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दिल्ली CAG रिपोर्ट: अस्पतालों में डॉक्टर्स-बेड की भारी कमी, जरूरी उपकरण बेकार, मोहल्ला क्लीनिक पर सवाल

Delhi CAG Report: कैग रिपोर्ट के अनुसार, दिल्ली के स्वास्थ्य विभाग में कुल 8,194 पद खाली पड़े हैं. नर्सिंग स्टाफ में 21% की कमी है. सीएम रेखा गुप्ता ये रिपोर्ट विधानसभा में पेश करेंगी.

Delhi CAG Report: दिल्ली की मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता शुक्रवार (28 फरवरी) को विधानसभा में CAG रिपोर्ट पेश करेंगी. यह रिपोर्ट स्वास्थ्य विभाग से जुड़ा है और दावा है कि भारी खामियां पाई गई हैं.

रिपोर्ट के अनुसार, आम आदमी पार्टी सरकार को केंद्र से मिले फंड का पूरा उपयोग नहीं किया गया, अस्पतालों में बेड और डॉक्टरों की भारी कमी है, कई अस्पतालों में जरूरी सुविधाएं नहीं हैं और कई स्वास्थ्य परियोजनाएं सालों से अधूरी पड़ी हैं.

कोविड फंड का सही इस्तेमाल नहीं
कैग की रिपोर्ट के मुताबिक, केंद्र सरकार ने आम आदमी पार्टी सरकार को कोविड से निपटने के लिए 787.91 करोड़ रुपये दिए थे, लेकिन इसमें से केवल 582.84 करोड़ रुपये ही खर्च किए गए. खासतौर पर स्वास्थ्य कर्मियों की भर्ती और दवाओं की खरीद के लिए मिले फंड का बड़ा हिस्सा इस्तेमाल नहीं हुआ. रिपोर्ट बताती है कि 52 करोड़ रुपये में से सिर्फ 21.48 करोड़ रुपये ही कर्मचारियों की भर्ती पर खर्च हुए.

PPE किट, मास्क और अन्य जरूरी सामान के लिए मिले 119.85 करोड़ रुपये में से 83.14 करोड़ रुपये बिना इस्तेमाल के रह गए. इसका सीधा मतलब यह है कि जब दिल्ली में मरीजों को अस्पतालों में बिस्तर और दवाइयां नहीं मिल रही थीं, तब आम आदमी पार्टी सरकार के पास पैसे होने के बावजूद उन्हें खर्च नहीं किया गया.

सरकारी अस्पतालों में बेड की भारी कमी

आम आदमी पार्टी सरकार ने 2016-17 से 2020-21 के बीच 32,000 नए बेड जोड़ने का वादा किया था, लेकिन सिर्फ 1,357 बेड ही जोड़े गए, जो लक्ष्य का महज 4.24% है. हालात इतने खराब हैं कि दिल्ली के 16 बड़े अस्पतालों में मरीजों की संख्या 101% से 189% तक पहुंच गई. इसका मतलब यह हुआ कि कई मरीजों को एक ही बेड पर रखा गया या उन्हें फर्श पर लेटना पड़ा.

अस्पतालों के निर्माण में देरी और खर्च में बढ़ोतरी

आम आदमी पार्टी सरकार के तीन प्रमुख अस्पतालों के निर्माण कार्य में भारी देरी हुई और लागत भी कई गुना बढ़ गई.

इंदिरा गांधी अस्पताल: 5 साल की देरी, 314.9 करोड़ रुपये ज्यादा खर्च हुए.

बुराड़ी अस्पताल: 6 साल की देरी, 41.26 करोड़ रुपये अतिरिक्त खर्च हुए.

मौलाना आज़ाद डेंटल कॉलेज (फेज-2): 3 साल की देरी, 26.36 करोड़ रुपये अधिक खर्च हुए.

तीनों अस्पतालों में कुल 382.52 करोड़ रुपये का अतिरिक्त बोझ पड़ा.

डॉक्टरों और स्टाफ की भारी कमी

दिल्ली के अस्पतालों में डॉक्टरों और अन्य स्वास्थ्य कर्मचारियों की भारी कमी है. रिपोर्ट के अनुसार, स्वास्थ्य विभाग में कुल 8,194 पद खाली पड़े हैं. नर्सिंग स्टाफ में 21% और पैरामेडिकल स्टाफ में 38% की कमी है.

कुछ प्रमुख अस्पतालों में डॉक्टरों की भारी कमी है:

राजीव गांधी सुपर स्पेशलिटी अस्पताल (RGSSH): 50-74% डॉक्टरों की कमी, 73-96% नर्सिंग स्टाफ की कमी.

