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सिद्धारमैया कैबिनेट में 'अहिन्दा' का दबदबा, नाम में चला खरगे का वीटो; कर्नाटक मंत्रिमंडल की डिटेल रिपोर्ट

सिद्धारमैया और डीके शिवकुमार के बीच देर रात तक कई नामों पर सहमति नहीं बन पाई. इसके बाद मल्लिकार्जुन खरगे ने उन नामों पर मुहर लगा दी, जिस पर कोई विवाद नहीं था.

कर्नाटक नए मंत्रियों को लेकर जारी खींचतान पर कांग्रेस हाईकमान ने अंतरिम विराम लगा दिया है. सिद्धारमैया और डीके शिवकुमार के साथ 8 मंत्रियों ने शपथ ली है. शुक्रवार (19 मई) को रात 3 बजे तक हुई मैराथन मीटिंग के बाद सभी 8 नाम फाइनल किए गए थे. 

सिद्धारमैया कैबिनेट में भी अहिन्दा फॉर्मूला लागू किया गया है. 8 में से 6 विधायक इसी समीकरण के सहारे मंत्री बने हैं. कैबिनेट में 3 दलित, 2 अल्पसंख्यक को शामिल किया गया है. इसके अलावा एक लिंगायत और एक वोक्कलिगा कैटेगरी से भी मंत्री बनाए गए हैं.

कर्नाटक में पूर्ण बहुमत की सरकार बनने के बाद माना जा रहा था कि अधिकांश मंत्री पहली बार में ही शपथ ले लेंगे, लेकिन सिद्धारमैया और शिवकुमार के बीच नामों की सहमति नहीं बन पाई. इसके बाद संगठन महासचिव केसी वेणुगोपाल ने खरगे के हवाले से एक लिस्ट जारी की.

कर्नाटक में जिन 8 नामों पर सहमति दी गई है, उनके नाम पर दोनों गुट में विवाद नहीं था. केएच मुनियप्पा, जी परमेश्वर, प्रियांक खरगे, एमबी पाटील और केजी जॉर्ज हाईकमान के भी करीबी माने जाते हैं. परमेश्वर और पाटील चुनाव में मुख्य रणनीतिकार भी थे. 

सिद्धारमैया का अहिन्दा फॉर्मूला क्या है?
कांग्रेस में अहिन्दा यानी अल्पसंख्यातारु (अल्पसंख्यक), हिंदूलिद्वारु (पिछड़ा वर्ग) और दलितारु (दलित वर्ग) फॉर्मूला सिद्धारमैया लेकर आए. धरम सिंह और एसएम कृष्णा की सरकार जाने के बाद इस फॉर्मूले ने कांग्रेस के भीतर जान फूंकने का काम किया. 

अहिन्दा फॉर्मूले की जद में कर्नाटक की 60 फीसदी आबादी आती है. कर्नाटक में दलित, आदिवासी और मुस्लिमों की आबादी 39 फीसदी है, जबकि सिद्धारमैया की कुरबा जाति की आबादी भी 7 प्रतिशत के आसपास है. 

कांग्रेस को कर्नाटक चुनाव में इस बार 43 प्रतिशत वोट मिला है, जो रिकॉर्ड है. राजनीतिक जानकारों के मुताबिक कर्नाटक में कांग्रेस अहिन्दा फॉर्मूला हिट रहा. दलित, मुसलमानों और आदिवासियों ने पार्टी के पक्ष में जमकर वोट किया. 

सिर्फ सिद्धारमैया के मजबूत गढ़ माने जाने वाले मुंबई-कर्नाटक और हैदराबाद कर्नाटक में ही कांग्रेस 90 सीटें जीत गई. इन इलाकों में विधानसभा की कुल 103 सीटें हैं. 

अहिन्दा फॉर्मूले के अलावा कांग्रेस को इस बार वोक्कालिगा का भी समर्थन जमकर मिला है. वोक्कालिगा के गढ़ ओल्ड मैसूर में कांग्रेस ने बड़ी जीत हासिल की है.

8 में से 3 मंत्री बेंगलुरु से, कौन किस समीकरण में फिट?
कांग्रेस ने 8 में से 3 मंत्री बेंगलुरु संभाग से बनाया है, जबकि 2 मैसूर और बाकी के 3 कल्याण कर्नाटक और मुंबई कर्नाटक इलाके से बनाया गया है. कांग्रेस के सभी 8 मंत्रियों के बारे में विस्तार से जानते हैं...

1. जी परमेश्वर- पूर्व डिप्टी सीएम और चुनाव में मेनिफेस्टो कमेटी के चेयरमैन रहे जी परमेश्वर दलित समुदाय से आते हैं. परमेश्वर तुमकुरु के कोराटागेरे सीट से इस बार विधायक चुने गए हैं. परमेश्वर के दबदबे वाले तुमकुर में कांग्रेस ने 11 में से 7 सीटें इस बार जीती है.

परमेश्वर 2010-2018 तक वे प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष भी रह चुके हैं. सियासी सुर्खियों से दूर रहने वाले जी परमेश्वर कृषि विज्ञान से पीएचडी हैं. परमेश्वर को शिक्षा और कृषि के क्षेत्र में काम करने का अनुभव है.

