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SIR पर विपक्ष का जोरदार हमला, संजय सिंह ने राज्यसभा में दिया नोटिस, उठाए गंभीर सवाल

Delhi News: संजय सिंह ने राज्यसभा के प्रक्रिया एवं कार्य संचालन नियमों के नियम 267 (नियमों के निलंबन हेतु प्रस्ताव की सूचना) के अंतर्गत यह नोटिस दिया है.इसमें BLO की मौत और SIR पर चर्चा की मांग की है.

आम आदमी पार्टी (AAP) के वरिष्ठ नेता और सांसद संजय सिंह ने देश भर में एसआईआर के नाम पर हो रहे घोटाले और लगातार हो रही बीएलओ की मौतों के मुद्दे पर राज्यसभा में चर्चा की मांग को लेकर सोमवार को नोटिस दिया है.

उन्होंने कहा है कि काम का बोझ, मानसिक तनाव व निलंबन के डर से मात्र 19 दिनों में एसआईआर कर रहे 16 बीएलओ की मौत हो चुकी है. एसआईआर में मौजूदा मतदाताओं से नए दस्तावेज मांगे जा रहे हैं, जिसे जुटा पाना एक आम आदमी के लिए बहुत मुश्किल है.

इन कमियों को बिना सुधारे 12 राज्यों में एसआईआर कराने की जल्दबाजी ने बड़े पैमाने पर लोगों का मताधिकार छिनने का खतरा बढ़ा दिया है. उन्होंने राज्यसभा से अपील की है कि एसआईआर पर तत्काल रोक लगाकर मतदाता सूची बहाल की जाए और चुनाव आयोग की जवाबदेही तय की जाए.

'चुनावी निष्पक्षता पर संकट'

संजय सिंह ने राज्यसभा के प्रक्रिया एवं कार्य संचालन नियमों के नियम 267 (नियमों के निलंबन हेतु प्रस्ताव की सूचना) के अंतर्गत यह नोटिस दिया है. इसमें मनमाने तरीके से मतदाताओं के वोट काटने, बीएलओ की मौतें, मताधिकार से वंचित करने के खतरे और अनुच्छेद 14, 21 और 326 पर गंभीर संकट के संबंध में सदन में चर्चा की मांग की गई है.

उन्होंने नोटिस में कहा है कि भारत निर्वाचन आयोग द्वारा चलाए जा रहे विशेष सघन पुनरीक्षण (एसआईआर) ने चुनावी निष्पक्षता पर एक देशव्यापी संकट खड़ा कर दिया. यह प्रक्रिया, जिसका उद्देश्य मतदाता सूची को अपडेट और शुद्ध करना था, इसके उलट बड़े पैमाने पर मनमाने ढंग से नाम काटने, प्रक्रिया के घोर उल्लंघन और व्यापक मानवीय पीड़ा का कारण बन गई है. इसने स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनावों के लिए भी गंभीर खतरा पैदा कर दिया है.

'बिहार में 65 लाख वोटरों के नाम काटे गए'

संजय सिंह ने कहा है कि एसआईआर की वजह से बिहार में अभूतपूर्व और अनुचित तरीके से नाम हटाए गए हैं, जहां बिना किसी उचित सत्यापन के 65 लाख मतदाताओं के नाम काट दिए गए. कई विधानसभा क्षेत्रों में हटाए गए नामों की संख्या पिछले जीत के अंतर से भी अधिक है. यह प्रवासियों, महिलाओं, अल्पसंख्यकों और कमजोर वर्गों को लक्षित करके उन्हें मताधिकार से वंचित करने की आशंका को जन्म देता है. अपील करने के किसी सार्थक तंत्र का न होना और नाम हटाने की अपारदर्शी प्रक्रिया, उचित प्रक्रिया और पारदर्शिता की पूर्ण विफलता को दर्शाती है.

