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जनवरी की ठंड, सरयू का जल और 265 सीटों का संकल्प; अयोध्या फिर बनेगी बीजेपी का 'गेम चेंजर'

बाबरी विवाद बीजेपी के लिए फायदेमंद साबित हुआ. 7 साल के भीतर ही बीजेपी की सीटें करीब दोगुनी हो गई. 1989 के चुनाव में बीजेपी को 85 सीटें मिली थी.1996 में यह संख्या 161 पर पहुंच गई.

15 दिसंबर 2023 को 40 महीने के भीतर अयोध्या में भव्य राम मंदिर बनकर तैयार हो जाएगा. इसके बाद मंदिर में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी करेंगे. इसकी रूपरेखा तैयार की जा रही है.

प्राण-प्रतिष्ठा के बहाने राम जन्मभूमि ट्रस्ट ने पूरे देश में 7 दिनों का उत्सव मनाने की बात कही है.. 2024 के मकर संक्रांति (14 जनवरी) के तुरंत बाद इस आयोजन के होने की उम्मीद है. 

सियासी चर्चा है कि प्राण प्रतिष्ठा से पहले प्रधानमंत्री सरयू में डूबकी लगा सकते हैं. काशी कॉरिडोर के उद्घाटन से पहले प्रधानमंत्री ने गंगा में भी डूबकी लगाई थी. 

धर्म से इतर इस आयोजन के सियासी मायने भी निकाले जा रहे हैं. वजह है- जन्मभूमि आंदोलन का इतिहास और 2024 का लोकसभा चुनाव. 1990 के दशक में रामजन्मभूमि आंदोलन के जरिए ही बीजेपी देश की सियासत में मजबूत पैठ बना ली थी.


जनवरी की ठंड, सरयू का जल और 265 सीटों का संकल्प; अयोध्या फिर बनेगी बीजेपी का 'गेम चेंजर

बीजेपी को 2 सीट से 302 पर पहुंचाने में यह मुद्दा काफी अहम रहा था. ऐसे में चर्चा तेज है कि अब रामलला के प्राण-प्रतिष्ठा से बीजेपी और खुद प्रधानमंत्री मोदी पुराना इतिहास दोहराना चाहते हैं?

कारसेवा ने बदल दी बीजेपी की सियासी किस्मत
राममंदिर का विवाद 1988 में जोर पकड़ लिया, लेकिन उस वक्त जनता दल के साथ होने की वजह से बीजेपी इस मुद्दे पर शांत रही. वीपी सिंह की सरकार में मंडल कमीशन लागू होने के बाद बीजेपी कमंडल (मंदिर आंदोलन) के रास्ते पर चल निकली. 

1992 में वीएचपी, बजरंग दल ने कारसेवा करने का ऐलान किया. बीजेपी ने भी इसका समर्थन किया. उस वक्त उत्तर प्रदेश में कल्याण सिंह की और केंद्र में पीवी नरिसम्हा राव की सरकार थी. कारसेवक पुलिस बैरिकेड को तोड़ते हुए अयोध्या पहुंच गए.

देखते ही देखते अयोध्या स्थित बाबरी मस्जिद को कारसेवकों ने गिरा दिया. बाबरी विध्वंस की नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए लाल कृष्ण आडवाणी ने लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष के पद से इस्तीफा दे दिया. बाद में उन्हें इस मामले में आरोपी भी बनाया गया.


जनवरी की ठंड, सरयू का जल और 265 सीटों का संकल्प; अयोध्या फिर बनेगी बीजेपी का 'गेम चेंजर

बाबरी विवाद बीजेपी के लिए फायदेमंद साबित हुआ. 1989 के चुनाव में बीजेपी को 85 सीटें मिली थी. 1991 में यह संख्या बढ़कर 120 हो गई. 120 सीट लाकर बीजेपी देश की दूसरी सबसे  बड़ी पार्टी बन गई.

1996 में बीजेपी देश की सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी. बीजेपी को लोकसभा की 161 सीटों पर जीत मिली. पहली बार पार्टी की ओर से अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री बने. हालांकि, 13 दिनों में ही सरकार गिर गई.

1996 में बीजेपी को मध्य प्रदेश, बिहार, हरियाणा और महाराष्ट्र समेत 6 राज्यों में जबर्दस्त जीत मिली. जीत के पीछे राममंदिर आंदोलन को फैक्टर माना गया. बीजेपी ने घोषणापत्र में राममंदिर निर्माण का वादा किया था. 


