छत्तीसगढ़: गुड़ियापदर गांव में न सड़क, न बिजली, न पानी, गर्भवती महिला को खाट पर पहुंचाया अस्पताल
Chhattisgarh News: छत्तीसगढ़ के बस्तर के एक गांव से हैरान कर देने वाली तस्वीर सामने आई है. जहां एक महिला को चारपाई पर डालकर अस्पताल पहुंचाया गया है.

छत्तीसगढ़ के जगदलपुर ब्लॉक के आखिरी छोर में बसे गुड़ियापदर गांव के लोग आज भी बुनियादी सुविधाओं के लिए जूझ रहे हैं. इस गांव में न तो सड़क है, न बिजली है और न ही पेयजल की सुविधा. स्वास्थ्य सुविधाओं के अभाव के कारण इन ग्रामीणों को हर दिन कई गंभीर समस्याओं से जूझना पड़ रहा है.
खासकर गर्भवती महिलाओं को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है. शनिवार की देर रात भी एक पांच महीने की गर्भवती महिला को गुड़ियापदर गांव से चितालगुर गांव तक खाट पर 5 से 6 किलोमीटर तक लादकर लाया गया. इसके बाद चितालगुर गांव से एंबुलेंस के जरिए पीड़ित महिला को डिमरापाल जिला अस्पताल पहुंचाया गया. पांच महीने की गर्भवती महिला का मिसकैरेज होने से उसकी हालत अभी भी गंभीर बनी हुई है, जिसका इलाज डिमरापाल अस्पताल में जारी है.
ग्रामीणों ने क्या बताया?
गुड़ियापदर गांव के ग्रामीणों का कहना है कि उन्हें हर रोज इस तरह की समस्या का सामना करना पड़ता है. सड़क नहीं होने की वजह से स्वास्थ्य विभाग की टीम भी गांव तक नहीं पहुंचती. लिहाजा ग्रामीणों को मरीजों को खाट पर लादकर 5 से 6 किलोमीटर कच्ची सड़क पर चलकर चितालगुर गांव तक पहुंचाना पड़ता है. सरकार से मिलने वाले पीडीएस चावल से लेकर रोजमर्रा की वस्तुओं के लिए भी उन्हें हर रोज 5 से 6 किलोमीटर पैदल चलकर चितालगुर गांव आना पड़ता है.
मूलभूत सुविधाओं के लिए जूझ रहा गांव
जगदलपुर मुख्यालय से करीब 60 किलोमीटर की दूरी पर मौजूद गुड़ियापदर गांव को FRA (वन अधिकार अधिनियम) का दर्जा प्राप्त है. 35 से 40 परिवारों वाले इस गांव में अब तक सरकार की कोई भी सुविधा नहीं पहुंच पाई है. मूलभूत सुविधाओं और स्वास्थ्य सेवाओं का लाभ पाने के लिए ग्रामीण जूझ रहे हैं.
सरकारी कागजों में यह गांव नक्सल मुक्त हो चुका है, बावजूद इसके प्रशासन इस गांव में अब तक बुनियादी सुविधाएं नहीं पहुंचा पाया है. हालांकि क्रेडा विभाग द्वारा सोलर लाइटें लगाई गई थीं, लेकिन मेंटेनेंस के अभाव में वे भी खराब पड़ी हुई हैं.
इस गांव के रहने वाले सुका मरकाम ने बताया कि उनकी पत्नी लखमी मरकाम पांच महीने की गर्भवती हैं. शनिवार की शाम अचानक दर्द उठने पर गांव के अन्य तीन ग्रामीणों की मदद से खाट पर घर से बाहर ले जाते वक्त मिसकैरेज हो गया. पूरी तरह से लहूलुहान हालत में उन्हें खाट पर रखकर पगडंडी रास्तों से 5 से 6 किलोमीटर पैदल चलकर चितालगुर गांव पहुंचाया गया और फिर एंबुलेंस से डिमरापाल जिला अस्पताल लाया गया.
उन्होंने बताया कि उनकी पत्नी की तबीयत काफी नाजुक है और अब तक पांच यूनिट ब्लड चढ़ाया जा चुका है. गांव के मरीजों और गर्भवती महिलाओं को लंबे समय से इसी तरह की दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है. सड़क नहीं होने के कारण स्वास्थ्य विभाग की टीम गांव तक नहीं पहुंच पाती और मरीजों को चितालगुर गांव तक आने को कहा जाता है.
राशन लेने 6 किमी का सफर
इस गांव के निवासी शकील रिजवी ने बताया कि पूर्व विधायक रेखचंद जैन से ग्रामीणों द्वारा मांग करने के बाद चितालगुर गांव से गुड़ियापदर गांव तक तीन पुल-पुलिया का निर्माण तो कराया गया, लेकिन पक्की सड़क आज भी नहीं बन पाई है.
पगडंडी और कुछ जगहों पर मिट्टी की सड़क होने की वजह से बरसात के मौसम में ग्रामीणों को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है. यहां तक कि सरकारी राशन लेने के लिए भी उन्हें गुड़ियापदर गांव से 5 से 6 किलोमीटर पैदल चलकर चितालगुर गांव पहुंचना पड़ता है. 35 से 40 परिवारों वाले इस गांव में बुनियादी सुविधाओं का लंबे समय से अभाव है.
राजस्व रिकॉर्ड में नहीं है ग्राम
इधर प्रशासनिक अधिकारियों का कहना है कि यह गांव राजस्व रिकॉर्ड में नहीं है, इसलिए यहां कोई सुविधा नहीं पहुंच पाई है. वहीं जगदलपुर जनपद पंचायत के कार्यपालन अभियंता अमित भाटिया ने बताया कि अब तक जनपद या ग्राम पंचायत से चितालगुर गांव से गुड़ियापदर गांव तक सड़क निर्माण के लिए न तो कोई स्वीकृति हुई है और न ही कोई प्रस्ताव तैयार हुआ है.
यह गांव कांगेर वैली नेशनल पार्क के अंतर्गत आता है. गुड़ियापदर फॉरेस्ट रेंज के अफसर डी.आर. राजपूत ने बताया कि इस गांव को वन अधिकार अधिनियम का दर्जा प्राप्त है, लेकिन सड़क निर्माण के लिए न तो विभाग को बजट मिला है और न ही कोई प्रस्ताव स्वीकृत हुआ है.
ग्रामीणों का आरोप – सिर्फ वोट के समय याद किया जाता है
गौरतलब है कि लोकसभा, विधानसभा और पंचायत चुनावों में गुड़ियापदर के ग्रामीणों को वोट देने का अधिकार है. उनके आधार कार्ड भी बने हैं, लेकिन विडंबना यह है कि शासन-प्रशासन उन्हें केवल वोट देने तक ही सीमित रखता है. यही वजह है कि अब तक इस गांव के ग्रामीणों को मूलभूत सुविधाएं नहीं मिल पाई हैं.
Source: IOCL






















