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Bihar Bahubali: क्राइम का बेताज बादशाह, अपराध की दुनिया में सूरजभान ने रखा कदम तो पिता और भाई ने दे दी थी जान

Surajbhan Singh Bihar Bahubali: सूरजभान सिंह के पिता उन्हें फौज में भेजना चाहते थे लेकिन बेटे के मन में कुछ और था. इसके बाद सूरजभान सिंह बन गए अपराध की दुनिया का बेताज बादशाह. 

Bihar Bahubali Story: बिहार में बाहुबली नेताओं की कमी नहीं रही है. अपराध की दुनिया की चर्चा में जब बात बिहार की होती है तो सूरजभान सिंह का नाम भी आता है. अपराध के साथ राजनीति में भी चर्चा रही है. आज बिहार के बाहुबली नेताओं में बात सूरजभान सिंह के क्राइम की दुनिया की खौफनाक कहानी को जानिए. अपराध की दुनिया में सूरजभान सिंह ने कदम रखा तो पिता ने गंगा में कूदकर जान दे दी थी. एक भाई था जिसकी मौत हो गई. उस समय के स्थानीय लोग कहते हैं कि भाई ने भी जान ही दे दी थी.

सूरजभान सिंह का जन्म 5 मार्च 1965 को मोकामा के एक गांव में हुआ था. उनके पिता एक मामूली किसान और गरीब परिवार से थे. किसानी के साथ-साथ उनके पिता मोकामा के एक बड़े व्यवसायी गुलजीत सिंह के यहां नौकरी करते थे. सूरजभान सिंह दो भाई थे. उनके बड़े भाई की सीआरपीएफ में नौकरी लग गई जिसके बाद घर की स्थिति सुधारने लगी. सूरजभान को उनके पिता फौज में भेजना चाहते थे क्योंकि ये दिखने में लंबे कद काठी के हैं लेकिन सूरजभान के मन में कुछ और चल रहा था और वो बन गए अपराध की दुनिया का बेताज बादशाह. 

पिता के मालिक से हुई शुरुआत

सबसे पहले सूरजभान ने अपने पिता के मालिक गुलजीत सिंह को टारगेट किया और उनसे रंगदारी मांगी. इसके बाद गुलजीत सिंह ने उनके पिता से शिकायत की. उनके पिता सूरजभान सिंह काफी नाराज हुए और ऐसा नहीं करने के लिए कहा लेकिन सूरजभान सिंह ने रंगदारी ले ही ली. उनके पिता को शर्मिंदगी महसूस हुई और गंगा में कूदकर अपनी जान दे दी. उसी वक्त उक्त उनके बड़े भाई की भी मौत हो गयी थी. वहां के लोग कहते हैं कि उनके भाई की सीआरपीएफ में नौकरी थी. बदनामी के डर से उन्होंने भी आत्महत्या कर ली थी.

सूरजभान सिंह का परिवार खत्म हो गया लेकिन उन पर कोई असर नहीं हुआ. 1980 और 1990 के बीच रंगदारी मांगने, दहशत फैलाने जैसी छोटी-मोटी घटना करते थे लेकिन 90 के बाद उनका अपराध चरम पर था. सूरजभान के गुरु थे दिलीप सिंह जो अनंत सिंह के बड़े भाई थे. सूरजभान सिंह 1990 के पहले ही दिलीप सिंह का हाथ पकड़ लिया था. दिलीप सिंह का उस इलाके में सिक्का चलता था. सूरजभान सिंह दिलीप सिंह के दाहिने हाथ माने जाते थे.

बताया जाता है कि दिलीप सिंह 1980 और 1990 के बीच के कांग्रेस विधायक और मंत्री रहे श्याम सुंदर सिंह धीरज के लिए काम करते थे. श्याम सुंदर सिंह धीरज के लिए बूथ कैपचरिंग करना, मत पेटियों को चुराना काम था. 1990 में दिलीप सिंह ने श्याम सुंदर सिंह धीरज के खिलाफ जनता दल से टिकट लेकर चुनाव लड़ा और जीत हासिल की. 1990 से 2000 तक दिलीप सिंह लालू राबड़ी की सरकार में मंत्री भी रहे.

