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परिवार के झगड़े ने 2017 में पार्टी को पछाड़ा, अब 2019 से पहले मुलायम-शिवपाल का दर्द छलका

बता दें 2017 में विधानसभा चुनाव के दौरान पार्टी के भीतर का कलह और रार ने खूब सुर्खियां बटोरी और चुनाव में समाजवादी पार्टी को इसकी कीमत भी चुकानी पड़ी. विश्लेषक कहते हैं कि इससे पार्टी को बड़ा नुकसान हुआ.

लखनऊ: समाजवादी पार्टी के अंदर की रार और पारिवारिक तकरार इन दिनों चर्चा का विषय है. पहले पिता मुलायम सिंह ने अपना दर्द बयान किया तो छोटे भाई शिवाल का दर्द सार्वजनिक तौर पर छलक उठा. कभी मुलायम सिंह यादव भावुक हो जाते हैं तो कभी शिवपाल यादव भी अपना दर्द बयान करने से गुरेज नहीं करते. कभी पार्टी के सर्वेसर्वा रहे मुलायम यहां तक गिला कर बैठते हैं कि उनका अब कोई सम्मान नहीं करता. तो छोटे भाई शिवपाल कहते हैं कि वो डेढ़ साल से पार्टी में पद के लिए इंतजार कर रहे हैं लेकिन लगातार उनकी उपेक्षा की जा रही है.

आपको बता दें 2017 में विधानसभा चुनाव के दौरान पार्टी के भीतर का कलह और रार ने खूब सुर्खियां बटोरी और चुनाव में समाजवादी पार्टी को इसकी कीमत भी चुकानी पड़ी. विश्लेषक कहते हैं कि इससे पार्टी को बड़ा नुकसान हुआ.

मुलायम का दर्द- आज मेरा कोई सम्‍मान नहीं करता, लेकिन शायद मेरे मरने के बाद के बाद करे

हाल ही में मुलायम सिंह यादव का दर्द एक कार्यक्रम के दौरान फिर से बाहर आ गया. उन्होंने कहा, 'आज मेरा कोई सम्‍मान नहीं करता, लेकिन शायद मेरे मरने के बाद के बाद लोग ऐसा करें.' मुलायम सिंह ने भाषण के दौरान कहा कि राम मनोहर लोहिया भी कहा करते थे कि जिंदा रहते कोई सम्‍मान नहीं करता है. बता दें कि पिछले दिनों वो कुछ पारिवारिक विवाद से जूझ रहे थे. समाजवादी पार्टी में टिकट के बंटवारे और चुनाव चिन्ह को लेकर तकरार की स्थिति बनी हुई थी.

पहले भी ऐसे बयान दे चुकें हैं मुलायम बता दें कि मुलायम सिंह पहले भी ऐसे बयान दे चुके हैं. यही नहीं उन्‍होंने अपने बेटे अखिलेश यादव को भी कई बार नसीहत दी है. पिछले साल पार्टी नेतृत्‍व को लेकर हुए विवाद के दौरान मुलायम सिंह ने कहा था कि पिता होने के नाते उनका आशीर्वाद बेटे अखिलेश के साथ है, लेकिन वह उनके फैसलों से सहमत नहीं हैं.

शिवपाल यादव ने पार्टी पर लगाया अपनी उपेक्षा का आरोप वहीं चाचा शिवपाल की बात करें तो उन्होंने भी पिछले दिनों अपना दर्द बयां किया. शिवपाल यादव ने पार्टी में अपनी उपेक्षा का बड़ा आरोप लगाया. उन्होंने कहा कि मुझे पार्टी में कोई जिम्मेदार पद नहीं दिया गया और डेढ़ साल बीत जाने के बाद भी मैं इंतजार ही कर रहा हूं. अब कोई दूसरा रास्ता खोजना पड़ेगा. इस बयान से साफ है कि एसपी में चाचा-भतीजे यानी अखिलेश और शिवपाल के बीच सबकुछ सही होने के कोई आसार नहीं हैं.शिवपाल यादव ने जब ये कहा कि मुझे पार्टी में ज़िम्मेदारी नहीं मिल रही है, इंतजार करते करते डेढ़ साल हो चुका है. उसके साथ ही ये भी कहा कि आखिर कितनी उपेक्षा बर्दाश्त की जाये, सहने की भी सीमा होती है. फिर भी मैं चाहता हूँ कि सब मिल कर लड़ें.

