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Bastar News: बस्तर के आदिवासी ऐसे बनाते हैं अपने घर की बाउंड्री वॉल, 100 साल से ज्यादा होती है टिकाऊ

छत्तीसगढ़ के बस्तर के आदिवासी अपने अपने घरों के बाउंड्री वॉल लकड़ी के बनाते हैं. आदिवासी आज भी 'जल जंगल जमीन' को ही अपनी सबसे बड़ी पूंजी मानने के साथ इनकी रक्षा करते हैं और इसकी रक्षा करते हैं.

Chhattisgarh News: छत्तीसगढ़ के बस्तर में रहने वाले आदिवासी ग्रामीण आज भी अपने कल्चर को नहीं भूले हैं. आदिवासियों की अपनी परंपरा आज भी कायम है और उनका रहन-सहन भी सबसे अलग है. खास बात यह कि इस क्षेत्र के वनवासी आज भी 'जल जंगल जमीन' को ही अपनी सबसे बड़ी पूंजी मानने के साथ इनकी रक्षा करते हैं और इनसे ही अपने जीवन से जुड़ी सभी जरूरतों को पूरा करते हैं. इन वनवासी क्षेत्रो में कुछ ऐसे तस्वीरें भी देखने को मिलेंगे जो पूरे देश मे और कहीं नहीं दिखाई देंगें और उनमें से एक है आदिवासियों के घरों की बाउंड्री, जिन्हें आदिवासी पेड़ की लकड़ी (खूंटे) से बनाते हैं और जिसे ग्रामीण बेड़ा  घेरा कहते है.

100 सालो से भी ज्यादा टिकाऊ होते हैं खूंटे की बनी बाउंड्री

दरअसल, बस्तर के वनवासी क्षेत्रों में आज भी ग्रामीण अंचलों के घरों में पेड़ के लकड़ियों की ही चार दीवारी होती है. घर हो या खेत इसके चारों और लकड़ी के खूंटे गाढ़कर बाउंड्री बनाई जाती हैं. ग्रामीण अंचलों में आपको दूर-दूर तक सीमेंट या ईट की दीवारें नहीं दिखाई देंगी. यहां आदिवासी लकड़ी के खूंटो को ज्यादा महत्व देते हैं और इन खूंटो से ही अपनी पूरी बाउंड्री को घेरते हैं. यह खूंटे 100 सालों तक टिकाऊ रहते हैं. बस्तर जिले के नेता नार गांव में भी करीब 100 से अधिक घर हैं और इन सभी घरों में खूंटे के ही बाउंड्री हैं. ग्रामीणों का कहना है कि वे सालों से बाउंड्री के लिए इसी खूंटे का इस्तेमाल करते आ रहे हैं. यही नहीं उनके घरों की छतें भी पत्थर के होते हैं जो गर्मी बरसात और ठंड भी झेल लेते हैं. गर्मी के दिनों में अंदर पूरी तरह से ठंडक पहुंचाती हैं. यही नहीं भारी बरसात में भी पत्थर टिकाऊ होते हैं और घर के अंदर पानी का रिसाव नहीं होता है. इसके अलावा पेड़ो के बल्ली और खूंटो से ही बाउंड्री और घर बनाते है. घर हो या खेत चारो ओर लकड़ी के खूंटे गाढ़कर बाउंड्री बनाई जाती है.

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करते है पौधा रोपण

ग्रामीणों ने यह भी बताया कि वह जब गांव बसे तब लकड़ी के ही खूंटे गाढ़कर लोग घर बनाते थे. गांव में कई घर आज भी लड़कियों के खूंटे के बने हुए हैं. समय के साथ साथ आज जब संसाधन बढ़ गए है लेकिन ग्रामीण अपनी सभ्यता को बचाए रखे हुए हैं. ग्रामीणों का यह भी कहना है कि बाउंड्री बनाने के लिए जंगलो से लकड़ी जरूर काटी जाती है लेकिन पर्यावरण को बनाये रखने के लिए ग्रामीण पौधे भी उसी संख्या में लगाते हैं और उसे देवता या परिवार का सदस्य मानकर उसकी पूरी देखभाल करते है.

आधुनिकता के दौर में भी नहीं भूले है अपनी सभ्यता 

जानकारों का मानना है कि बस्तर चारों ओर घने जंगलों से घिरा हुआ है. यहां के आदिवासियों के जीवन का जंगल मुख्य स्रोत भी है. वनोपज के साथ साथ पेड़ के लकड़ियों से ग्रामीण अपने घरों में इस्तेमाल करने के लिए वस्तुओं के साथ बाउंड्री से लेकर घर भी बनाते हैं. ग्रामीणों को मिट्टी और जंगल आसानी से उपलब्ध होते है इसलिए ग्रामीण इसका अपने जीवन के लिए उपयोग में लाते हैं. आधुनिकता के दौर में भी बस्तर के आदिवासी आज भी पुरानी सभ्यता को नही भूले हैं और उनकी सदियों से चली आ रही परम्परा आज भी कायम है.

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