सूरजभान सिंह दिलीप सिंह के लिए काम कर रहे थे. उसी दौरान सूरजभान सिंह का कद भी बढ़ता जा रहा था. इस दौरान सूरजभान पर कई हत्याओं का आरोप भी लगा. दिलीप सिंह के जीतने के बाद श्याम सुंदर सिंह धीरज की नजर सूरजभान सिंह पर पड़ी. दरअसल सूरजभान के चचेरे भाई मोती सिंह की कुख्यात नागा सिंह ने हत्या कर दी थी. नागा सिंह दिलीप सिंह का करीबी बताया जाता था. इस घटना के बाद सूरजभान का मोकामा विधायक दिलीप सिंह से अदावत बढ़ गई. सूरजभान सिंह और दिलीप सिंह के रिश्ते में दरार आ गई.

...और जाना पड़ा था जेल

सूरजभान सिंह ने अपने आपराधिक गुरु दिलीप सिंह के खिलाफ 2000 में निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में मोकामा विधानसभा से चुनाव लड़ा और जीत गए. सूरजभान सिंह पर 25 से 30 मामले दर्ज हुए. लालू-राबड़ी की सरकार में रहे मंत्री ब्रिज बिहारी सिंह की हत्या, बेगूसराय के रामी सिंह और मोकामा के पार्षद अशोक सिंह की हत्या, अशोक सम्राट से गैंगवार ज्यादा चर्चा में रहा और वे जेल में भी गए.

 

बात 1990 के आसपास की है. उत्तर प्रदेश का रहने वाला बाहुबली अशोक सम्राट का नाम बिहार के अपराध की दुनिया में चर्चा में था. सूरजभान की अशोक सम्राट से दुश्मनी चल रही थी. सूरजभान मोकामा से बाहर अपना दबदबा बनाने की कोशिश कर रहे थे. गोरखपुर से लेकर बिहार तक रेलवे के ठेकों पर सूरजभान अपना सिक्का जमाने की कोशिश कर रहे थे. अशोक सम्राट भले उत्तर प्रदेश का रहने वाला था लेकिन बेगूसराय में उसके दहशत का कारोबार चलता था.

सूरजभान के अपराध की राह का रोड़ा अशोक सम्राट था. दोनों के बीच वर्चस्व की लड़ाई छिड़ गई थी. कई बार मुठभेड़ हुई. उसी वक्त मोकामा में अशोक सम्राट और सूरजभान के बीच हुई मुठभेड़ इन्हें पैर में गोली लगी थी. हालांकि सूरजभान पैर में गोली लगने के बाद बचकर निकल गए थे लेकिन उनके चचेरे भाई अजय और पोखरिया निवासी शूटर मनोज मारा गया था. अशोक सम्राट बिहार में की राजनीति में आना चाहता था लेकिन 1995 में हाजीपुर में पुलिस की मुठभेड़ में  वह मारा गया था. 1993 में बेगूसराय के मधुरापुर के निवासी रामी सिंह की चार लोगों ने गोली मारकर हत्या कर दी थी. इस हत्याकांड में सूरजभान का नाम आया था. इस मामले में मुख्य गवाह और यहां तक कि सरकारी वकील राम नरेश शर्मा की भी हत्या हो गई थी.

हालांकि इसमें सूरजभान सिंह बरी हो जाते लेकिन इस केस का गवाह जो बेगूसराय के डॉन रह चुके कामदेव सिंह का परिवार से था वह नहीं टूटा. निचली अदालत में मुकदमा चला उन्हें आजीवन कारावास की सजा मिली. अदालत से जमानत पर बाहर भी आ गए. 2003 में मोकामा में पूर्व पार्षद उमेश यादव की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी. इसमें भी सूरजभान के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज हुई थी लेकिन सुनवाई में वह बरी हो गए थे. उस वक्त सूरजभान मोकामा के विधायक भी थे.

