Delhi News: एनजीटी ने अंसल प्रॉपर्टीज पर लगाया 153 करोड़ का जुर्माना, एक नहीं कई नियमों कर रहा था उल्लंघन
National Green Tribunal: एक नहीं बल्कि कई पर्यावरण नियमों के उल्लंघन के लिए अंसल प्रॉपर्टीज गुड़गांव की सुशांत लोक फेज- वन विभिन्न परियोजनाओं पर एनजीटी ने जुर्माना लगाया है.
Sushant Lok Gurgaon: नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) ने अंसल प्रॉपर्टीज एंड इंफ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड के सुशांत लोक फेज- वन, गुड़गांव की विभिन्न परियोजनाओं में पर्यावरण उल्लंघन के लिए 153.50 करोड़ का जुर्माना लगाया है. एनजीटी के अध्यक्ष जस्टिस आदर्श कुमार गोयल की अध्यक्षा वाली बेंच ने सोमवार को यह आदेश दिया. साथ ही बेंच ने 153,50,62,892 रुपए तीन महीने के भीतर एचएसपीसीबी के पास जमा करवाने के लिए कहा.
सुशांत लोक निवासियों ने की थी शिकायत
दरअसल गुरुग्राम के सुशांत लोक वन के निवासियों ने बिल्डर के खिलाफ शिकायत करते हुए 4 सितंबर 2018 को एनजीटी में याचिका दायर की थी. इस याचिका में कहा गया कि सी ब्लॉक के ग्रीन बेल्ट की जमान और सड़कों पर अतिक्रमण किया गया है. भूजल का अवैध रूप से दोहन किया जा रहा है. सीवर ट्रीटमेंट प्लांट नहीं है. सीवर का पानी बरसाती नालों में गिराया जा रहा है. इसके साथ ही पर्यावरण मंजूरी नहीं लेने जैसे और कई जरुरी नियमों की अंदेखी दी गई है. इसलिए यह आदेश पर्यावरण कानूनों के उल्लंघन के मामले में सुनाया गया है.
आरोप था कि अंसल प्रॉपर्टीज रियल एस्टेट कंपनी ने 45 प्रतिशत जमीन सड़क, ओपन स्पेस, स्कूल, कॉमन एरिया के लिए छोड़नी थी, जो उसने नहीं छोड़ी है.
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सबसे ज्यादा 98.53 करोड़ अनट्रिटेड सीवेज पर
इसमें केंद्रीय भूजल प्राधिकरण (सीजीडब्ल्यूए) की मंजूरी के बिना 39 बोरवेलों से भूजल निकालने के लिए ट्रिब्यूनल ने बिल्डर को लगभग 4.97 करोड़ रुपये का भुगतान करने को कहा है. लेकिन सबसे अधिक जुर्माना (करीब 98.53 करोड़ रुपये) अशोधित (अनट्रिटेड) सीवेज को नाले में छोड़ने के लिए लगाया गया है. वहीं पर्यावरण मंजूरी के प्रावधान का उल्लंघन करने पर 30 करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया गया है. इसमें खास बात ये है कि बिल्डर द्वारा जो तीन महीने में पैसे जमा किए जेने हैं, इस पूरे जुर्माने की राशि, का इस्तेमाल क्षेत्र में पर्यावरण की बहाली के लिए किया जाएगा.
अधिकारियों की मिलीभगत
ट्रिब्यूनल के आदेश में कहा गया है कि इस मामले के तथ्य इस ओर इशारा करते हैं कि अधिकारियों और स्थानीय निकायों की ने नियमों और कर्तव्यों की घोर उपेक्षा की है. यह स्पष्ट है कि अधिकारियों द्वारा सक्रिय मिलीभगत और सहयोग से अदेखी की गई है.
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