जनकपुरी सुपर स्पेशलिटी अस्पताल (JSSH): 17-62% पैरामेडिकल स्टाफ की कमी.

कईवी अस्पतालों में ICU, ब्लड बैंक और इमरजेंसी सुविधाएं भी उपलब्ध नहीं हैं.

सर्जरी के लिए महीनों की वेटिंग
लोक नायक अस्पताल में सामान्य सर्जरी के लिए मरीजों को 2-3 महीने इंतजार करना पड़ता है, जबकि जलने और प्लास्टिक सर्जरी के मामलों में 6-8 महीने तक का इंतजार है. चाचा नेहरू बाल चिकित्सालय (CNBC) में बच्चों की सर्जरी के लिए 12 महीने की प्रतीक्षा सूची है.

जरूरी उपकरण बेकार पड़े
राजीव गांधी और जनकपुरी सुपर स्पेशलिटी अस्पतालों में ऑपरेशन थिएटर, ICU, किचन, ब्लड बैंक और मेडिकल गैस पाइपलाइन जैसी सुविधाएं नहीं चल रही हैं. CNBC, RGSSH और JSSH में बड़ी संख्या में मेडिकल उपकरण बिना उपयोग के पड़े हैं.

उदाहरण के लिए-
CNBC में 330 X-ray की क्षमता थी, लेकिन सिर्फ 109 किए गए.

RGSSH में 70 X-ray की क्षमता थी, लेकिन केवल 35 किए गए.

JSSH में 30 अल्ट्रासाउंड किए जाने चाहिए थे, लेकिन सिर्फ 1 हुआ.

एम्बुलेंस भी अधूरी सुविधाओं के साथ दौड़ रही हैं

कैग रिपोर्ट में बताया गया है कि दिल्ली में चलने वाली सरकारी एम्बुलेंस में जरूरी मेडिकल उपकरण नहीं थे. इसके कारण कई बार मरीजों की हालत बिगड़ने के बाद ही अस्पताल पहुंचने पर उनका इलाज शुरू हो सका.

मोहल्ला क्लीनिकों की दुर्दशा
आम आदमी पार्टी सरकार के मोहल्ला क्लीनिकों की हालत भी खराब है. 21 क्लीनिकों में शौचालय नहीं हैं, 15 में बिजली का बैकअप नहीं है, 6 में जांच के लिए टेबल तक नहीं है और 12 क्लीनिक विकलांग लोगों के लिए उपयुक्त नहीं हैं.

गर्भवती महिलाओं और बच्चों की देखभाल में लापरवाही
जननी शिशु सुरक्षा कार्यक्रम के तहत गर्भवती महिलाओं को मिलने वाली मुफ्त सुविधाओं का लाभ केवल 30% महिलाओं को मिला. रिपोर्ट के अनुसार, 40% से अधिक माताओं को प्रसव के 48 घंटे के भीतर ही अस्पताल से छुट्टी दे दी गई, जो स्वास्थ्य मानकों के खिलाफ है.

जरूरी दवाओं की आपूर्ति में गड़बड़ी
आम आदमी पार्टी सरकार की सेंट्रल प्रोक्योरमेंट एजेंसी (CPA) अपनी जिम्मेदारी निभाने में असफल रही, जिससे अस्पतालों को 33-47% तक की दवाएं खुद खरीदनी पड़ीं. इससे दवाओं की कीमत बढ़ गई और कई जगह दवाओं की कमी हो गई.

15 अस्पतालों के लिए खरीदी गई जमीन बेकार पड़ी है
2007 से 2015 के बीच आम आदमी पार्टी सरकार ने 15 अस्पताल बनाने के लिए 6.48 करोड़ रुपये की जमीन खरीदी, लेकिन 6 से 15 साल बीत जाने के बावजूद वहां कोई अस्पताल नहीं बना. दिल्ली में स्वास्थ्य सेवाओं की बदहाल स्थिति, CAG रिपोर्ट में हुआ बड़ा खुलासा

दिल्ली की स्वास्थ्य सेवाओं को लेकर नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) की रिपोर्ट में कई चौंकाने वाले खुलासे हुए हैं. रिपोर्ट के अनुसार, कोविड-19 से निपटने के लिए केंद्र सरकार से मिले 787.91 करोड़ रुपये में से सिर्फ 582.84 करोड़ रुपये ही खर्च किए गए, जबकि बाकी राशि बिना उपयोग के रह गई. इसके चलते कोरोना संकट के दौरान जरूरी सुविधाओं की भारी कमी रही.

