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JDU के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद के लिए नीतीश कुमार ने आरसीपी सिंह को ही क्यों चुना?

नीतीश कुमार ने दो प्रयोग किए थे. इन दोनों प्रयोग के जो नतीजे रहे वो उन्हें रास नहीं आए. इसलिए नीतीश कुमार को अब एक ऐसे व्यक्ति की जरूरत थी जिस पर वो भरोसा कर सकें. इसमें आरसीपी सिंह का नाम सबसे आगे था.

पटना: जनता दल यूनाइटेड की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में रामचंद्र प्रसाद सिंह को पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष चुना गया है. वे आरसीपी सिंह के नाम से मशहूर हैं. पटना जेडीयू की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की दो दिवसीय बैठक के अंतिम दिन नीतीश कुमार ने राष्ट्रीय अध्यक्ष पद से इस्तीफा देने का एलान किया और इसके बाद खुद आरसीपी सिंह को अध्यक्ष बनाने का प्रस्ताव दिया. इस प्रस्ताव का सर्वसम्मति से तमाम सदस्यों ने समर्थन दिया. आरसीपी सिंह के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने के साथ ही उनके समर्थकों में उत्साह दिख रहा है.

बताया जाता है कि नीतीश कुमार और आरसीपी सिंह के बीच दोस्ती इसलिए भी गहरी हुई क्योंकि दोनों ही बिहार के नालंदा से हैं और एक ही जाति से आते हैं. आरसीपी सिंह, नीतीश कुमार के साथ उस दौर से हैं जब वह आईएस थे और नीतीश कुमार रेल मंत्री थे. आरसीपी सिंह यूपी कैडर के आईएएस थे और रेल मंत्रालय में बतौर पीएस उन्हें नीतीश कुमार ने बुलाया. जब नीतीश कुमार रेल मंत्री से हटे तो तो वह अपने यूपी कैडर में वापस चले गए.

जैसे ही नीतीश कुमार बिहार के मुख्यमंत्री बने तो यूपी कैडर के होते हुए भी आरसीपी सिंह को पहला सक्रेटरी बनाया. उसके बाद से वे लगातार सीएम नीतीश के साथ रहे. प्रिंसिपल सेक्रेटरी भी बने. मनमोहन सिंह से बात करके बिहार में रहने के लिए उन्हें एक्सटेंशन दिया गया.

चुनावों में रणनीति तय करना, प्रदेश की अफसरशाही को कंट्रोल करना, सरकार की नीतियां बनाना और उनको लागू करने जैसे सभी कामों का जिम्मा आरसीपी सिंह के कंधों पर है. इसीलिए उन्हें 'जेडीयू का चाणक्य' भी कहा जाता है. आरसीपी सिंह ने फिर वीआरएस  ले लिया, जिसके बाद उन्हें राज्यसभा भेज दिया गया. राज्यसभा जाने के बाद आरसीपी सिंह पूरी तरह से पार्टी हो देखने लगे. पार्टी में उन्हें महासचिव का पद दिया गया. बिहार में जगह-जगह पार्टी को मजबूत करने की उन्होंने कोशिश की. सभी जगह सम्मेलन का आयोजन किया. बिहार बिहार घूमते रहे और पार्टी में उनका जलवा बढ़ता गया.

दरअसल नीतीश कुमार ने दो प्रयोग किये थे. एक जो खुद मुख्यमंत्री पद को उन्होंने छोर दिया था और जीतनराम मांझी को मुख्यमंत्री बनाया. लेकिन उसके बाद जीतनराम मांझी के रुख से यह तय हो गया था कि उन्होंने शायद यह कदम गलत उठाया है. इस वजह से जीतनराम मांझी ने उन्हें ‘धोखा’ दिया, ऐसा कहा गया. इसको लेकर काफी परेशानी हुई. इसके बाद शारद यादव राष्ट्रीय अध्यक्ष थे. उनको हटाकर ही नीतीश कुमार राष्ट्रीय अध्यक्ष बने थे. शरद यादव से बाद में अनबन हो गई, जिसके बाद वह पार्टी टूट गई.

शारद यादव और जीतनराम मांझी का जो प्रयोग था, वो नीतीश कुमार को रास नहीं आया. इसलिए उन्हें अपने भरोसे के व्यक्ति की जरूरत थी और आरसीपी सिंह से ज्यादा करीबी और भरोसेमंद कोई दिख नहीं रहा था.

नीतीश कुमार ने कुछ दिन पहले ही यह तय कर दिया था कि आरसीपी सिंह ही उनके उत्तराधिकारी होंगे. उत्तराधिकारी के तौर पर या राष्ट्रीय अध्यक्ष के लिए, यह तय नहीं किया था. लेकिन आज राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में यह साफ हो गया कि आरसीपी सिंह ही राष्ट्रीय अध्यक्ष बनेंगे.

आरसीपी सिंह के बारे में यह कहा जाता है की पार्टी के नेताओं को और कार्यकर्ताओं को सभी एक साथ जोड़ कर रख सकते हैं. एक तरह से यह देखा जा सकता है कि आरसीपी सिंह चाहे वो नौकरशाह रहे हों, राज्यसभा सांसद रहे हों, पार्टी के अंदर के नेताओं और कार्यकर्ताओं के बीच बातचीत करने और उनके साथ घुलमिल रहने में काबिल रहे हैं. हर प्रयोग उनके साथ सफल रहा है. ये भी प्रयोग होगा कि कैसे आरसीपी सिंह पार्टी को एकजुट रखने में कामयाब होंगे. पार्टी के अंदर थोड़ी बहुत खलबली मच सकती है लेकिन उससे कोई फर्क नहीं पड़ता है.

बिहार में नीतीश कुमार और बीजेपी की सरकार है. जाहिर है कि अभी तक मंत्रिमंडल का विस्तार नहीं हुआ है. सुशील मोदी उपमुख्यमंत्री थे लेकिन उन्हें हटा दिया गया है. पार्टी के अंदर नीतीश कुमार किनसे बात करेंगे, ये सब कुछ सामने नहीं दिखता है. ऐसे में जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष होने के नाते अब आरसीपी सिंह केंद्र में बीजेपी के बड़े नेता हो, राष्ट्रीय अध्यक्ष हो या फिर दुसरी पार्टी के नेता हों, उनके लगातार बात कर सकते हैं.

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