2017 में यूपी के चुनावों से पहले मुलायम सिंह यादव, शिवपाल यादव और अखिलेश के बीच पारिवारिक मतभेद हो गए थे कुछ समय पहले तक राजनीतिक हलकों में ये चर्चा थी कि शिवपाल यादव को राष्ट्रीय महासचिव का पद दिया जा सकता है लेकिन ऐसा नहीं हुआ. दरअसल साल 2017 में यूपी के चुनावों से पहले मुलायम सिंह यादव, शिवपाल यादव और अखिलेश के बीच पारिवारिक मतभेद हो गए थे जिसका खामियाजा समाजवादी पार्टी को चुनावों में भी भुगतना पड़ा था. हालांकि पिछले कुछ समय से शिवपाल यादव की तरफ से अखिलेश के साथ रिश्ते सुधारने की कुछ कवायद हुई थी लेकिन इसका फायदा अभी तक शिवपाल यादव को मिलता नजर नहीं आ रहा है.

समाजवादी पार्टी के ऑफ़िस में शिवपाल यादव के लिए जगह नहीं हाल ही में सूत्रों के हवाले से खबर आई थी कि शिवपाल यादव कांग्रेस और बीजेपी दोनों ही पार्टियों के संपर्क में हैं. उनके करीबियों की मानें तो शिवपाल यादव अगला लोकसभा चुनाव लड़ने के मूड में हैं. झंडा और बैनर अभी तय नहीं है लेकिन ऐसा माना जा रहा है कि समाजवादी पार्टी में उनके लिए रास्ता अब बंद हो चुका है. समाजवादी पार्टी के ऑफ़िस में उनके लिए कोई जगह भी बची नहीं है.

शिवपाल ने कहा था ‘बड़ों’ की बात मानी होती तो दोबारा उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बनते अखिलेश समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता शिवपाल सिंह यादव ने कहा था कि अगर एसपी अध्यक्ष अखिलेश यादव ने ‘बड़ों’ की बात मानी होती तो वह दोबारा उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बन जाते. अखिलेश के चाचा और पार्टी में कभी उनके प्रतिद्वंद्वी रहे शिवपाल ने कहा कि अखिलेश और उनके चचेरे भाई सांसद धर्मेन्द्र यादव को उन्होंने गोद में खिलाया, परवरिश की, यहां तक कि उनकी शादी भी की, लेकिन युवा पीढ़ी अब किसी की नहीं सुनती है.

उन्होंने कहा,"अगर बड़ों की बात मानी गई होती तो आज प्रदेश में एसपी की सरकार होती और अखिलेश मुख्यमंत्री होते और बिहार में भी एसपी सरकार बनी होती. इसलिए हमारी नीचे स्तर तक के पदाधिकारियों के लिए यही सलाह है कि आपस मे सभी एकजुट रहे और लोगों को भी एकजुट करें."

अभी भी सक्रिय हैं शिवपाल यादव शिवपाल यादव अब भले ही समाजवादी पार्टी के एक सामान्य विधायक भर रह गए हैं. लेकिन उनकी सक्रियता कभी कम नहीं हुई. हर हफ़्ते वे अपने गृह जिले इटावा का दौरा करते हैं यूपी के अलग अलग इलाक़ों में शिवपाल यादव किसी न किसी बहाने जाते रहते हैं. समर्थकों से भेंट मुलाक़ात होती रहती है.अब तो वे लगातार लखनऊ के लोहिया ट्रस्ट में भी बैठते हैं समाजवादी पार्टी के ऑफ़िस में उनके लिए कोई जगह तो बची नहीं है. इसके बग़ल में ही लोहिया ट्रस्ट का दफ़्तर है. यहां हर दिन वे दो तीन घंटे दरबार लगाते हैं.

यूपी के अलग अलग हिस्सों से आए लोगों से मिलते मिलाते हैं. मुलायम सिंह यादव जब पहली बार यूपी के सीएम बने थे तो ये ट्रस्ट बना था. शिवपाल यादव इस ट्रस्ट के सचिव हैं. पिछले साल रामगोपाल यादव समेत रामगोविंद चौधरी और अहमद हसन जैसे अखिलेश के समर्थकों को चुन चुन कर लोहिया ट्रस्ट से बाहर कर दिया गया था. अब ये ट्रस्ट शिवपाल यादव और उनके समर्थकों का नया ठिकाना बन गया है.

