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Bastar News: विश्व में प्रसिद्ध है बस्तर की ढोकरा शिल्पकला, जानिए कैसे तैयार होती है ढोकरा आर्ट की बेमिसाल मूर्तियां

बस्तर में आदिवासियों की प्राचीन परंपरा ढोकरा आर्ट सीखाने के लिए 15 दिवसीय प्रशिक्षण शिविर लगा है.

Dhokra Art Training in Bastar: आदिवासियों के ढोकरा आर्ट को छत्तीसगढ़ की शान कहा जाता है. बस्तर में बनाए जाने वाले ढोकरा आर्ट की मूर्तियों की डिमांड देश ही नहीं बल्कि विदेशों में भी है. अधिकांश आदिवासी शिल्पकारों की रोजी रोटी ढोकरा आर्ट पर निर्भर हैं. लेकिन कोरोना की मार ढोकरा आर्ट से जुड़े शिल्पकारों पर भी पड़ी. लॉकडाउन की वजह से ढोकरा शिल्पकारों को काफी नुकसान उठाना पड़ा है. तंग आकर कई कलाकारों ने ढोकरा आर्ट का काम ही छोड़ दिया है. अब 3 साल बाद एक बार फिर कला को जीवित रखने का बीड़ा प्रशासन ने उठाया है. ज्यादा से ज्यादा लोगों को ढोकरा आर्ट बनाने का प्रशिक्षण दिया जा रहा है. बस्तर में जिला प्रशासन प्रशिक्षण शिविर चला रहा है. शिविर में केवल बस्तर ही नहीं बल्कि तेलंगाना के भी 18 आदिवासी शिल्पकार प्रशिक्षण ले रहे हैं. दो स्थानीय कलाकार तेलंगाना के शिल्पकारों को प्रशिक्षित कर रहे हैं. 

ऐसे तैयार होती है ढोकरा आर्ट की मूर्तियां

बस्तर की बेल मेटल, काष्ठ  कला और ढोकरा आर्ट पूरे देश में प्रसिद्ध है खासकर ढोकरा आर्ट की मूर्तियों की काफी डिमांड है. देश के बड़े महानगरों में बकायदा ढोकरा आर्ट के शोरूम भी हैं. शोरूम आदिवासियों के बनाए ढोकरा आर्ट की मूर्तियों की काफी डिमांड है. आखिर बस्तर के ढोकरा आर्ट की डिमांड क्यों होती है? स्थानीय शिल्पकार लैदुराम ने बताया कि ढोकरा आर्ट को बनाने के लिए काफी मेहनत लगती है. ढोकरा आर्ट को बनाने में करीब 15 प्रक्रियाओं से गुजरना पड़ता है.

अधिकतर ढोकरा शिल्पकला में आदिवासी संस्कृति की छाप होती है. देवी देवताओं और पशु आकृतियों में हाथी, घोड़े, हिरण, नंदी, गाय और मनुष्य की आकृति होती है. इसके अलावा शेर, मछली, कछुआ, मोर भी बनाए जाते हैं. लैदुराम के मुताबिक ढोकरा आर्ट की एक मूर्ति बनाने में एक दिन का समय लगता है. सबसे पहले चरण में मिट्टी का प्रयोग होता है और मिट्टी से ढांचा तैयार किया जाता है. काली मिट्टी को भूंसे के साथ मिलाकर बेस बनता है और मिट्टी के सूखने पर लाल मिट्टी की लेप लगाई जाती है.

लाल मिट्टी से लेपाई करने के बाद मोम का लेप लगाते हैं. मोम के सूखने पर अगले प्रोसेस में मोम के पतले धागे से बारीक डिजाइन बनाई जाती है और सूखने पर अगले चरण में मूर्ति को मिट्टी से ढक देते हैं. इसके बाद सुखाते के लिए धूप का सहारा लेना होता है. धूप में सुखाने के बाद फिर मिट्टी से ढकते हैं. अगले चरण में ऊपर से दो-तीन मिट्टी से कवर करने के बाद पीतल, टिन, तांबे जैसी धातुओं को पहले हजार डिग्री सेल्सियस पर गर्म कर पिघलाया जाता है.

धातु को पिघलाने में चार से पांच घंटे का समय लगता है. पूरी तरह पिघलने के साथ ही ढांचा को अलग भट्टी में गर्म करते हैं. तरह गर्म होने पर मिट्टी के अंदर का मोम पिघलने लगता है. खाली स्थान पर पिघलाई धातु को ढांचे में धीरे धीरे डाला जाता है और मोम की जगह को पीतल से ढक दिया जाता है. फिर 4 से 6 घंटे तक ठंडे होने के लिए रखा जाता है.

ठंडा होने के बाद छेनी- हथौड़ी से मिट्टी निकालने के लिए ब्रश से साफ किया जाता है और इसके बाद मूर्तियों पर पॉलिश किया जाता है. इन सब प्रक्रिया से गुजरने के बाद ही ढोकरा आर्ट की मूर्तियां पूरी तरह से तैयार होती हैं और इसकी फिनिशिंग की वजह से बस्तर के ढोकरा आर्ट की काफी डिमांड होती है.

कला को दोबारा जीवित करने की कोशिश 

लॉकडाउन में कई आदिवासी शिल्पकारों ने ढोकरा आर्ट के काम को छोड़ दिया. लेकिन अब फिर से लोगों की जिंदगी पटरी पर लौट रही है. शिल्पकार धीरे-धीरे ढोकरा शिल्प को बनाने में जुट गए हैं. लैदुराम ने बताया कि बादल संस्था की मदद से कला को जीवित रखने के लिए जिला प्रशासन लोगों को प्रशिक्षित कर रहा है और मास्टर के तौर पर स्थानीय लोगों के साथ-साथ तेलंगाना से आए 18 शिल्पकारों को शिल्प बेहतर बनाने और आर्ट की बारीकियां भी सिखा रहे हैं ताकि तेलंगाना के शिल्पकार इलाके में बेहतर तरीके से बना कर बेच सकें. उन्होंने बताया कि 15 दिन के प्रशिक्षण शिविर में बकायदा तेलंगाना के शिल्पकारों को पूरी तरह से ढोकरा कला का प्रशिक्षण दिया जा रहा है.

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तेलंगाना के शिल्पकार सीख रहे फिनिशिंग

तेलंगाना से आए शिल्पकार दिलीप जंगम ने बताया कि तेलंगाना में सैकड़ों आदिवासियों की निर्भरता ढोकरा आर्ट पर है. पुश्तैनी समय से परिवार ढोकरा आर्ट की मूर्तियां बनाते आ रहा है. लेकिन बस्तर के ढोकरा आर्ट की मूर्तियों में शाइनिंग कहीं और नहीं देखने को मिलती है. तेलंगाना जिले के कलेक्टर ने बस्तर में ढोकरा आर्ट कला की फिनिशिंग और बारीकी सीखने के लिए प्रशिक्षण लेने भेजा है.

उनका कहना है कि उनके साथ 17 सदस्य और पहुंचे हुए हैं और बस्तर के शिल्पकार उन्हें बेहतर तरीके से प्रशिक्षण दे रहे हैं. उन्होंने बताया कि 15 दिन के प्रशिक्षण शिविर में काफी बारीकियां उन्होंने सीख ली हैं. आनेवाले दिनों में राज्य जाकर बेहतर तरीके से ढोकरा शिल्प की मूर्तियां बनाकर बेच सकेंगे.

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