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Bastar Rajmahal: सिर्फ अंतिम यात्रा के लिए खुलता है 'बस्तर राजमहल' का यह दरवाजा, जानें इसके पीछे की रोचक कहानी

Bastar: लगभग 7 एकड़ में फैले बस्तर राजपरिवार के महल में एक ऐसा मुख्य दरवाजा है, जो कभी नहीं खुलता है.

Bastar Rajmahal Special Tradition: विश्व प्रसिद्ध बस्तर दशहरा (Dastar Dussehra) पर्व अपनी अनोखी परंपरा और अद्भुत रस्मों के लिए पूरे विश्व में जाना जाता है. इस पर्व को संपन्न कराने के लिए बस्तर राजपरिवार (Bastar Royal Family) की अहम भूमिका होती है. राज परिवार के महाराजा (Bastar King) ही माटी पुजारी के हैसियत से दशहरा पर्व के अद्भुत रस्मों को संपन्न कराते हैं. यहां केवल दशहरा से जुड़ी ही अनोखी परंपरा नहीं है, बल्कि बस्तर राजपरिवार में भी एक ऐसी अनोखी परंपरा निभाई जाती है, जो केवल बस्तर रियासत में ही देखने को मिलती है.

लगभग 7 एकड़ में फैले बस्तर राजपरिवार के महल में एक ऐसा मुख्य दरवाजा है, जो कभी नहीं खुलता है. या यूं कहें कि इस दरवाजे से बस्तर के राजपरिवार के सदस्य कभी नहीं गुजरते हैं और न ही इस मुख्य दरवाजा के पास बस्तर के राज को ही जाने की अनुमति होती है. दरअसल,  इसके पीछे एक रोचक कहानी छुपी हुई है. इस बारे में बस्तर राजपरिवार के राजकुमार कमलचंद भंजदेव ने बताया कि बस्तर का राज महल करीब 7 एकड़ में फैला हुआ है. इसके दो मुख्य गेट हैं, लेकिन राजमहल के बाईं ओर स्थित मुख्य गेट को कभी नहीं खोला जाता है. रियासत काल से ही यह परंपरा चली आ रही है.

मुख्य दरवाजे से बस्तर के महाराजा को भी गुजरने की नहीं है अनुमति

खास बात यह है कि मुख्य दरवाजे से बस्तर के महाराजा को भी गुजरने की अनुमति नहीं है. राजतिलक होने के बाद कमलचंद भंजदेव भी इस मुख्य गेट से नहीं गुजरे. इसकी वजह बताते हुए कमल चंद्र भंजदेव ने कहा कि यह मुख्य गेट उसी वक्त खुलता है, जब किसी राजपरिवार के सदस्य की अंतिम यात्रा निकलती है. इसके अलावा उस गेट को बाकी समय बंद रखा जाता है.

अंतिम यात्रा से पहले उस गेट से राजा को जाने की अनुमति नहीं है. कमलचंद भंजदेव ने बताया कि ऐसा इसलिए किया जाता है, क्योंकि बस्तर के राजगद्दी में जो भी बैठता है, वह अपने परिवार के किसी भी सदस्य को मुखाग्नि नहीं दे सकता है और न ही परिवार में किसी की मौत होने पर 10 नहान का रिवाज होने तक अपने परिवार वालों के साथ  दुख बांट सकता है. साथ ही राज परिवार से बाहर भी किसी के घर में अगर मौत होती है तो 10 नहान होने तक राजा वहां नहीं जा सकता है.

जिम्मेदारी के साथ जवाबदेही भी बढ़ जाती है

कमलचंद भंजदेव  ने बताया कि राजकुमार बनने पर जो जिम्मेदारी मिलती है, उसके साथ ही कई जवाबदेही भी आती है. उसके अनुरूप सभी नियमों का कड़ाई से पालन भी करना पड़ता है. कई बार ऐसे नियम दु:ख भी बहुत देते हैं. इसलिए बड़ी जिम्मेदारी कभी-कभी कांटों का ताज साथ लाती है.

इसलिए राजा दुख में नहीं होते हैं शामिल

राजकुमार ने बताया कि बस्तर की कुलदेवी मां दंतेश्वरी राज परिवार की इष्ट देवी भी है, जो भी राजपरिवार सदस्य राजा की गद्दी पर बैठता है, उसको माई के पुजारी की पदवी साथ मिलती है, चूंकि माई के पुजारी होने के नाते अगर घर में दुख में शामिल होंगे तो उससे छूत लगता है. ऐसे में माई को भी छूत लग जाएगा और उस दौरान छूत हटते तक मां दंतेश्वरी का मंदिर बंद करना पड़ेगी, क्योंकि मां दंतेश्वरी बस्तर की आराध्य देवी है, ऐसे में लोगों की आस्था माई के साथ जुड़ी हुई है और केवल राज परिवार में सुख होने की वजह से श्रद्धालु माई का दर्शन न कर पाए, यह भी उचित नहीं है.

इसलिए आदिकाल से बस्तर राजा के लिए ऐसा नियम चल रहा है. इस नियम के तहत ही राजमहल के एक मुख्य दरवाजा से राजा गुजर नहीं सकता. इस मुख्य दरवाजा के खुलने का एक वक्त होता है, जब राजपरिवार में किसी सदस्य की मृत्यु होती तो अंतिम यात्रा इस गेट से निकाली जाती है. राजकुमार ने बताया कि सालों पुरानी इस  परंपरा को आज भी बस्तर राजपरिवार के द्वारा सारे नियम के साथ पालन किया जाता है.

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