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PHOTOS: मतंगेश्वर महादेव मंदिर का रहस्य, हर साल बढ़ती है शिवलिंग की लंबाई, जानें कैसे पहुंची भगवान शंकर के पास मरकत मणि?

Matangeshwar Mahadev Temple: प्रति वर्ष कार्तिक माह की शरद पूर्णिमा के दिन शिवलिंग की लंबाई एक तिल के आकार के बराबर बढ़ती है. चमत्कारिक रूप से शिवलिंग पहले की तुलना में लंबा मिलता है.

Matangeshwar Mahadev Temple: प्रति वर्ष कार्तिक माह की शरद पूर्णिमा के दिन शिवलिंग की लंबाई एक तिल के आकार के बराबर बढ़ती है. चमत्कारिक रूप से शिवलिंग पहले की तुलना में लंबा मिलता है.

मतंगेश्वर महादेव मंदिर

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मध्य प्रदेश में खजुराहों के मंदिर अपनी हजार साल पुरानी स्थापत्य कला की वजह से पूरी दुनिया के लिए आकर्षण का केंद्र हैं और उन्हें यूनेस्को ने विश्व धरोहर में स्थान दिया है. इतिहास में यहां 85 मंदिरों के मौजूद होने के प्रमाण हैं लेकिन आज सिर्फ 25 मंदिर ही बचे हैं.
मध्य प्रदेश में खजुराहों के मंदिर अपनी हजार साल पुरानी स्थापत्य कला की वजह से पूरी दुनिया के लिए आकर्षण का केंद्र हैं और उन्हें यूनेस्को ने विश्व धरोहर में स्थान दिया है. इतिहास में यहां 85 मंदिरों के मौजूद होने के प्रमाण हैं लेकिन आज सिर्फ 25 मंदिर ही बचे हैं.
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इन मंदिरों में भी सिर्फ मतंगेश्वर महादेव मंदिर लोगों की आस्था का केंद्र है. मान्यता है कि मंदिर में मौजूद इस शिवलिंग की हर साल शरद पूर्णिमा के दिन एक इंच लंबाई बढ़ती है. इसे यहां के अधिकारी मेजरमेंट टेप से नापते हैं.
इन मंदिरों में भी सिर्फ मतंगेश्वर महादेव मंदिर लोगों की आस्था का केंद्र है. मान्यता है कि मंदिर में मौजूद इस शिवलिंग की हर साल शरद पूर्णिमा के दिन एक इंच लंबाई बढ़ती है. इसे यहां के अधिकारी मेजरमेंट टेप से नापते हैं.
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मतंगेश्वर महादेव मंदिर के पुजारी बाबू लाल गौतम बताते हैं कि यहां शिवलिंग 9 फीट जमीन के अंदर और उतना ही बाहर भी है. मान्यता है कि मंदिर में मौजूद इस शिवलिंग की हर साल शरद पूर्णिमा के दिन एक इंच लंबाई बढ़ती है. प्रति वर्ष कार्तिक माह की शरद पूर्णिमा के दिन शिवलिंग की लंबाई एक तिल के आकार के बराबर बढ़ती है. शिवलिंग की लंबाई नापने के लिए पर्यटन विभाग के कर्मचारी बकायदा मेजरमेंट टेप का उपयोग करते हैं. चमत्कारिक रूप से शिवलिंग पहले की तुलना में लंबा मिलता है.
मतंगेश्वर महादेव मंदिर के पुजारी बाबू लाल गौतम बताते हैं कि यहां शिवलिंग 9 फीट जमीन के अंदर और उतना ही बाहर भी है. मान्यता है कि मंदिर में मौजूद इस शिवलिंग की हर साल शरद पूर्णिमा के दिन एक इंच लंबाई बढ़ती है. प्रति वर्ष कार्तिक माह की शरद पूर्णिमा के दिन शिवलिंग की लंबाई एक तिल के आकार के बराबर बढ़ती है. शिवलिंग की लंबाई नापने के लिए पर्यटन विभाग के कर्मचारी बकायदा मेजरमेंट टेप का उपयोग करते हैं. चमत्कारिक रूप से शिवलिंग पहले की तुलना में लंबा मिलता है.
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पुजारी बाबूलाल गौतम कहते हैं कि मंदिर की विशेषता यह है कि यह शिवलिंग जितना ऊपर की तरफ बढ़ता है, उतना ही नीचे की तरफ भी बढ़ता है. शिवलिंग का यह अद्भुत चमत्कार देखने के लिए इस दिन लोगों का सैलाब मंदिर में उमड़ता है. वैसे तो यह मंदिर भक्तों से सालभर भरा रहता है लेकिन सावन माह में यहां श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है. दर्शन करने के लिए लोगों की लंबी कतार लगती है.
पुजारी बाबूलाल गौतम कहते हैं कि मंदिर की विशेषता यह है कि यह शिवलिंग जितना ऊपर की तरफ बढ़ता है, उतना ही नीचे की तरफ भी बढ़ता है. शिवलिंग का यह अद्भुत चमत्कार देखने के लिए इस दिन लोगों का सैलाब मंदिर में उमड़ता है. वैसे तो यह मंदिर भक्तों से सालभर भरा रहता है लेकिन सावन माह में यहां श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है. दर्शन करने के लिए लोगों की लंबी कतार लगती है.
