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Siyasi Scan: राहुल गांधी ने सामू कश्यप को बनाया था जगदलपुर से उम्मीदवार, आज गरीबी में जीने को हैं मजबूर

Chhattisgarh: सामु कश्यप ने बताया कि परिवार में 5 सदस्य हैं. उनका घर काफी मुश्किल से चल रहा है. मां बीमार हैं. खेती-बाड़ी से ही उनका और उनके परिवार का गुजारा हो रहा है.

Chhattisgarh Politics: छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) में 2013 के विधानसभा  चुनाव में भले ही बीजेपी (BJP) को जीत हासिल हुई थी, लेकिन यह चुनाव बस्तर (Bastar) संभाग की सबसे महत्वपूर्ण सीट मानी जाने वाली और एकमात्र सामान्य सीट जगदलपुर (Jagdalpur) के कांग्रेसी उम्मीदवार के लिए काफी ऐतिहासिक था. हालांकि इस उम्मीदवार को इस  चुनाव में अपने बीजेपी प्रतिद्वंदी से हार मिली थी, लेकिन उन्हें कांग्रेस (Congress) का प्रत्याशी बनाये जाने के  बाद ना सिर्फ उनका पार्टी में कद बढ़ा बल्कि वो राहुल गांधी (Rahul Gandhi) के बस्तर में चहिते भी बन गए थे. 

वहीं वर्तमान में अब इस युवा कार्यकर्ता के पास ना ही कोई पद है और ना ही कांग्रेस सरकार में कोई पोजीशन. ऐसे में खेती-बाड़ी कर सामू कश्यप अपने परिवार का पालन पोषण कर रहे हैं. उन्हें इस बात का दुख है कि राहुल गांधी के द्वारा उन्हें जगदलपुर सीट से  प्रत्याशी बनाए जाने और 2018 चुनाव में  प्रदेश में कांग्रेस की  सरकार  बनने के बाद भी उनकी पार्टी में कोई पूछ नहीं है और ना ही कोई पद है. ऐसे में वो राहुल गांधी के करीबी होने के बाद भी एक आम जिंदगी जीने को मजबूर हैं.

राहुल गांधी के करीबी होने के बाद भी नहीं मिल रहा काम धाम
जगदलपुर शहर से लगे जमावड़ा गांव में रहने वाले सामु  कश्यप एक आम आदमी हैं,  लेकिन उन पर उस वक्त पूरे प्रदेश की नजर पड़ी जब राहुल गांधी अपने बस्तर प्रवास के दौरान जमावड़ा गांव पहुंचे हुए थे. यहां आम सभा के दौरान गांव वालों से बात करते हुए उन्होंने पूछा कि आप में से  सबसे ज्यादा पढ़ा लिखा कौन है, तो तपाक से सामू कश्यप ने उनको बताया कि वह 12 वीं  पास हैं. सामु के बेबाक अंदाज से राहुल खुश हुए. उन्होंने उनसे हाथ मिलाया और करीब 10 मिनट तक बात की. राहुल गांधी एक छोटे से गांव के युवक के बात करने के अंदाज और उसके काम से काफी प्रभावित हुए. यही वजह रही कि  राहुल गांधी ने 2013 के विधानसभा चुनाव में बस्तर संभाग के एकमात्र सामान्य सीट से सामू कश्यप को विधानसभा का टिकट दे दिया. सामू कश्यप बताते हैं कि उनकी उमीदवारी पर राहुल गांधी और  उड़ीसा के पूर्व सांसद भक्त चरण दास ने मुहर लगाई. उन्होंने बताया कि ना वो राजनीतिक परिवार से थे. ना ही आर्थिक रूप से संपन्न थे और ना ही बाहुबली थे. उनका राजनीति से दूर दूर तक वास्ता नहीं था.

चुनाव में मिली हार के बाद वो कर्जे में डूब गए
चुनाव लड़ने से पहले वो स्थानीय पंचायत कार्यालय में सचिव की नौकरी करते थे.  टिकट की घोषणा के बाद उन्होंने अपने नॉकरी से  इस्तीफा दे दिया, और कांग्रेस की सदस्यता ले ली. हालांकि सामु कश्यप बताते हैं कि उनको टिकट दिए जाने से बस्तर कांग्रेस  कमेटी के एक खेमे में  नाराजगी  थी और कहीं ना कहीं यही उनके हार के पीछे एक बड़ी वजह रही.  वो बीजेपी के कद्दावर नेता और उनके प्रतिद्वंदी संतोष बाफना से केवल 16 हजार मतों के अंतर से हारे. लेकिन 2008 के चुनाव के मुकाबले उन्हें पिछले कांग्रेस के प्रत्याशी से ज्यादा वोट मिले. इस हार के बाद वो कर्जे में डूब गए उनकी नौकरी भी चली गई थी. हालांकि कुछ सालों तक वे AICC  के मेंबर भी बनाए गए, लेकिन 2018 में प्रदेश में कांग्रेस की सत्ता आने के बाद अब उनकी पार्टी में कोई पूछ परख नहीं है. वो बताते हैं कि 2013 विधानसभा चुनाव के बाद आज 9 साल बीत गए हैं. बावजूद इसके उन्हें अभी तक कांग्रेस में कोई पद नहीं दिया गया है. लेकिन उन्हें अभी भी उम्मीद जरूर है कि दिल्ली हाईकमान और प्रदेश कांग्रेस कमेटी उन्हें आने वाले विधानसभा चुनाव में जगदलपुर सीट का उम्मीदवार बना सकती है. या फिर कांग्रेस संगठन में उन्हें कोई बड़ा पद मिल सकता है.

समाज के हित के लिए आरक्षण की कर रहे मांग
सामु कश्यप ने बताया कि परिवार में 5 सदस्य हैं. उनका घर काफी मुश्किल से चल रहा है. मां बीमार हैं. खेती-बाड़ी से ही उनका और उनके परिवार का गुजारा हो रहा है. सरकार आने के बाद उन्हें इन 4 सालों में कोई काम नहीं मिला. ना ही कांग्रेस में कोई पद मिला है. वहीं  प्रत्याशी बनाए जाने के बाद से वो कई सालों तक कर्जे में डूबे रहे. हालांकि अब उन्होंने धीरे-धीरे  उन्होंने सारे कर्जे चुका दिए हैं. उन्हें उम्मीद थी कि सरकार बनने के बाद उन्हें कुछ काम धाम मिलेगा, लेकिन वो भी नहीं मिला.  उन्होंने कहा कि वर्तमान में वे माहरा समाज के संभागीय अध्यक्ष हैं. वो माहरा  समाज को आरक्षण का लाभ  दिलाने के लिए बीते 5 सालों से लगातार प्रयास कर रहे हैं.

उनका कहना है कि केवल जगदलपुर में ही नहीं बल्कि पूरे बस्तर संभाग के 12 विधानसभा सीटों में माहरा समाज के वोटरों की संख्या सबसे ज्यादा है. इसलिए वो आरक्षण की मांग को लेकर केंद्रीय अनुसूचित जनजाति मंत्री से भी कई बार दिल्ली में  मुलाकात कर चुके हैं. उन्होंने ने बताया कि यह मुलाकात सकारात्मक रही. केंद्रीय मंत्री ने भी उम्मीद जताई है कि बस्तर में माहरा समाज के लोगों को आरक्षण का लाभ मिल सकता है. अब उनकी कोशिश है कि कम से कम वो अपने समाज के लोगों को आरक्षण का लाभ दिला सके.

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