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Delhi Exit Poll: साइलेंट लहर या एंटी इनकमबेंसी, एग्जिट पोल में क्यों लगती नजर आ रही 'आप' की उम्मीदों पर 'झाड़ू'?

चुनाव प्रचार में फ्रीबीज के वादों से जीत की उम्मीदों पर सवार 'आप' को एग्जिट पोल्स ने तगड़ा झटका दिया है. आइए जानते हैं कि अगर केजरीवाल को हार का सामना करना पड़ता है तो उसकी वजह क्या हो सकती है?

पांच फरवरी यानी बुधवार के दिन जनता ने दिल्ली की 70 विधानसभा सीटों के सियासी दंगल में अपना फैसला दे दिया, जिसका ऐलान आठ फरवरी को होगा. ईवीएम में किस्मत कैद करा चुके 700 उम्मीदवार अब एग्जिट पोल्स के आंकड़ों में सिर खपा रहे हैं. अब तक सामने आए 11 एग्जिट पोल में दो आम आदमी पार्टी की सरकार बनते दिखा रहे हैं तो आठ एग्जिट पोल में दिल्ली में बीजेपी की लहर नजर आ रही है. एग्जिट पोल के बहुमत पर गौर करें तो सवाल यह उठता है कि लगातार चौथी पर सत्ता में आने का सपना संजोए बैठी 'आप' की उम्मीदों पर 'झाड़ू' क्यों फिरती नजर आ रही है? क्या केजरीवाल की पार्टी एंटी इनकमबेंसी का सामना करने वाली है या पीएम मोदी की साइलेंट लहर ने आप का काम बिगाड़ दिया है? आइए समझते हैं कि अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी पर कौन-सी चीजें भारी पड़ सकती हैं? 

'आप' के 'चार हथियार' ही कर रहे पलटवार?

दिल्ली विधानसभा चुनाव में प्रचार के दौरान आम आदमी पार्टी ने फ्री बिजली, फ्री पानी, अच्छे स्कूल और शानदार हेल्थ सिस्टम को जमकर कैश कराने की कोशिश की. पार्टी ने इन चारों मुद्दों को अपने सबसे घातक हथियार के रूप में पेश किया. वोटिंग से पहले तक आम आदमी पार्टी अपने इन्हीं चारों हथियारों से जीत का स्वाद चखने की उम्मीद करती नजर आ रही थी, लेकिन एग्जिट पोल्स ने उसके नेताओं का स्वाद जरूर बिगाड़ दिया है. पॉलिटिकल एक्सपर्ट्स की मानें तो केजरीवाल के ये चारों हथियार ही उन पर पलटवार कर सकते हैं या फिर वह बीजेपी की साइलेंट लहर को भांपने में नाकाम रहे. आइए जानते हैं कि अपने ही इन चारों हथियारों से कैसे मात खा सकती है आम आदमी पार्टी?

फ्री 'बिजली' के बाद भी क्यों लग रहा झटका?

दिल्ली में 2015 में दूसरी बार सत्ता में आने के बाद से आम आदमी पार्टी की सरकार 200 यूनिट तक बिजली फ्री दे रही है. 2020 के चुनावों में फ्री बिजली के मसले ने पार्टी को बंपर जीत भी दिलाई, लेकिन 2025 के विधानसभा चुनावों के एग्जिट पोल्स पर गौर करें तो आप का मामला फंसता नजर आ रहा है. माना जा रहा है कि फ्री बिजली से ही आम आदमी पार्टी को झटका लग सकता है. एक्सपर्ट्स की मानें तो 200 यूनिट तक बिजली फ्री होने से सर्दियों के कुछ महीनों में बिल जीरो रहता है, लेकिन गर्मियों में एसी आदि चलने पर लोड बढ़ जाता है और बिल भी काफी ज्यादा आता है. ऐसे में लोगों का कहना है कि फ्री बिजली की स्कीम अब झुनझुने की तरह साबित हो रही है, क्योंकि साल के नौ महीने बिजली का बिल काफी ज्यादा आता है, जिसका कोई हिसाब ही नहीं होता.

फ्री 'पानी' का पावर क्यों हो सकता है नाकाम?

दिल्ली की जनता को आम आदमी पार्टी की सरकार से हर महीने 21 हजार लीटर पानी फ्री मिलता है, लेकिन यह स्कीम भी नाकाम होती नजर आ रही है. दरअसल, दिल्ली के लोग काफी समय से गंदे पानी की सप्लाई से जूझ रहे हैं. इस मसले को लेकर तमाम बार शिकायत की जा चुकी हैं, लेकिन इसका समाधान नहीं हुआ. चुनाव प्रचार के दौरान दिल्ली के कई नेताओं को इस मसले को लेकर जनता की नाराजगी का सामना भी करना पड़ा. लोगों का कहना था कि ऐसे फ्री पानी का क्या करें, जो पीने लायक ही नहीं है.

अच्छे 'स्कूल' से बैड रिजल्ट कैसे?

आम आदमी पार्टी की सरकार और अरविंद केजरीवाल दिल्ली में लगातार बेहतर एजुकेशन सिस्टम का दावा करती रही है, लेकिन दिल्ली की जनता इससे इत्तेफाक नहीं रखती है. उनका कहना है कि सरकारी स्कूलों में थोड़ा-बहुत सुधार हुआ है, लेकिन पढ़ाई का स्तर ज्यादा अच्छा नहीं है. इसके अलावा स्कूलों में गुंडागर्दी पर भी लगाम नहीं लगी है.

शानदार 'हेल्थ सिस्टम' कैसे बिगाड़ सकता है सेहत?