अखिलेश यादव से संबंध ठीक करने की शिवपाल की हर कोशिश हुई नाकाम

शिवपाल यादव ने समाजवादी पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव से संबंध ठीक करने की बहुत कोशिशें की. मुलायम सिंह यादव के कहने पर उन्होंने ये सब किया. लेकिन सभी प्रयास बेकार साबित हुए. राज्यसभा चुनाव के दौरान लखनऊ के होटल ताज में दो बार डिनर पार्टी हुई थी. शिवपाल दोनों ही मौक़ों पर मौजूद रहे. पहले दिन डिनर पार्टी विधायक राकेश प्रताप सिंह ने दी थी. शिवपाल तय समय पर पहुंचे और अखिलेश यादव को गले भी लगाया था.

लोगों ने समझा सारे गले शिकवे दूर हो गए हैं. जया बच्चन राज्य सभा की उम्मीदवार बनाई गई थीं. शिवपाल यादव दूसरे दिन भी डिनर में शामिल हुए. अखिलेश के अनुरोध पर समाजवादी पार्टी के लिए वोट भी किया. इसी साल लखनऊ में समाजवादी पार्टी के ईद मिलन समारोह में भी शिवपाल पहुंचे थे. पहले ये बात सामने आई थी कि आगरा में पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के बाद शिवपाल को महासचिव बना दिया जाएगा. वे दिल्ली जाकर राजनीति करेंगे. लेकिन ऐसा तो कुछ हुआ नहीं.अखिलेश और शिवपाल के बीच की दूरियां ख़त्म नहीं हुईं.

समाजवादी पार्टी के प्रधान महासचिव रामगोपाल यादव के जन्म दिन पर भी नहीं बन पाई बात फिर मौक़ा आया समाजवादी पार्टी के प्रधान महासचिव रामगोपाल यादव के जन्म दिन का. रामगोपाल और शिवपाल रिश्ते में चचेरे भाई लगते हैं. मुलायम सिंह के घर में मचे घमासान ते दौरान दोनों अलग अलग गुटों में थे. शिवपाल अपने बड़े भाई मुलायम के साथ रहे. रामगोपाल यादव ने अपने भतीजे अखिलेश का साथ दिया. लेकिन रामगेपाल के जन्म दिन पर इस बार सबसे पहले शिवपाल ही उन्हें बधाई देने पहुंचे. रामगोपाल ने भी बर्थ डे केक काट कर सबसे पहले शिवपाल को ही खिलाया . ऐसा लगा राम और भरत का मिलन हो रहा है. लोगों को लगा कि समाजवादी पार्टी में सब कुछ ठीक होने लगा है . लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ. रिश्तों की तनातनी क़ायम रही.

शिवपाल यादव के समर्थकों ने बना लिया सेकुलर मोर्चा इसी बीच शिवपाल यादव के समर्थकों ने सेकुलर मोर्चा बना लिया. समाजवादी पार्टी के अल्पसंख्यक मोर्चा के अध्यक्ष रह चुके फ़रहत खान इसके कर्ता धर्ता हैं. कई जिलों में इस मोर्चा का गठन भी हो चुका है. राज्य भर के शिवपाल यादव के समर्थकों को इस मोर्चा से जोड़ा जा रहा है. जन संपर्क अभियान कर शिवपाल यादव भी अपनी राजनैतिक ताक़त तौल रहे हैं. यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ से भी उनके अच्छे रिश्ते रहे हैं. दोनों कई बार मिल भी चुके हैं. महीनों से हाशिए पर चल रहे अमर सिंह की बीजेपी में पूछ बढ़ गई है. हाल में ही लखनऊ के एक कार्यक्रम में पीएम नरेन्द्र मोदी ने भी अमर सिंह का ज़िक्र किया. अमर सिंह और शिवपाल यादव के भाई वाले रिश्ते को कौन नहीं जानता है. कुल मिला कर बात यही है कि चाचा और भतीजे का मिलन मुश्किल ही नहीं, नामुमकिन भी है.

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