'BLO पर बनाया जा रहा दबाव'

संजय सिंह ने बताया कि एसआईआर ने बूथ लेवल अधिकारियों (बीएलओ) पर असहनीय दबाव पैदा कर दिया है, जिससे एक मानवीय संकट खड़ा हो गया है. महज 19 दिनों के भीतर (नवंबर 2025 के अंत तक), कम से कम 16 बीएलओ की मौत हो चुकी है, जिसमें आत्महत्याएं भी शामिल हैं. खबरों के मुताबिक, इसका कारण अमानवीय काम का बोझ, मानसिक तनाव, रातों की नींद हराम होना, फील्ड में असुरक्षित हालात और काम के प्रदर्शन (रैंकिंग) को लेकर दंडात्मक कार्रवाई का डर है. बार-बार ऐप का फेल होना, अवास्तविक लक्ष्य और निलंबन की धमकियों ने जमीनी स्तर के कर्मचारियों को खतरनाक कामकाजी माहौल में धकेल दिया है.

संजय सिंह ने कहा कि चुनाव आयोग द्वारा लागू की गई समय-सीमा मनमानी और अव्यावहारिक है. एसआईआर के दूसरे चरण में सत्यापन का काम 4 दिसंबर 2025 तक पूरा करना है, यानी घर-घर जाकर जांच, फॉर्म प्रोसेसिंग और डिजिटाइजेशन के लिए मुश्किल से एक महीने का समय दिया गया है. जबकि 2003 में चुनाव आयोग ने मतदाता सूची पुनरीक्षण का काम छह से आठ महीनों (लगभग 243 दिन) में किया था, जिससे सत्यापन, सुधार और जांच के लिए पर्याप्त समय मिला था. इसके ठीक विपरीत, 2025 का एसआईआर घर-घर सत्यापन, दस्तावेजों की जांच और अंतिम सूची के प्रकाशन सहित पूरी प्रक्रिया को महज 97 दिनों में समेट रहा है.

दस्तावेजों के औचित्य पर सवाल

संजय सिंह ने कहा कि 2003 के दिशानिर्देश मौजूदा मतदाता सूची और वोटर आईडी कार्ड को प्राथमिक सबूत मानते थे और यह मानकर चलते थे कि पंजीकृत मतदाता वैध हैं. 2025 का एसआईआर इस सिद्धांत को पलटते हुए मौजूदा मतदाताओं से भी नए दस्तावेज मांग रहा है, जिसे जुटाना एक आम नागरिक के लिए मुश्किल है.

संजय सिंह ने कहा कि माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने भी एसआईआर द्वारा थोपे गए दस्तावेजों के बोझ पर गंभीर चिंता व्यक्त की है. सुनवाई के दौरान जस्टिस सुधांशु धूलिया ने टिप्पणी की, “तुम दस्तावेजों के अभाव वाले इस देश में हर किसी से सभी दस्तावेज पेश करने की उम्मीद कैसे कर सकते हो? मेरे पास भी जन्म प्रमाण पत्र नहीं है.” यह दर्शाता है कि 2025 की एसआईआर प्रक्रिया का आधार ही अवास्तविक और लोगों को मतदाता सूची से बाहर करने वाला है, जिससे बड़े पैमाने पर लोग मताधिकार से वंचित हो सकते हैं.

संजय सिंह ने कहा कि बिहार में इन गंभीर विफलताओं के बावजूद चुनाव आयोग ने 2026 के प्रमुख चुनावों से पहले, 19 नवंबर 2025 से एसआईआर के दूसरे चरण का विस्तार 12 राज्यों, 321 जिलों और 51 करोड़ मतदाताओं तक कर दिया है. यह जल्दबाजी और बिना सुधार के किया गया विस्तार देश भर में बड़े पैमाने पर लोगों के मताधिकार छिनने के खतरे को नाटकीय रूप से बढ़ाता है और चुनावी प्रक्रिया की विश्वसनीयता को खतरे में डालता है.

'स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव पर खतरा'

संजय सिंह ने कहा कि यह अनुच्छेद 326 के तहत वोट देने के अधिकार, कानून के समक्ष समानता (अनुच्छेद 14) और स्वतंत्र/निष्पक्ष चुनाव (अनुच्छेद 21) के लिए खतरा है. इसलिए एसआईआर को रोकने, मतदाता सूची को बहाल करने और चुनाव आयोग की जवाबदेही तय करने के लिए तत्काल संसदीय हस्तक्षेप की मांग की जाती .संजय सिंह ने राज्यसभा के महासचिव से अनुरोध किया कि नियम 267 के तहत सदन के सभी कामकाज को स्थगित किया जाए और इस अत्यंत महत्वपूर्ण राष्ट्रीय मुद्दे पर तत्काल चर्चा की जाए.

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