परमेश्वर 1989 में पहली बार कर्नाटक विधानसभा के लिए चुने गए. 1992 में वीरप्पा मोइली की सरकार में उन्हें कीट-रेशम विभाग का मंत्री बनाया गया. 1999 में एसएम कृष्णा की सरकार में उनकी पदोन्नति हुई और उच्च शिक्षा विभाग के मंत्री बनाए गए.

2015 में सिद्धारमैया की सरकार में परमेश्वर को गृह जैसा महत्वपूर्ण विभाग मिला. 2018 में कांग्रेस अकेले दम पर सत्ता में नहीं आ पाई तो जेडीएस के साथ समझौता कर लिया. समझौते में कांग्रेस को उपमुख्यमंत्री का पद मिला, जिसे परमेश्वर को दिया गया. 

सिद्धारमैया-शिवकुमार के टशन में परमेश्वर भी मुख्यमंत्री की रेस में शामिल थे. हालांकि, समझौते में उन्हें डिप्टी सीएम का पद भी नहीं मिला. परमेश्वर का नाम विधानसभा स्पीकर के लिए भी चल रहा था. 

2. एमबी पाटील- कांग्रेस के भीतर एमबी पाटील लिंगायत समुदाय के सबसे बड़ा चेहरा हैं. पाटील चुनाव में कैंपेन कमेटी के चेयरमैन भी थे. कैंपेन कमेटी की कमान मिलने के बाद से ही पाटील ने प्रचार का आक्रामक रणनीति तैयार किया. 

कांग्रेस को इसका फायदा भी मिला. चुनाव के बीच में बीजेपी से कई बड़े नेताओं को तोड़ने में भी पाटील ने बड़ी भूमिका निभाई, जिससे कांग्रेस के पक्ष में माहौल बना. 

पाटील ने अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत 1991 में की थी. वे 1998 से 1999 तक लोकसभा के सांसद भी रहे हैं. कर्नाटक विधानसभा में 5 बार विधायक रहने वाले पाटील सिद्धारमैया और कुमारस्वामी सरकार में मंत्री रहे हैं. 

पाटील कर्नाटक सरकार में गृह, जल संसाधन जैसे अहम विभागों के मंत्री रहे हैं. पार्टी के भीतर उन्हें सिद्धारमैया का करीबी भी माना जाता है. इसी वजह से कुमारस्वामी सरकार में उन्हें गृह जैसा महत्वपूर्ण विभाग मिला था. 

इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने वाले एमबी पाटील को राजनीतिक विरासत में मिली है. उनके पिता बीएम पाटील कर्नाटक के बड़े राजनेता थे. पाटील इस बार विजयपुरा के बाबालेश्वर सीट से विधायक चुने गए हैं. 

3. केएच मुनियप्पा- मनमोहन सरकार में 10 साल तक कैबिनेट मंत्री रहे केएच मुनियप्पा को भी कर्नाटक में मंत्री बनाया गया है. मुनियप्पा दलित समुदाय से आते हैं और उन्हें बड़ा पद देने के लिए दलित संगठनों ने कांग्रेस हाईकमान से अपील की थी. 

केएच मुनियप्पा कोलार से 7 बार लोकसभा का सांसद रह चुके हैं. मुनियप्पा बेंगलुरु ग्रामीण के देवनहल्ली सीट से इस बार विधायक चुने गए हैं. उनके संसदीय सीट कोलार में भी कांग्रेस ने शानदार प्रदर्शन करते हुए 6 में से 4 सीटों पर जीत हासिल की है.

मुनियप्पा ने राजनीतिक करियर की शुरुआत 1969 में की थी. 1978 में पहली बार कोलार तालुका बोर्ड में वायस चेयरमैन बने. 1991 में मुनियप्पा लोकसभा का चुनाव जीतकर संसद पहुंचे. इसके बाद 2019 तक लगातार 6 चुनाव जीते.

2019 लोकसभा चुनाव में हार के बाद से ही मुनियप्पा अलग-थलग चल रहे थे. 2022 में उनके कांग्रेस छोड़ने की अटकलें भी लग रही थी, लेकिन उस वक्त कांग्रेस प्रभारी रणदीप सिंह सुरजेवाला ने उन्हें मना लिया था.

4. सतीश जरकिहोली- सिद्धारमैया कैबिनेट में आदिवासी चेहरा के रूप में शामिल किए गए हैं. जरकिहोली बेलगावी के येमकानमर्दी सीट से विधायक चुने गए हैं. कर्नाटक में करीब 7 फीसदी आदिवासी हैं, जिनके लिए 15 सीटें रिजर्व है.

2019 में जब कांग्रेस के भीतर बगावत हुई तो जरकिहोली ने अपने भाई रमेश के साथ बीजेपी में जाने से इनकार कर दिया. जरकिहोली को सिद्धारमैया का समर्थक माना जाता है. मुख्यमंत्री पद के लिए उन्होंने खुलकर सिद्धारमैया को समर्थन दिया था.

