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मिस्र और अन्य अरब देश क्यों अपने यहां नहीं बसा रहे फलस्तीनी शरणार्थी, आखिर किस बात का है 'डर'?

Israel-Hamas War News: इजरायल और हमास के बीच हुई जंग की वजह से फलस्तीनियों की स्थिति बिगड़ती जा रही है. वह गाजा पट्टी में ही कैद होकर रह गए हैं.

Israel-Hamas War: इजरायल और हमास के बीच 7 अक्टूबर से जंग चल रही है. इस जंग की वजह से गाजा में रहने वाले फलस्तीनियों को डर के साए में जीना पड़ रहा है. इसकी वजह ये है कि हमास को खत्म करने का मन बना चुका इजरायल, लगातार गाजा पर बमबारी कर रहा है. ऊपर से गाजा वासियों को भागकर कहीं जाने की जगह भी नहीं है. एक तरफ समुद्र और तीन तरफ से जमीन के लॉक फलस्तीनी गाजा में ही फंसकर रह गए हैं. 

गाजा की एक सीमा मिस्र से लगती है, जबकि दो तरफ की सीमा इजरायल और एक तरफ भूमध्य सागर है. बमबारी के बाद से ही दुनियाभर में इस बात की चर्चा हो रही है कि आखिर अरब मुल्कों को फलस्तीनियों की इतनी फिक्र है, तो वह उन्हें अपने यहां क्यों नहीं बसा लेते हैं. पड़ोसी मुल्क जॉर्डन और मिस्र चाहें तो फलस्तीनियों को अपने शरण दे सकते हैं. ऐसे में आइए जानते हैं कि मिस्र और अन्य अरब मुल्क फलस्तीनी शरणार्थियों को क्यों अपने यहां नहीं बसाना चाहते हैं.

क्यों फलस्तीनी शरणार्थियों को नहीं बसाना चाहते अरब मुल्क? 

फलस्तीन के लिए सभी अरब मुल्क आपको एक साथ खड़े हुए नजर आ जाएंगे. मगर जब फलस्तीनी लोगों को अपने यहां बुलाने की बात होती है, तो हर मुल्क अपने हाथ पीछे खींच लेता है. इसकी तीन प्रमुख वजहे हैं. आइए इन तीनों वजहों के बारे में जानते हैं. 

पहली वजह: फलस्तीनी लोग लंबे समय से विस्थापित रहे हैं. इसकी शुरुआत 1948 में हुई, जब इजरायल के बनने के बाद 7.5 लाख फलस्तीनियों को विस्थापित होना पड़ा. फिर 1967 युद्ध में इजरायल ने गाजा और वेस्ट बैंक पर कब्जा किया, तो तीन लाख फलस्तीनी विस्थापित हुए, जिनमें से ज्यादातर जॉर्डन चले गए. आज इनकी तादाद 60 लाख हो गई हैं. इनमें से ज्यादातर वेस्ट बैंक, गाजा, लेबनान, सीरिया और जॉर्डन जैसे मुल्कों में कैंपों में रह रहे हैं. कुछ पश्चिमी मुल्कों में भी चले गए. 

इजरायल इन शरणार्थियों को अब वापस अपने घरों की ओर लौटने नहीं देता है. जब भी शांति समझौते में इन फलस्तीनियों के आकर बसने की बात होती है, तो इजरायल इससे इनकार कर देता है. उसका कहना है कि इसकी वजह से उसके देश में यहूदी बहुल आबादी को खतरा होगा. मिस्र समेत अरब मुल्कों को लगता है कि अगर वे गाजा के फलस्तीनियों को अपने यहां बुला लेंगे, तो शांति स्थापित होने के बाद इजरायल उन्हें फिर से गाजा में लौटने नहीं देगा. 

दूसरी वजह: इजरायली सेना ने कहा है कि जितने भी लोग युद्ध शुरू होने के बाद भागकर गाजा के उत्तरी हिस्से से दक्षिणी हिस्से में गए हैं. उन्हें जंग खत्म होने के बाद लौटने का मौका मिलेगा. हालांकि, अरब मुल्कों को इजरायल की बात पर भरोसा नहीं है. मिस्र समेत इजरायल के कई सारे पड़ोसी देशों में पहले से ही ढेर सारे शरणार्थी मौजूद हैं. इस वजह से वह और ज्यादा शरणार्थी लेने के मूड में नहीं हैं. ऊपर से उनकी आर्थिक स्थिति भी उन्हें इसकी इजाजत नहीं देती है. 

अरब देशों और कई सारे फलस्तीनियों को ये भी लगता है कि इजरायल गाजा, वेस्ट वैंक और पूर्वी यरुशलम से फलस्तीनियों को हटाकर आजाद देश बनाने की उनकी मांग को खत्म कर सकता है. मिस्र के राष्ट्रपति अब्देल फतह अल-सिसी ने खुद कहा है कि गाजा से पलायन का मकसद फलस्तीन की मांग को खत्म करना है. जब फलस्तीनी ही वेस्ट बैंक और गाजा में नहीं रहेंगे, तो उनके लिए अलग देश बनाने की मांग भी ठंडे बस्ते में चली जाएगी. 

तीसरी वजह: गाजा से बड़ी संख्या में पलायन की वजह से मिस्र को इस बात का भी डर सता रहा है कि कहीं इसकी वजह से हमास के लड़ाके उसके देश में नहीं आ जाएं. इसकी वजह से मिस्र का सिनाई इलाका अस्थिर हो सकता है, जहां दशकों तक आतंकियों से लड़कर मिस्र ने शांति स्थापित की है. मिस्र पहले ही हमास पर इस बात का आरोप लगा चुका है कि उसने आतंकियों के साथ लड़ाई में दहशतगर्दों की मदद की थी. इस वजह से दोनों के रिश्ते भी ठीक नहीं हैं. 

मिस्र को इस बात का भी डर सता रहा है कि अगर फलस्तीनी उसकी जमीन पर आकर रहते हैं, तो हमास के लड़ाके यहां से इजरायल पर हमला कर सकते हैं. इसकी वजह से इजरायल और मिस्र के रिश्तों पर असर पड़ सकता है. इजरायल और मिस्र के बीच 1979 में ही शांति समझौता हुआ था. सिनाई वो इलाका है, जहां पर फलस्तीनियों को बसाने की बात कही जा रही है. मगर डर है कि इस इलाके को हमास अपना बेस बना सकता है. 

यह भी पढ़ें: अमेरिका के लिए दो युद्ध को सपोर्ट करना बना 'गले की फांस', यूक्रेन-इजरायल की मदद करने में क्यों हो रही अब दिक्कत?

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