दिल्ली के सरकारी अस्पतालों में मेडिकल फैसिलिटी शानदार होने का दावा आम आदमी पार्टी की सरकार का हर नेता कर चुका है. मुहल्ला क्लिनिक से लेकर सरकारी अस्पतालों तक गंभीर बीमारियों का इलाज आसानी से होने का जिक्र किया गया है, लेकिन आम जनता इन दावों को पूरी तरह सही नहीं मानती है. उनका कहना है कि सरकारी अस्पतालों में कुछ सुविधाएं सुधरी हैं, लेकिन मुहल्ला क्लिनिक तो बेहाल रहते हैं. वहां न तो ट्रेंड डॉक्टर मिलते हैं और न ही दवाइयां. ऐसे में माना जा रहा है कि अगर एग्जिट पोल सही साबित होते हैं तो ये चारों मसले ही आम आदमी पार्टी की हार में बड़े जिम्मेदार साबित हो सकते हैं.

साइलेंट लहर या एंटी इनकमबेंसी?

सवाल यह भी है कि इन चारों हथियारों के फेल होने के अलावा क्या आम आदमी पार्टी एंटी इनकमबेंसी का सामना भी करने वाली है या वह बीजेपी की साइलेंट लहर को पहचान नहीं पाई? राजनीतिक एक्सपर्ट्स का कहना है कि शराब घोटाले के आरोपों में जेल जाने के बाद केजरीवाल की ईमानदार इमेज को तगड़ा झटका लगा है. चुनाव प्रचार के दौरान उन्होंने तमाम फ्री स्कीम्स का ऐलान करके इसकी भरपाई की कोशिश की, लेकिन एग्जिट पोल्स के हिसाब से डैमेज कंट्रोल होता नजर नहीं आ रहा है. वहीं, केजरीवाल की स्कीम्स के मुकाबले में बीजेपी ने भी जमकर नई-नई योजनाओं का ऐलान किया, जिसका असर नतीजों पर नजर आ सकता है. हालांकि, ऊंट किस करवट बैठेगा, यह तो आठ फरवरी को नतीजों के बाद ही पता चलेगा.

क्या पलट सकते हैं एग्जिट पोल्स?

अब सवाल यह उठता है कि क्या एग्जिट पोल्स में किए गए दावे गलत साबित हो सकते हैं? बीजेपी की सरकार बनाने का दावा कर रहे नौ एग्जिट पोल्स भी गलत साबित हो सकते हैं और आम आदमी पार्टी की सरकार बना रहे तीनों एग्जिट पोल भी बाजी मार सकते हैं. दरअसल, एग्जिट पोल में सभी वोटर्स की राय शामिल नहीं होती है. एग्जिट पोल्स कुछ वोटर्स की राय के आधार पर तैयार किए जाते हैं. इनका सैंपल साइज होता है, जिसके आधार पर डेटा तैयार किया जाता है. ऐसे में एग्जिट पोल्स पलट भी सकते हैं. इससे पहले महाराष्ट्र और हरियाणा के एग्जिट पोल्स भी काफी हद तक गलत साबित हो चुके हैं.

यह भी पढ़ें: दिल्ली चुनाव के एग्जिट पोल पर संजय राउत का बड़ा बयान, 'हमें पूरा भरोसा है कि BJP...'

खबर कोई भी हो... कैसी भी हो... उसकी नब्ज पकड़ना और पाठकों को उनके मन की बात समझाना कुमार सम्भव जैन की काबिलियत है. मुहब्बत की नगरी आगरा से मैंने पत्रकारिता की दुनिया में पहला कदम रखा, जो अदब के शहर लखनऊ में परवान चढ़ा. आगरा में अकिंचन भारत नाम के छोटे से अखबार में पत्रकारिता का पाठ पढ़ा तो लखनऊ में अमर उजाला ने खबरों से खेलना सिखाया. 

2010 में कारवां देश के आखिरी छोर यानी राजस्थान के श्रीगंगानगर पहुंचा तो दैनिक भास्कर ने मेरी मेहनत में जुनून का तड़का लगा दिया. यहां करीब डेढ़ साल बिताने के बाद दिल्ली ने अपने दिल में जगह दी और नवभारत टाइम्स में नौकरी दिला दी. एनबीटी में गुजरे सात साल ने हर उस क्षेत्र में महारत दिलाई, जिसका सपना छोटे-से शहर से निकला हर लड़का देखता है. साल 2018 था और डिजिटल ने अपना रंग जमाना शुरू कर दिया था तो मैंने भी हवा के रुख पकड़ लिया और भोपाल में दैनिक भास्कर पहुंच गया. 

झीलों के शहर की खूबसूरती ने दिल और दिमाग पर काबू तो किया, लेकिन जरूरतों ने वापस दिल्ली ला पटका और जनसत्ता में काफी कुछ सीखा. यह पहला ऐसा पड़ाव था, जिसकी आदत धारा के विपरीत चलना थी. इसके बाद अमर उजाला नोएडा में करीब तीन साल गुजारे और अब एबीपी न्यूज में बतौर फीचर एडिटर लोगों के दुख-दर्द और तकलीफ का इलाज ढूंढता हूं. करीब 18 साल के इस सफर में पत्रकारिता की दुनिया के हर कोने को खंगाला, चाहे वह रिपोर्टिंग हो या डेस्क... प्रिंटिंग हो या मैनेजमेंट... 

काम की बात तो बहुत हो चुकी अब अपने बारे में भी चंद बातें बयां कर देता हूं. मिजाज से मस्तमौला तो काम में दबंग दिखना मेरी पहचान है. घूमने-फिरने का शौकीन हूं तो कभी भी आवारा हवा के झोंके की तरह कहीं न कहीं निकल जाता हूं. पढ़ना-लिखना भी बेहद पसंद है और यारों के साथ वक्त बिताना ही मेरा पैशन है. 

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