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आज ही के दिन साल 2014 में आई थी सचिन की आत्मकथा 'प्लेइंग इट माई वे', जानें- किताब की रोचक बातें

6 नवंबर 2014 को आज ही के दिन सचिन तेंदुलकर की आत्मकथा- 'सचिन तेंदुलकर- प्लेइंग इट माई वे' लोगों के सामने आई थी. इस किताब में सचिन ने पूरी ईमानदारी से अपने बारे में लिखा है. अपनी उपलब्धियों के साथ उन्होंने इस किताब में कई रोचक चीजें बताई हैं.

नई दिल्ली: क्रिकेट के तमाम बड़े रिकॉर्ड अपने नाम रखने वाले मास्टर ब्लास्टर सचिन तेंदुलकर की आत्मकथा का नाम ''सचिन तेंदुलकर- प्लेइंग इट माई वे'' है. सचिन की आत्मकथा की चर्चा हम इसलिए कर रहे हैं क्योंकि आज ही के दिन साल 2014 में इस किताब का विमोचन किया गया था. भारत में क्रिकेट के भगवान के तौर पर माने जाने वाले सचिन के खेल को लोगों ने यूं तो काफी करीब से देखा है लेकिन उनकी जीवनी को पढ़ने में भी लोगों ने काफी दिलचस्पी दिखाई है. यहां हम आज आपको बता रहे हैं कि सचिन ने अपनी आत्मकथा में किन-किन चीजों का जिक्र किया है.

सचिन अपनी आत्मकथा में लिखते हैं कि वह बचपन में क्रिकेट के साथ टेनिस में भी दिलचस्पी रखते थे. सचिन के क्रिकेटर बनने में उनके बड़े भाई अजीत तेंदुलकर का भी बड़ा योगदान है. सबसे पहले उन्होंने ही सचिन के अंदर एक क्रिकेटर देखा और फिर क्या था वो सीछे सचिन को लेकर कोच रमाकांत अचरेकर के पास पहुंच गए.

कोच रमाकांत अचरेकर का बड़ा योगदान 

इस किताब में सचिन लिखते हैं कि उन्हें देखने के बाद रमाकांत अचरेकर ने ट्रेनिंग देने से इनकार कर दिया था. इसके बाद सचिन के बड़े भाई ने अचरेकर से छुपकर सचिन के खेल को देखने का आग्रह किया. इसके बाद सचिन बिना भय के खेले और फिर ऐसा खेले कि रमाकांत अचरेकर उन्हें ट्रेनिंग देने को राजी हो गए.

सचिन को एक शानदार क्रिकेटर बनाने में रमाकांत अचरेकर का बहुत बड़ा योगदान है. सचिन अपनी किताब में लिखते हैं कि जब वह कभी प्रैक्टिस के लिए किसी कारण नहीं जा पाते थे तो अचरेकर सर खुद स्कूटर से घर उन्हें लेने आ जाते थे. सचिन कहते हैं कि अचरेकर सर का मानना था कि नेट प्रैक्टिस से अधिक जरूरी मैच खेलना है और वह अपने स्कूटर से उन्हें मैच खेलने के लिए ले जाते थे.

पहले मैच में बिना खाता खोले हुए थे आउट

सचिन के कोच रमाकांत अचरेकर खिलाड़ियों के फिटनेस को लेकर काफी सजग थे. इसी को ध्यान में रखते हुए वह सचिन को प्रैक्टिस और मैच खेलने के बाद पैड-ग्लब्स और बैट के साथ मैदान का दो चक्कर लगाने को बोलते थे. बता दें कि सचिन ने मात्र 16 साल की उम्र में अपना पहला वनडे मैच 18 दिसंबर 1989 को पाकिस्तान के खिलाफ खेला था. सचिन के लिए यह मैच अच्छा नहीं रहा था और वह बिना खाता खोले सिर्फ 2 गेंद खेलकर आउट हो गए थे. इस दौरे पर सचिन को पाकिस्तानी तेज गेंदबाज वसीम अकरम और वकार यूनुस ने काफी परेशान किया था. इसके बाद सचिन ने टीम के वरिष्ठ खिलाड़ियों से सलाह मांगी और फिर उसपर ध्यान दिया. इसके बाद सचिन ने विश्व के तमाम गेंदबाजों का सामना किया और सबकी गेंदों की जमकर धुनाई की.

हालांकि, इस किताब में एक खिलाड़ी के तौर पर सचिन ने अपनी उपलब्धियों के बारे में ही अधिक लिखा है. सचिन ने किताब में करियर के दौरान आए अप्स और डाउन के बारे में भी लिखा है. उन्होंने किताब में इस बात का भी जिक्र किया है जब साल 2004 में एक टेस्ट मैच के दौरान वह 194 रनों पर बल्लेबाजी कर रहे थे और कप्तान राहुल द्रविड़ ने पारी घोषित कर दी थी. इन चीजों के अलावा सचिन ने अपनी शादी और पत्नी अंजली का जिक्र भी किताब में किया है.

2013 में लिया क्रिकेट से संन्यास 

बता दें कि लोगों के सामने ये किताब 6 नवंबर 2014 आई थी. इस किताब के लेखन यात्रा के बारे में सचिन कहते हैं कि वह तीन सालों से इस किताब पर काम कर रहे थे तब जाकर ये लोगों के पास पहुंची. बता दें कि सचिन ने 16 नवंबर, 2013 को क्रिकेट से संन्यास लिया था. संन्यास लेने से पहले वह वनडे में 18,426 रन, टेस्ट मैच में 15921 रन बना चुके थे. सचिन पहले क्रिकेटर हैं जिन्होंने एकदिवसीय मैच में दोहरा शतक लगाया था. उनके टेस्ट और वनडे मिलाकर 100 शतक हैं और यह मुकाम हासिल करने वाले वह दुनिया के पहले क्रिकेटर हैं.

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