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लोकसभा चुनाव: अंतिम चरण में प्रधानमंत्री मोदी और कैबिनेट सहयोगियों की साख दांव पर

बता दें कि अंतिम चरण में राज्य की जिन 13 सीटों पर मतदान होना है, उनमें से 11 सीटें बीजेपी के पास, एक सीट उसकी सहयोगी अपना दल और एक सीट समाजवादी पार्टी (सपा) के पास है. अब इन्हें संजोने की जिम्मेदारी मोदी के कंधों पर है.

 लखनऊ: लोकसभा चुनाव के अंतिम चरण में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सहित उनके दो कैबिनेट सहयोगियों और एक पूर्व कैबिनेट सहयोगी की साख दांव पर है. खास बात यह कि ये चारों सीटें एक साथ लगी हुई हैं. सातवें चरण में मोदी, रेल राज्यमंत्री मनोज सिन्हा, स्वास्थ्य मंत्री अनुप्रिया पटेल और पूर्व केंद्रीय मानव संसाधन राज्य मंत्री बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष महेन्द्र नाथ पाण्डेय के विकासवाद की परीक्षा होनी है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी वाराणसी सीट से मैदान में हैं. इसके अलावा मनोज सिन्हा गाजीपुर से, अनुप्रिया पटेल मिर्जापुर से और महेंद्र नाथ पांडेय चंदौली से उम्मीदवार हैं. ये तीनों सीटें वाराणसी से लगी हुई हैं. नरेंद्र मोदी के बीते पांच सालों में बनारस में किए गए विकास कार्यो की परीक्षा भी होनी है.

मोदी ने वाराणसी में 40 हजार करोड़ रुपये के काम कराए हैं. सबसे ज्यादा प्रचारित काम विश्वनाथ कॉरिडोर माना जा रहा है. हाल ही में उन्होंने रोडशो कर बनारस में अपनी ताकत का अहसास भी कराया था. विपक्ष की ओर से उनके खिलाफ कोई बड़ा प्रत्याशी न खड़ा होना उनकी मजबूती का आधार बन रहा है. कांग्रेस ने अजय राय को दोबारा प्रत्याशी बनाया है, जिनकी 2014 के चुनाव में जमानत जब्त हो गई थी. सपा-बसपा गठबंधन से शालिनी यादव चुनाव मैदान में हैं. इसके अलावा बहुबाली अतीक अहमद निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में मैदान में हैं, और राजग से नाराज सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (सुभासपा) के सुरेंद्र प्रताप को लेकर कुल 31 प्रत्याशी वाराणसी में ताल ठोक रहे हैं.

अंतिम चरण में राज्य की जिन 13 सीटों पर मतदान होना है, उनमें से 11 सीटें बीजेपी के पास, एक सीट उसकी सहयोगी अपना दल और एक सीट समाजवादी पार्टी (सपा) के पास है. अब इन्हें संजोने की जिम्मेदारी मोदी के कंधों पर है.

गाजीपुर से  रेल व संचार राज्यमंत्री मनोज सिन्हा मैदान में

गाजीपुर से रेल व संचार राज्यमंत्री मनोज सिन्हा बीजेपी से एक बार फिर चुनाव लड़ रहे हैं. तीन बार सांसद और एक बार मंत्री रह चुके सिंह ने बीते पांच वर्षो में गाजीपुर सहित अन्य जिलों में रेलवे सहित अन्य विकास कार्य करवाए हैं. यहां के लोगों का मानना है कि अब तक देश में कोई भी रोड सह रेल ब्रिज बनाने में 10 वर्ष से कम समय नहीं लगा है, लेकिन गंगा पर बन रहा रोड सह रेल ब्रिज रिकॉर्ड साढ़े तीन वर्ष में तैयार होने की ओर अग्रसर है. गाजीपुर से बड़े शहरों के लिए गाड़ियां शुरू हो गई हैं.

मनोज सिन्हा ने स्वास्थ्य क्षेत्र पर भी ध्यान दिया है. गाजीपुर में मेडिकल कॉलेज बन रहा है, लेकिन चुनाव नजदीक आते ही सुभासपा के साथ छोड़ने और अपना प्रत्याशी खड़ा करने से राजनीतिक समीकरण थोड़ा बदला है. इस क्षेत्र में राजभर समाज का बड़ा वोट बैंक है. यह सिन्हा को नुकसान पहुंचा सकता है. इनके खिलाफ गठबन्धन ने अफजल अंसारी को प्रत्याशी बनाया है.