जनवरी की ठंड, सरयू का जल और 265 सीटों का संकल्प; अयोध्या फिर बनेगी बीजेपी का 'गेम चेंजर

प्राण-प्रतिष्ठा यूपी में, पर नजर 8 राज्यों की 265 सीट पर
बाबरी विवाद के बाद जिन राज्यों में बीजेपी को फायदा मिला था, उन राज्यों की बात अभी करें तो बीजेपी की स्थिति 2019 की तुलना में काफी कमजोर है. राजनीतिक जानकारों का कहना है कि बीजेपी प्राण-प्रतिष्ठा के बहाने 2 चीजों को एक साथ साधने की कोशिश कर रही है. 

  • राम मंदिर बनाने का जो वादा घोषणापत्र में किया गया था, उसे पूरा कर लिया गया है.
  • सरकार हिंदुत्व से जुड़े कामों को आगे भी बढ़ चढ़कर पूरा करने में कोताही नहीं बरतेगी.

इसके इतर 8 राज्यों की 265 सीट साधने की कोशिश के रूप में भी इस कदम को देखा जा रहा है. ऐसे में आइए जानते हैं, उन राज्यों की कहानी और वहां बीजेपी की मौजूदा स्थिति.

1. बिहार- बाबरी विवाद के बाद बीजेपी को सबसे ज्यादा फायदा बिहार में ही मिला. उस वक्त बीजेपी 5 से 18 सीटों पर पहुंच गई. 2019 में बिहार में बीजेपी को 17 सीटें मिली थी. उस वक्त बीजेपी और जेडीयू का बिहार में गठबंधन था. 

2019 में बीजेपी को सिर्फ 23 प्रतिशत वोट मिले. 2024 का सिनेरियो पूरी तरह से बदल चुका है. बिहार में आरजेडी, जेडीयू और कांग्रेस समेत 7 पार्टियों का गठबंधन है. इन 7 पार्टियों के पास 55 प्रतिशत के आसपास वोट है.

ऐसे में 2024 में बीजेपी के लिए बिहार की राह आसान नहीं है. बिहार में लोकसभा की कुल 40 सीटे हैं, जो समीकरण खराब करने के लिए काफी है. 

2. झारखंड- 1996 में बाबरी विवाद के बाद हुए चुनाव में झारखंड बिहार का हिस्सा था और झारखंड हिस्से में बीजेपी को जबरदस्त जीत मिली थी. 2019 में भी बीजेपी झारखंड की 14 में से 11 सीटों पर जीत दर्ज की थी. 

हालांकि, बीजेपी के लिए इस बार राह आसान नहीं है. झारखंड में जेएमएम, कांग्रेस, आरजेडी का मजबूत गठबंधन है. साथ ही ओल्ड पेंशन स्कीम और खतियानी का मुद्दा भी बीजेपी के खिलाफ है. 

वोट फीसदी के लिहाज से देखे तो बीजेपी की स्थिति झारखंड में पिछले चुनाव की तुलना में कमजोर है. इस बार पार्टी की राज्य में सरकार भी नहीं है.


जनवरी की ठंड, सरयू का जल और 265 सीटों का संकल्प; अयोध्या फिर बनेगी बीजेपी का 'गेम चेंजर

3. कर्नाटक- बाबरी विवाद के बाद बीजेपी को कर्नाटक में भी फायदा मिला था. कर्नाटक दक्षिण का एक मात्र राज्य था, जहां उस वक्त भी बीजेपी राममंदिर मुद्दे को भुनाने में सफल रही थी. बीजेपी को 1996 में कर्नाटक की 6 सीटों पर जीत मिली थी. 

2019 में भी बीजेपी कर्नाटक में बढ़िया परफॉर्मेंस करने में कामयाब रही थी. पार्टी को 28 में से 25 सीटों पर जीत मिली थी, लेकिन अब हालात काफी बदल गए हैं. हाल ही में बीजेपी को कर्नाटक में कांग्रेस ने पटखनी दी है.

कर्नाटक में जीत के बाद कांग्रेस ने 2024 का बिगुल फूंक दिया है. कांग्रेस ने 20-22 सीटें जीतने का लक्ष्य कर्नाटक में रखा है. कांग्रेस अगर अपनी रणनीति में कामयाब हो जाती है तो बीजेपी को बड़ा नुकसान संभव है.

4. मध्य प्रदेश- सियासी गलियारों में मध्य प्रदेश को हिंदुत्व का प्रयोगशाला कहा जाता है. बाबरी विवाद के बाद बीजेपी को यहां भी जबरदस्त जीत मिली थी. 1996 में बीजेपी 12 से 27 सीटों पर पहुंच गई.

बात 2019 की करें तो मोदी और शिवराज के चेहरे के सहारे बीजेपी मध्य प्रदेश की 29 में से 28 सीट जीतने में कामयाब रही थी, लेकिन इस बार स्थिति उलट है. मध्य प्रदेश बीजेपी में गुटबाजी हावी है. सरकार के खिलाफ एंटी इनकंबैंसी भी है. 