जेल में बंद होने के बावजूद लगा था हत्या का आरोप

सूरजभान सिंह का सबसे चर्चित कांड मंत्री ब्रिज बिहारी प्रसाद की हत्या का था. 13 जून 1998 को साइंस एवं टेक्नोलॉजी मंत्री ब्रिज बिहारी प्रसाद की हत्या हुई थी उसमें सूरजभान सिंह का नाम आया था. उस वक्त राबड़ी देवी की सरकार थी और इस हत्या के बाद पूरे बिहार में खलबली मच गई थी. ब्रिज बिहारी प्रसाद पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे थे. उस वक्त की मुख्यमंत्री राबड़ी देवी ने उनसे इस्तीफा मांगा था और उन्हें गिरफ्तार कर जेल भेजा गया था. वहां उनकी तबीयत खराब हुई थी और पटना के इंदिरा गांधी आयुर्विज्ञान संस्थान में भर्ती कराया गया था. अस्पताल परिसर में ब्रिज बिहारी प्रसाद शाम के समय सुरक्षा गार्ड के साथ घूम रहे थे तभी लाल बत्ती लगी एक एम्बेसडर कार और बुलेट पर सवार कुछ लोग पहुंचे थे. अस्पताल के परिसर में मंत्री बिहारी प्रसाद पर एके-47 से अंधाधुंध फायरिंग की गई थी जिसमें घटनास्थल पर ही मौत हो गई थी. इस गोलीकांड में मंत्री का एक बॉडीगार्ड भी मारा गया था. इस हत्याकांड में गोरखपुर के नामी डॉन श्री प्रकाश शुक्ला को मुख्य आरोपी बनाया गया था उसमें सूरजभान को भी दूसरे नंबर पर आरोपी बनाया गया था. हत्या के वक्त सूरजभान बेउर जेल में बंद थे.

लोगों का कहना था कि बेऊर जेल से ही हत्या की साजिश रची गई थी, लेकिन कुछ जानकारों का मानना है कि ब्रिज बिहारी प्रसाद खुद अपराधी प्रवृत्ति का था. उस पर कई मामले दर्ज थे. ब्रिज बिहारी प्रसाद से सूरजभान की दुश्मनी चल रही थी. बताया यह भी जाता है कि ब्रिज बिहारी प्रसाद ने सूरजभान को जेल में ही मारने की साजिश रची थी. जेल के अंदर सूरजभान को मारने के लिए एक कैदी को 20 लाख रुपये दिए गए थे. कहा गया था कि अगर गोली मारना संभव नहीं होगा तो खाने में जहर देकर उसे खत्म कर दिया जाए. इसकी भनक सूरजभान को लगी थी और उनके साथ घटना घटती उससे पहले ब्रिज बिहारी सिंह की हत्या हो गई.

इस हत्याकांड का मामला सीबीआई को दिया गया था. 2009 में इस मामले में निचली अदालत ने सूरजभान सिंह सहित आठ आरोपियों को दोषी पाया था और  सभी को उम्र कैद की सजा सुनाई थी. हालांकि इस मामले में नौ आरोपी बनाए गए थे जिसमें मुकदमे के दौरान ही एक की मौत हो गई थी. हाईकोर्ट से सूरजभान सहित सभी आरोपियों को राहत मिली थी. हाईकोर्ट ने सीबीआई की दलीलों को सुनने के बाद जेल में बंद राजन तिवारी, मुन्ना शुक्ला और मंटू तिवारी को तुरंत रिहा करने का आदेश दिया था जबकि जमानत पर चल रहे सूरजभान सिंह, मुकेश सिंह, कैप्टन सुनील सिंह, ललन सिंह, रामनिरंजन चौधरी को जमानत बॉन्ड से मुक्त कर दिया था. हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा था कि सीबीआई यह साबित नहीं कर पाई है कि इन्होंने ब्रिज बिहारी प्रसाद की हत्या की साजिश रची थी. 

विधानसभा से संसद तक का सफर

2000 में अपने गुरु दिलीप सिंह के खिलाफ मोकामा में निर्दलीय चुनाव लड़कर बिहार विधानसभा पहुंचे तो उसके बाद रामविलास पासवान ने सूरजभान सिंह को अपनी पार्टी में शामिल कर लिया. इसके बाद लोक जनशक्ति पार्टी का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बना दिया. 2004 में बेगूसराय के बलिया लोकसभा से एलजेपी के टिकट पर सूरजभान सिंह चुनाव लड़े. किस्मत ने वहां भी उनका साथ दिया और वह सांसद बन गए. 2009 में चुनाव आयोग ने उन्हें सजायाफ्ता होने का हवाला देते हुए चुनाव लड़ने के लिए अयोग्य करार दिया. चुनाव लड़ने पर रोक लग गई. सूरजभान सिंह ने 2014 में अपनी पत्नी वीणा देवी को मुंगेर लोकसभा से टिकट दिलवाया और जेडीयू के ललन सिंह को हराकर वीणा देवी सांसद बनीं. बाद में वीणा देवी बीजेपी में चली गईं. 2018 में सूरजभान सिंह के बड़े बेटे आशुतोष सिंह की नोएडा में एक सड़क हादसे में मौत हो गई थी. इसके बाद सूरजभान सिंह काफी टूट गए.

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