फंड की अनदेखी और भ्रष्टाचार के आरोप

रिपोर्ट के अनुसार, स्वास्थ्य कर्मचारियों की भर्ती और वेतन के लिए मिले 52 करोड़ रुपये में से 30.52 करोड़ रुपये खर्च ही नहीं किए गए. इससे साफ है कि सरकार ने स्वास्थ्य कर्मियों की पर्याप्त भर्ती नहीं की, जिससे महामारी के दौरान लोगों को इलाज में भारी दिक्कतों का सामना करना पड़ा. इसी तरह दवाओं, पीपीई किट और अन्य मेडिकल सप्लाई के लिए मिले 119.85 करोड़ में से 83.14 करोड़ रुपये खर्च ही नहीं हुए.

सरकारी अस्पतालों में बेड की भारी कमी
दिल्ली सरकार ने 2016-17 से 2020-21 के बीच 32,000 नए बेड जोड़ने का वादा किया था, लेकिन सिर्फ 1,357 बेड ही जोड़े गए, जो कि कुल लक्ष्य का मात्र 4.24% है. राजधानी के कई अस्पतालों में बेड की भारी कमी देखी गई, जहां बेड ऑक्यूपेंसी 101% से 189% तक रही, यानी एक ही बेड पर दो-दो मरीजों को रखा गया या मरीजों को फर्श पर इलाज कराना पड़ा.

अस्पतालों की परियोजनाओं में देरी और लागत में भारी इजाफा

रिपोर्ट में यह भी बताया गया कि दिल्ली में तीन नए अस्पताल बनाए गए, लेकिन सभी प्रोजेक्ट पहले की सरकार के कार्यकाल में शुरू हुए थे. इनके निर्माण में 5 से 6 साल तक की देरी हुई और लागत भी बढ़ गई.

* इंदिरा गांधी अस्पताल: 5 साल की देरी, लागत 314.9 करोड़ रुपये बढ़ी.

* बुराड़ी अस्पताल: 6 साल की देरी, लागत 41.26 करोड़ रुपये बढ़ी.

* एमए डेंटल अस्पताल (फेज-2): 3 साल की देरी, लागत 26.36 करोड़ रुपये बढ़ी.

डॉक्टरों और स्टाफ की भारी कमी

दिल्ली के सरकारी अस्पतालों और स्वास्थ्य विभागों में 8,194 पद खाली पड़े हैं.

* नर्सिंग स्टाफ की 21% और पैरामेडिकल स्टाफ की 38% कमी है.

* राजीव गांधी सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल और जनकपुरी सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल में डॉक्टरों की 50-74% कमी पाई गई.

* नर्सिंग स्टाफ की 73-96% तक भारी कमी दर्ज की गई.

सर्जरी के लिए लंबा इंतजार, कई उपकरण खराब

* लोक नायक अस्पताल में बड़ी सर्जरी के लिए 2-3 महीने और बर्न व प्लास्टिक सर्जरी के लिए 6-8 महीने का इंतजार करना पड़ा.

* चाचा नेहरू बाल चिकित्सालय (CNBC) में पीडियाट्रिक सर्जरी के लिए 12 महीने का इंतजार करना पड़ा.

* CNBC, RGSSH और JSSH जैसे अस्पतालों में कई एक्स-रे, सीटी स्कैन और अल्ट्रासाउंड मशीनें बेकार पड़ी रहीं.

जरूरी सेवाओं की कमी और बदहाल मोहल्ला क्लीनिक

* 27 अस्पतालों में से 14 में ICU सेवा उपलब्ध नहीं थी.

* 16 अस्पतालों में ब्लड बैंक की सुविधा नहीं थी.

* 8 अस्पतालों में ऑक्सीजन सप्लाई नहीं थी.

* 12 अस्पतालों में एंबुलेंस की सुविधा नहीं थी.

* CATS एंबुलेंस भी जरूरी उपकरणों के बिना चलाई जा रही थीं.

दिल्ली विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष आतिशी ने स्पीकर विजेंद्र गुप्ता को लिखी चिट्ठी, जानें क्या कहा?

मैं बलराम पांडेय ABP नेटवर्क में वरिष्ठ संवाददाता हूं. मीडिया उद्योग में 19 वर्षों से अधिक अनुभव के साथ, मैं रिपोर्टिंग और विश्लेषण में अपने अनुभव का लाभ उठाकर दर्शकों को आकर्षित और जागरूक करने वाली उच्च-प्रभाव वाली कहानियाँ पेश करता हूं. वर्तमान में, मैं दिल्ली सरकार और राजनीतिक घटनाओं, प्रवर्तन निदेशालय (ED), CBI को कवर करने, के साथ बड़े इंटरव्यू और समसामयिक मामलों पर व्यावहारिक विश्लेषण प्रदान करने के लिए ज़िम्मेदारी निभा रहा हूं 
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