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लक्ष्मण मंदिर के पास स्थित यह मंदिर 35 फीट के वर्गाकार दायरे में बना है. इसका गर्भगृह भी वर्गाकार है. प्रवेश द्वार पूरब की ओर है. मंदिर का शिखर बहुमंजिला है. ट्रेवल मैनेजर अजय कश्यप के मुताबिक इसका निर्माण काल 900 से 925 ईसवी के आसपास का माना जाता है.
लक्ष्मण मंदिर के पास स्थित यह मंदिर 35 फीट के वर्गाकार दायरे में बना है. इसका गर्भगृह भी वर्गाकार है. प्रवेश द्वार पूरब की ओर है. मंदिर का शिखर बहुमंजिला है. ट्रेवल मैनेजर अजय कश्यप के मुताबिक इसका निर्माण काल 900 से 925 ईसवी के आसपास का माना जाता है.
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चंदेल शासक हर्षदेव के काल में इस मंदिर का निर्माण हुआ था. मंदिर के गर्भगृह में विशाल शिवलिंग है, जो तकरीबन 9 फीट ऊंचा है. इसका घेरा भी लगभग 4 फीट का है. इस शिवलिंग को मृत्युंजय महादेव के नाम से भी लोग जानते हैं.
चंदेल शासक हर्षदेव के काल में इस मंदिर का निर्माण हुआ था. मंदिर के गर्भगृह में विशाल शिवलिंग है, जो तकरीबन 9 फीट ऊंचा है. इसका घेरा भी लगभग 4 फीट का है. इस शिवलिंग को मृत्युंजय महादेव के नाम से भी लोग जानते हैं.
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इतिहासकार बताते हैं कि छतरपुर जिले के खजुराहो में किसी समय 85 मंदिर होते थे, लेकिन अब कुछ ही मंदिर बचे हैं. पुरातत्व मंदिरों में मतंगेश्वर महादेव का ही एक ऐसा मंदिर है, जहां आज भी पूजा-पाठ होती है. यह मंदिर आज भी आस्था का केंद्र बना हुआ है. मतंगेश्वर महादेव मंदिर को खजुराहो में सबसे ऊंचा मंदिर माना जाता है.
इतिहासकार बताते हैं कि छतरपुर जिले के खजुराहो में किसी समय 85 मंदिर होते थे, लेकिन अब कुछ ही मंदिर बचे हैं. पुरातत्व मंदिरों में मतंगेश्वर महादेव का ही एक ऐसा मंदिर है, जहां आज भी पूजा-पाठ होती है. यह मंदिर आज भी आस्था का केंद्र बना हुआ है. मतंगेश्वर महादेव मंदिर को खजुराहो में सबसे ऊंचा मंदिर माना जाता है.
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पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान शंकर के पास मरकत मणि थी, जिसे शिव ने पांडवों के भाई युधिष्ठिर को दे दी थी. युधिष्ठिर के पास से वह मणि मतंग ऋषि तक पहुंची और उन्होंने उसे चंदेल राजा हर्षवर्मन को दे दी. मतंग ऋषि की मणि की वजह से ही इनका नाम मतंगेश्वर महादेव पड़ा, क्योंकि शिवलिंग के बीच मणि सुरक्षा की दृष्टि से जमीन में गाड़ दी गई थी. कहा जाता है कि तब से मणि शिवलिंग के नीचे ही है.
पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान शंकर के पास मरकत मणि थी, जिसे शिव ने पांडवों के भाई युधिष्ठिर को दे दी थी. युधिष्ठिर के पास से वह मणि मतंग ऋषि तक पहुंची और उन्होंने उसे चंदेल राजा हर्षवर्मन को दे दी. मतंग ऋषि की मणि की वजह से ही इनका नाम मतंगेश्वर महादेव पड़ा, क्योंकि शिवलिंग के बीच मणि सुरक्षा की दृष्टि से जमीन में गाड़ दी गई थी. कहा जाता है कि तब से मणि शिवलिंग के नीचे ही है.
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खजुराहो में मतंगेश्वर महादेव मंदिर ही एक ऐसा मंदिर है, जहां शिव की पूजा सदियों से रोजाना होती चली आ रही है. इस मंदिर की दीवारों पर पश्चिमी समृह के मंदिरों की तरह आकृतियां भी नहीं हैं. यह एक मात्र मंदिर है जो धार्मिक महत्व से विशेष स्थान रखता है. चंदेल राजाओं से इसका निर्माण पूजा-पाठ के हिसाब से किया था.  आस्था के इस केंद्र पर सावन और महाशिवरात्रि पर अपार जन सैलाब उमड़ता है.
खजुराहो में मतंगेश्वर महादेव मंदिर ही एक ऐसा मंदिर है, जहां शिव की पूजा सदियों से रोजाना होती चली आ रही है. इस मंदिर की दीवारों पर पश्चिमी समृह के मंदिरों की तरह आकृतियां भी नहीं हैं. यह एक मात्र मंदिर है जो धार्मिक महत्व से विशेष स्थान रखता है. चंदेल राजाओं से इसका निर्माण पूजा-पाठ के हिसाब से किया था. आस्था के इस केंद्र पर सावन और महाशिवरात्रि पर अपार जन सैलाब उमड़ता है.

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