Bihar SIR: 'एसआईआर पारदर्शी नहीं, हमें इस मुद्दे पर न्याय मिलेगा'- प्रशांत किशोर
Prashant Kishor: बिहार में एसआईआर को लेकर चुनाव आयोग और विपक्ष के बीच टकराव की स्थिति पैदा हो गई है. मामला सुप्रीम कोर्ट में है और याचिकाकर्ताओं को न्याय की उम्मीद है.

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण के चुनाव आयोग के फैसले के खिलाफ दायर याचिकाओं पर सुनवाई की, जिसमें अदालत ने कहा कि एसआईआर की मसौदा सूची पर फिलहाल कोई रोक नहीं लगाई जाएगी.
प्रशांत किशोर को SC से न्याय की उम्मीद
इसे लेकर जन सुराज पार्टी के संस्थापक प्रशांत किशोर ने कहा, "चुनाव आयोग सभी हितधारकों को शामिल नहीं कर रहा है और यह नहीं बता रहा है कि किन लोगों के नाम हटाए जा रहे हैं. प्रक्रिया इतनी पारदर्शी नहीं है. हमें उम्मीद है कि हमें इस मुद्दे पर न्याय मिलेगा."
#WATCH | Patna | On Bihar SIR, founder of Jan Suraaj Party, Prashant Kishor says, "The Election Commission is not involving all stakeholders and telling which all names are being deleted. The process is not so transparent...We hope we will get justice on this issue..." pic.twitter.com/numaYmDEBP
— ANI (@ANI) July 28, 2025
दरअसल सोमवार को हुई सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जब हम याचिकाकर्ताओं से सहमत होंगे, तो पूरी प्रक्रिया रद्द कर दी जाएगी. अभी किसी रोक की ज़रूरत नहीं है. जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि एसआईआर के दौरान आधार और ईपीआईसी पर विचार किया जाना चाहिए. अगर किसी मामले में कोई संदेह है, तो उस पर जरूरी कार्रवाई की जा सकती है. हालांकि, इसे आदेश नहीं कहा जा सकता, यह सिर्फ एक सुझाव है.
65 लाख मतदाताओं के नाम वोटर लिस्ट से हटे
बता दें कि बिहार में चल रहे एसआईआर को लेकर चुनाव आयोग और विपक्ष के बीच टकराव की स्थिति पैदा हो गई है. मामला सुप्रीम कोर्ट में है और याचिकाकर्ताओं को न्याय की उम्मीद है. फिलहाल इस पर कोई रोक नहीं लगाई है और एसआईआर का पहला चरण बिहार में पूरा हो गया है. जिसके अनुसार 65 लाख मतदाताओं के नाम वोटर लिस्ट से हटा दिए गए हैं. ये वो मतदाता हैं, जिनकी मृत्यु हो गई. या जो स्थाई रूप से किसी और राज्य में निवास कर रहे हैं, या जिनकी दो जगह वोटर आईडी है.
पहले चरण के जारी आंकड़ों के मुताबिक एसआईआर के तहत मृत घोषित 22 लाख (2.83 प्रतिशत) हैं. इसके अलावा, स्थायी रूप से स्थानांतरित/नहीं मिले 36 लाख (4.59 प्रतिशत) हैं और एक से अधिक जगहों पर पंजीकृत 7 लाख (0.89 प्रतिशत) लोग हैं, जिनके नाम काटे गए हैं. हालांकि विपक्ष का कहना है कि इस आंकड़ें में प्रारदर्शिता नहीं है. ये जल्दबाजी में लिया गया आंकड़ा है, जो सही नहीं है.
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