इस लोकसभा क्षेत्र में लगभग दो लाख मुस्लिम मतदाता हैं. अंसारी की क्षेत्र में अच्छी पकड़ मानी जाती है. अफजल एक बार पहले भी गाजीपुर से सांसद रह चुके हैं. वह बाहुबली माफिया मुख्तार अंसारी के भाई हैं. कांग्रेस ने यहां से अजीत कुशवाहा को मैदान में उतारा है. इस लोकसभा सीट पर सवर्ण मतदाताओं की संख्या निर्णायक मानी जाती है. ओबीसी, एससी और अल्पसंख्यकों की भी ठीक-ठाक संख्या है. ऐसे में मनोज सिन्हा के लिए लड़ाई कठिन बताई जा रही है.

बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष महेन्द्र नाथ पाण्डेय भी ठोंक रहे हैं ताल

बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष महेन्द्र नाथ पाण्डेय ने 2014 के चुनाव में बनारस से लगी सीट चंदौली पर पार्टी का 15 सालों का सूखा समाप्त किया था. इसके बाद से ही वह मोदी-शाह की नजर में थे. चंदौली पहले भी बीजेपी का गढ़ माना जाता रहा है. यहां से 1991, 1996 और 1999 के आम चुनावों बीजेपी के आनंद रत्न मौर्या ने लगातार तीन जीत दर्ज की थी. लेकिन 1999 और 2004 के चुनाव में आनंद रत्न का जनाधार कम हो गया और वह दूसरे नंबर पर रहे. 2014 के चुनाव में बसपा के अनिल कुमार मौर्य को मात देकर महेंद्र नाथ ने चंदौली में फिर से कमल खिलाया था.

बीजेपी का प्रदेश अध्यक्ष होने के नाते संगठन पर उनकी पकड़ है. साथ ही केन्द्रीय राज्यमंत्री रहते हुए इलाके में उन्होंने विकास कार्य भी करवाया है. मगर सपा-बसपा गठबंधन ने उनके सामने संजय चौहान को उम्मीदवार बनाया है. इस बार जानबूझकर गठबंधन ने सवर्ण प्रत्याशी मैदान में उतारा है. जबकि कांग्रेस ने शिवकन्या कुशवाहा पर दांव लगाया है.

अपना दल की अध्यक्ष अनुप्रिया पटेल मिर्जापुर से हैं उम्मीदवार

अपना दल की अध्यक्ष अनुप्रिया पटेल ने मिर्जापुर से 2014 में मोदी लहर में जीत हासिल की थी. 2016 में अनुप्रिया पटेल को मंत्रिमंडल में जगह दी गई. उन्हें स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय में राज्य मंत्री बनाया गया. उनके मंत्री हो जाने की वजह से इस सीट का महत्व इस बार और ज्यादा बढ़ गया है. पांच सालों के विकास कार्यो के साथ ही जातिगत वोटों के सहारे वह चुनाव मैदान में हैं. कुर्मी वोटर और बीजेपी के पारंपरिक वोट से उन्हें अच्छी खासी उम्मीद है. लेकिन सपा-बसपा गठबंधन यहां भी उनके लिए मुश्किल खड़ा कर रहा है.

मछलीशहर से बीजेपी सांसद रहे राम चरित्र निषाद को गठबंधन ने मिर्जापुर से प्रत्याशी बनाया है. वहीं कांग्रेस ने इस सीट पर कमला पति त्रिपाठी की विरासत संभाल रहे ललितेश पति त्रिपाठी को चुनाव मैदान में उतारा है.

वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक प्रेमशंकर मिश्रा के अनुसार, 2014 में नरेन्द्र मोदी वाराणसी से, मुलायम सिंह यादव आजमगढ़ से उम्मीदवार थे. जिसके कारण सबकी निगाहें पूर्वाचल पर टिकी थीं. अब 2019 में पूर्वाचल के परिणाम और भी महत्वपूर्ण हो चुके हैं, क्योंकि मोदी सहित बीजेपी व उसके सहयोगी दलों का प्रोफाइल इन सालों में बहुत बदल चुका है. महेन्द्र पाण्डेय, अनुप्रिया पटेल, मनोज सिन्हा या खुद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के गृहक्षेत्र गोरखपुर के परिणाम इन चेहरों की व्यक्तिगत प्रतिष्ठा तय करेंगे.

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