में से एक उत्तरदाता या उनके परिवार के सदस्यों ने अस्पतालों में वीआईपी कल्चर की वजह से भेदभाव का सामना किया. 

VIP कल्चर समाप्त करने के लिए क्या करें?
 

सर्वेक्षण के परिणाम यह स्पष्ट करते हैं कि वीआईपी संस्कृति को पूरी तरह से समाप्त करने के लिए बहुत कुछ करने की जरूरत है. समाज के प्रभावी लोगों को इसके क्रेज को कम करने के लिए मानसिक स्तर पर तैयार करने की जरूरत है. साथ ही लोगों को इसको लेकर जागरूक करने की भी आवश्यकता है. 

वीआईपी कल्चर का बुरा असर 

  • वी​आईपी कल्चर आम आदमी के हितों के खिलाफ काम करती है.
  • सरकार के पास इस खतरे को नियंत्रित करने के लिए कड़े कदम उठाने का विकल्प और क्षमता है. सच तो यही है कि यह संस्कृति राजनीति और नौकरशाही दोनों के संरक्षण में पनपती है और आज भी अस्तित्व में है. 
  • इससे देश में असमानता को पहले से ज्यादा बढ़ावा मिला है.
  • वीआईपी संस्कृति का उपयोग न केवल भेदभाव की भावना पैदा करता है बल्कि आम आदमी पर अनुचित बोझ भी डालता है.
  • यह कल्चर आम लोगों को गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवा और शिक्षा सहित अन्य मूल अधिकारों से वंचित करता है.

क्या है वीआईपी कल्चर समर्थकों की पहली पहचान?

सार्वजनिक संपत्ति पर अतिक्रमण करना और जान बूझकर सामुदायिक मानदंडों का उल्लंघन अपने हित में उसका लाभ उठाना वीआईपी कल्चर को समर्थकों की सबसे मजबूत और प्रभावी पहचान है. सर्वेक्षण में शामिल लोगों से जब पूछा गया कि पिछले 3 वर्षों में आपने वीआईपी द्वारा की जाने वाली कौन सी अवैध गतिविधियां देखी. 

इस सवाल का लोगों ने दिया ये जवाब

48 फीसदी ने सार्वजनिक संपत्ति पर अतिक्रमण, 39 फीसदी ने समाज/कॉलोनी के तय मानकों का उल्लंघन करने, 26 फीसदी ने पड़ोस में रहने वाले लोगों द्वारा हंगामा करने, ध्वनि प्रदूषण को बढ़ावा देने, 26% ने कारोबारियों से जबरन वसूली, 22 फीसदी ने रिश्वत के बदले स्कूल में प्रवेश व अन्य सरकारी मंजूरी प्राप्त करने के लिए पद का दुरुपयोग करते हैं.  

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एबीपी लाइव में बतौर कंटेंट राइटर काम कर रहे हैं. दो दशक से ज्यादा समय से प्रिंट और डिजिटल मीडिया में न्यूज रिपोर्टिंग और स्टोरी राइटिंग का अनुभव. पॉलिटिक्स, क्राइम और जनहित की खबरों को सरलता में बदलने का कौशल. खाली समय में समसामयिक और ऐतिहासिक मसलों पर परिचर्चा में रुचि.
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