राम मंदिर के सहारे बीजेपी फिर से मध्य प्रदेश में हिंदुत्व के मुद्दे को हावी रखना चाहती है, जिससे लड़ाई आसानी से जीती जा सके. मंदिर आंदोलन के दौरान मध्य प्रदेश की फायरब्रांड नेता उमा भारती ने बड़ी भूमिका निभाई थी.

5. छत्तीसगढ़- 1996 के चुनाव में छत्तीसगढ़ मध्य प्रदेश का हिस्सा था. बीजेपी को आदिवासी बेल्ट में भी काफी फायदा मिला था. 1996 में बीजेपी रायगढ़, जांजगीर, दुर्ग जैसे सीटों पर जीतने में कामयाब हुई थी. 

2019 के चुनाव में भी बीजेपी ने छत्तीसगढ़ की 11 में से 9 सीट जीतने में सफल हुई थी, लेकिन इस बार राह आसान नहीं है. बड़े नेता छत्तीसगढ़ में पार्टी छोड़ रहे हैं. गुटबाजी भी चरम पर है और पार्टी के पास मजबूत लोकल लीडर की कमी है.

ऐसे में बीजेपी के लिए यहां की 9 सीट बचाना काफी चुनौतीपूर्ण है. 

6. हरियाणाा- बाबरी विवाद ने हरियाणा में बीजेपी की जड़ें जमाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. 1996 से पहले हरियाणा की लड़ाई जनता दल और कांग्रेस के बीच होती थी, लेकिन 1996 के चुनाव में बीजेपी ने सबको चौंका दिया. उस वक्त बीजेपी को 4 सीटें मिली थी.

हरियाणा में लोकसभा की कुल 10 सीटे हैं. 2019 के चुनाव में बीजेपी को सभी 10 सीटों पर जीत मिली थी, लेकिन लोकसभा के बाद हुए विधानसभा चुनाव में बीजेपी को झटका लगा था. पार्टी के 7 सीट कम हो गए थे. 

2024 में भी हरियाणा की राह बीजेपी के लिए आसान नहीं है. अगर विपक्षी एका हरियाणा में बनता है तो कांग्रेस के साथ इनेलो भी गठबंधन में शामिल हो सकती है. ऐसे में बीजेपी को यहां भी एंटी इनकंबैंसी को खत्म करने के लिए एक बड़ा मुद्दा चाहिए.

7. उत्तर प्रदेश- बाबरी विवाद का सबसे अधिक फायदा बीजेपी को उत्तर प्रदेश में ही हुआ. बीजेपी 1996 में उत्तर प्रदेश में 52 सीट जीतने में कामयाब हुई थी. यूपी के अवध और पूर्वांचल में बीजेपी ने एकतरफा जीत दर्ज की थी.

2014 और 2019 के चुनाव में भी बीजेपी को यहां बंपर जीत मिली. बीजेपी ने भव्य राम मंदिर बनाने का वादा भी किया था. हालांकि, यूपी में 2014 के मुकाबले 2019 में बीजेपी की सीटें कम हो गई. 

2022 के विधानसभा चुनाव में पूर्वांचल ने बड़ा झटका दिया. अंबेडकरनगर, गाजीपुर, घोषी और आजमगढ़ समेत कई जिलों में बीजेपी का खाता नहीं खुल पाया. 2024 में प्राण-प्रतिष्ठा बीजेपी के लिए गेम बदलने का सहारा बन सकती है.

8. महाराष्ट्र- महाराष्ट्र में बीजेपी अभी शिंदे गुट की शिवसेना के साथ सरकार में है. बाबरी विवाद के बाद भी महाराष्ट्र में बीजेपी को फायदा मिला था. 2019 में भी बीजेपी यहां पर 23 सीट जीतने में कामयाब रही थी. 

2019 और 2022 की घटना के बाद महाराष्ट्र की सियासत 360 डिग्री की धुरी पर घूम चुकी है. शिवसेना का उद्धव गुट, एनसीपी और कांग्रेस का गठबंधन है तो दूसरी तरफ शिंदे गुट के साथ बीजेपी.

हाल में मराठी अखबार सकाल ने एक सर्वे किया था, इसके मुताबिक महाराष्ट्र में बीजेपी गठबंधन को 39 प्रतिशत वोट और कांग्रेस गठबंधन को 49 प्रतिशत वोट 2024 में मिल सकता है.

ऐसे में बीजेपी कोई बड़ा मुद्दा खोज रही है, जो चुनाव में हावी हो जाए.


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