जरकिहोली को राजनीति विरासत में मिली है और उनके भाई रमेश मंत्री भी रह चुके हैं. सतीश पहली बार 1998 में विधानपरिषद के जरिए राजनीति में दाखिल हुए. 

2004 में धरम सिंह की सरकार में मंत्री बनाए गए. 2013 में सिद्धारमैया जब मुख्यमंत्री बने तो सतीश जरकिहोली को आबकारी विभाग की जिम्मेदारी मिली. कुमारस्वामी की सरकार में सतीश वन मंत्री बने थे.

बेलगावी में कांग्रेस को 18 में से 11 सीटों पर जीत मिली है. जीत के पीछे सतीश की रणनीति को महत्वपूर्ण माना जा रहा है. 

5. के. जॉर्ज- के जॉर्ज सिद्धारमैया कैबिनेट में अल्पसंख्यक समुदायक का प्रतिनिधत्व करेंगे. केरल मूल के जॉर्ज बेंगलुरु के सर्वज्ञनगर से चौथी बार विधायक चुने गए हैं. कर्नाटक में करीब 2 प्रतिशत ईसाई वोटर हैं.

1968 में युथ कांग्रेस से राजनीतिक करियर की शुरुआत करने वाले जॉर्ज वीरेंद्र पाटील, एस बंगरप्पा, सिद्धारमैया और कुमारस्वामी सरकार में मंत्री रह चुके हैं. जॉर्ज गृह, उद्योग और बेंगलुरु डेवलपमेंट जैसे प्रमुख विभाग के मंत्री रहे हैं. 

1985 में पहली बार जॉर्ज विधायक चुने गए थे. उन्हें संगठन में भी काम करने का तजुर्बा है. 2017 में जॉर्ज पर दो पुलिस अधिकारियों को आत्महत्या के लिए उकसाने के आरोप में केस दर्ज हुआ था. 

6. जमीर अहमद- सिद्धारमैया कैबिनेट के 8 नामों में जमीर एक मात्र मुस्लिम चेहरा हैं. जमीर बेंगलुरु के चमराजपेट सीट से विधायक चुने गए हैं. जमीर ने अपनी राजनीतिक करियर की शुरुआत जनता दल सेक्युलर से की थी. 

2005 में जमीर की चमराजपेट सीट से जीत ने कर्नाटक में सियासी भूचाल ला दिया था. दरअसल, मुख्यमंत्री पद से हटने के बाद एसएम कृष्णा को महाराष्ट्र का राज्यपाल बना दिया गया, जिसके बाद कृष्णा को चमराजपेट सीट से इस्तीफा देना पड़ा.

एसएम कृष्णा ने इस सीट पर अपने सेनापती आरवी देवराज को मैदान में उतार दिया. जमीर भी जेडीएस के टिकट पर चुनाव में उतरे और कृष्णा के गढ़ को ध्वस्त कर दिया. जमीर को इसके बाद जेडीएस सरकार में वक्फ और हज बोर्ड का चेयरमैन बनाया गया. 

2018 में कुमारस्वामी से कलह के बाद जमीर ने 6 विधायकों के साथ कांग्रेस ज्वॉइन कर लिया. 

7. रामालिंगा रेड्डी- सिद्धारमैया कैबिनेट में डीके शिवकुमार के बाद रेड्डी दूसरा वोक्कलिगा चेहरा हैं. रेड्डी बेंगलुरु के एमबीटी सीट से विधायक चुने गए हैं. रामालिंगा को शिवकुमार गुट का माना जाता है. उनकी बेटी सौम्या के लिए डीके मतगणना स्थल पर पहुंच गए थे. 

रेड्डी पहली बार 1989 में विधायक चुने गए थे. रेड्डी मोइली, एसएम कृष्णा, धरम सिंह और सिद्धारमैया की सरकार में मंत्री रह चुके हैं. सरकार में उनके पास परिवहन और शिक्षा जैसा महत्वपूर्ण महकमा रह चुका है. 

रेड्डी ने छात्र राजनीति से अपनी करियर की शुरुआत की थी. रेड्डी 1983 में बेंगलुरु नगर निगम में पार्षद चुने गए थे. इसके बाद लगातार राजनीति के शिखर पर चढ़ते गए. 

8. प्रियंक खरगे- प्रियंक कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे के बेटे हैं. चुनाव से पहले कांग्रेस ने प्रियंक को कम्युनिकेशन विभाग का प्रभार सौंपा था. प्रियंक कलबुर्गी के चित्तपुर से विधायक चुने गए हैं.

प्रियंक को राजनीति विरासत में मिली है और पहली बार 2013 में विधायक बने. प्रियंक एनएसयूआई और यूथ कांग्रेस के संगठन में बड़े पदों पर रह चुके हैं. 

2016 में सिद्धारमैया ने प्रियंक को अपने कैबिनेट में शामिल किया था और उन्हें आईटी जैसे महत्वपूर्ण विभाग की जिम्मेदारी दी गई थी. प्रियंक कुमारस्वामी सरकार में सोशल वेलफेयर विभाग के मंत्री बने थे. 

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